मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने एक पारिवारिक भूमि बंटवारे के मामले में ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलटते हुए याचिकाकर्ता पवन पाठक के पक्ष में फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति हिरदेश ने 29 अगस्त 2025 को पारित आदेश में कहा कि मृतका मुन्नी देवी की वसीयत के आधार पर पवन पाठक का नाम वादी के रूप में दर्ज किया जाए।
विवाद ग्वालियर जिले की तहसील क्षेत्र के ग्राम बिलेहटी स्थित कृषि भूमि से जुड़ा है, जो कई सर्वे नंबरों में फैली हुई है। स्व. जगन्नाथ प्रसाद मुद्गल की पुत्री मुन्नी देवी ने 2021 में एक दीवानी वाद दायर किया था, जिसमें उन्होंने अपनी एक-तिहाई हिस्सेदारी को लेकर घोषणा, बंटवारा और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की थी। जीवनकाल में ही उन्होंने 4 मई 2024 को एक वसीयत बनाई, जिसमें अपनी चल-अचल संपत्ति पति व बच्चों के नाम की। 12 मई 2024 को उनका निधन हो गया।
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उनकी मृत्यु के बाद पुत्र पवन पाठक ने ग्वालियर की 6वीं सिविल जज, वरिष्ठ वर्ग की अदालत में आवेदन प्रस्तुत कर स्वयं को वादी के स्थान पर प्रतिस्थापित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि वसीयत के वारिस और श्रेणी-1 उत्तराधिकारी होने के नाते उनके पक्ष में मुकदमा चलाने का अधिकार है। लेकिन जनवरी 2025 में ट्रायल कोर्ट ने आवेदन खारिज कर दिया। अदालत का कहना था कि वसीयत में अन्य वारिसों का भी जिक्र है, जिन्हें आवेदन में शामिल नहीं किया गया।
न्यायमूर्ति हिरदेश ने ट्रायल कोर्ट की दलीलों को कानूनी दृष्टि से असंगत माना। उन्होंने शकुंतला बनाम शत्रुघ्न (1993 MPWN 99) तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय डोलाई मोल्लिको बनाम कृष्णचंद्र पटनायक (AIR 1967 SC 49) का हवाला देते हुए कहा कि मान्य वसीयत रखने वाला व्यक्ति मृतक की संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
"न्यायालय ने कहा कि जब तक धोखाधड़ी या मिलीभगत का प्रमाण न हो, वसीयत में नामित व्यक्ति को मृतक के स्थान पर वादी बनाया जा सकता है, क्योंकि वह सम्पत्ति का वास्तविक प्रतिनिधि होता है," आदेश में कहा गया।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल अन्य वारिसों के नाम शामिल न होने के आधार पर आवेदन को खारिज करना उचित नहीं है। अगर सम्पत्ति का प्रतिनिधित्व निष्पक्ष तरीके से हो रहा है तो प्रतिस्थापन मान्य होगा।
हाईकोर्ट ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यप्रणाली की भी कड़ी आलोचना की। न्यायमूर्ति हिरदेश ने कहा कि पीठासीन अधिकारी श्रीमती वर्षा भलावी के पास "कानून का कोई बुनियादी ज्ञान नहीं" है और उन्हें प्रक्रियात्मक कानून की ट्रेनिंग जॉट्री (Judicial Officers’ Training and Research Institute) में दी जानी चाहिए। आदेश की प्रति जिला जज, जॉट्री निदेशक और हाईकोर्ट जबलपुर के रजिस्ट्रार जनरल को भेजने के निर्देश दिए गए।
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याचिका स्वीकार कर हाईकोर्ट ने न केवल मामले को आगे बढ़ने का रास्ता दिया बल्कि यह सिद्धांत भी दोहराया कि उत्तराधिकारी या वसीयतधारी को तकनीकी कारणों से संपत्ति के प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं किया जा सकता। यह फैसला मध्य प्रदेश में खासकर ग्रामीण भूमि बंटवारे के मामलों में अहम मिसाल बनेगा, जहां वसीयत और पारिवारिक दावों में अक्सर टकराव होता है।
अंततः, हाईकोर्ट का यह हस्तक्षेप न केवल याचिकाकर्ता के अधिकारों को बहाल करता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका निचली अदालतों की प्रक्रियात्मक गलतियों को सुधारने के लिए प्रतिबद्ध है।
केस का शीर्षक: पवन पाठक बनाम नाथूराम एवं अन्य
केस संख्या: विविध याचिका संख्या 440/2025