Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

दिल्ली हाई कोर्ट ने टीटी लिमिटेड के पक्ष में दिया फैसला, सिंगापुर की कंपनी पर लगाया भुगतान का आदेश

Shivam Y.

मेसर्स एम आई टेक्सटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स टी टी लिमिटेड एवं अन्य - दिल्ली उच्च न्यायालय ने टी टी लिमिटेड के पक्ष में फैसला सुनाया, तथा मामूली विसंगतियों के बावजूद रद्द किए गए सूती कपड़े के शिपमेंट के लिए सिंगापुर के आयातक को उत्तरदायी ठहराया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने टीटी लिमिटेड के पक्ष में दिया फैसला, सिंगापुर की कंपनी पर लगाया भुगतान का आदेश

नई दिल्ली, 1 सितम्बर: दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय वस्त्र कंपनी टीटी लिमिटेड के पक्ष में फैसला सुनाया है। यह मामला सिंगापुर की कंपनी एम.आई. टेक्सटाइल्स प्रा. लि. से जुड़ा था, जिसने साल 2004 में भेजे गए कपड़े के एक शिपमेंट को रद्द कर दिया था।

Read in English

न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि आयातक कंपनी को नुकसान की भरपाई करनी होगी क्योंकि निर्यातक को अपना माल वापस बुलाकर भारत में कम दाम पर बेचना पड़ा। अदालत ने साफ किया कि मामूली कागजी त्रुटियों या थोड़ी सी देरी को अंतरराष्ट्रीय शिपमेंट ठुकराने का वैध कारण नहीं माना जा सकता।

Read also:- ईडी बनाम एडवोकेट गौड़ा: कर्नाटक हाईकोर्ट ने दस्तावेजों पर सवाल उठाए, याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

तीसरे ऑर्डर पर विवाद

साल 2004 में टीटी लिमिटेड को एम.आई. टेक्सटाइल्स से तीन बड़े ऑर्डर मिले थे। पहले दो ऑर्डर समय पर स्वीकार कर लिए गए और भुगतान भी कर दिया गया। विवाद तीसरे ऑर्डर को लेकर हुआ। कंपनी ने 16,000 किलो से ज्यादा कपड़ा तूतिकोरिन से अलेक्ज़ान्द्रिया भेजा, लेकिन आयातक ने डिलीवरी लेने से मना कर दिया। उसने दावा किया कि शिपमेंट में देरी हुई है और एल.सी. (लेटर ऑफ क्रेडिट) से जुड़े दस्तावेज़ों में गड़बड़ियाँ हैं। इसके चलते टीटी लिमिटेड को माल वापस बुलाकर देश में ही बेचना पड़ा और बड़ा घाटा उठाना पड़ा।

साल 2014 में दिल्ली की निचली अदालत ने आदेश दिया था कि एम.आई. टेक्सटाइल्स को लगभग 7.89 लाख रुपये 12% वार्षिक ब्याज सहित चुकाने होंगे। कंपनी ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि उसके वकील ने मुकदमे में सही तरीके से पक्ष नहीं रखा और दस्तावेज़ों में गंभीर त्रुटियाँ थीं।

Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने ‘सिक कंपनी’ का दर्जा होने के बावजूद एल.डी. इंडस्ट्रीज़ पर चेक बाउंस मामलों को बहाल किया

न्यायमूर्ति पुष्कर्णा ने इन दलीलों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि आयातक पहले भी देर से आई खेप स्वीकार कर चुका था, इसलिए अब देरी का बहाना नहीं बनाया जा सकता।

अदालत ने कहा,

"सिर्फ शिपमेंट की तारीख तय कर देने से समय अपने आप अनुबंध का मुख्य आधार नहीं बन जाता। दो दिन की देरी कोई बड़ी वजह नहीं मानी जा सकती।"

Read also:- हिमाचल हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव विवाद में मंडलीय आयुक्त का आदेश रद्द किया

निर्णय में यह भी स्पष्ट किया गया कि आयातक का इनकार उसकी अपनी ग्राहक से हुई दिक्कतों से जुड़ा था, न कि टीटी लिमिटेड की गलती से।

अदालत ने टिप्पणी की,

'आयातक अपने थर्ड-पार्टी ग्राहकों के विवाद का बोझ निर्यातक पर नहीं डाल सकता, जबकि निर्यातक ने समय पर अपनी जिम्मेदारी पूरी की थी।"

मामले का शीर्षक: मेसर्स एम आई टेक्सटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स टी टी लिमिटेड एवं अन्य

मामला संख्या: आरएफए 131/2015, सीएम आवेदन 3794/2015 और सीएम आवेदन 1117/2016

Advertisment

Recommended Posts