कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस विधायक केसी वीरेन्द्र पप्पी के कानूनी सलाहकार अधिवक्ता अनिल गौड़ा द्वारा दायर उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा भेजे गए समन को चुनौती दी थी। यह मामला अवैध सट्टेबाजी और जुए से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस से संबंधित है।
मामले की सुनवाई जस्टिस सचिन शंकर मागडुम ने की और उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि फैसला आने तक ईडी गौड़ा के खिलाफ कोई जल्दबाज़ी में कदम न उठाए।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ईडी से सवाल किया कि गौड़ा के खिलाफ लगाए गए आरोपों का समर्थन करने वाले दस्तावेज़ कहां हैं। इस पर ईडी के वकील ने भरोसा दिलाया कि सभी आवश्यक दस्तावेज़ कोर्ट में जमा किए जाएंगे।
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अपनी याचिका में अधिवक्ता गौड़ा ने कहा कि ईडी उन्हें और विधायक वीरेन्द्र को राजनीतिक प्रतिशोध के तहत निशाना बना रही है।
उन्होंने दलील दी कि:
- ईडी की कार्रवाई का मकसद विपक्षी नेताओं को चुप कराना है।
- उनका नाम किसी भी एफआईआर या चार्जशीट में शामिल नहीं है।
- यह कार्यवाही बीते 10–15 सालों की पुरानी एफआईआर पर आधारित है, जिनमें से कई पहले ही खत्म हो चुकी हैं।
गौड़ा की याचिका में बताए गए एफआईआर का ब्यौरा:
- 2011 की एफआईआर → सभी आरोपियों को 2014 में बरी कर दिया गया।
- 2015 की एफआईआर → 2016 में खारिज कर दी गई।
- 2016 की एफआईआर → दो आरोपी दोषी मानकर सजा पाए।
- 2022 की एफआईआर → जांच के बाद केसी वीरेन्द्र का नाम हटा दिया गया।
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इसके बावजूद ईडी ने 24 अगस्त को गौड़ा को समन भेजा और उनसे संपत्ति का ब्यौरा, टैक्स रिकॉर्ड और विधायक वीरेन्द्र से जुड़े उनके कानूनी काम की जानकारी मांगी।
गौड़ा की ओर से सीनियर एडवोकेट विकास पाहवा ने तर्क दिया कि:
- ईडी का समन गौड़ा की पेशेवर वकालत की भूमिका में दखल देता है।
- किसी भी वकील द्वारा दिए गए कानूनी परामर्श को संरक्षित अधिकार प्राप्त है।
- यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित स्वतः संज्ञान याचिका से जुड़ा है, जिसमें शीर्ष अदालत यह तय करेगी कि वकीलों को ईडी कितनी सीमा तक समन भेज सकती है।
पाहवा ने जोर देकर कहा:
“उन्होंने मुझसे कानूनी सलाहकार की हैसियत से ही सवाल किए हैं… जो पूरी तरह मेरे पेशेवर संबंध से जुड़े हैं। मैं वकील हूं, और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मुझे इस तरह के मामलों में सुरक्षा प्रदान की है।”
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ईडी की ओर से एएसजी अरविंद कामथ और अधिवक्ता माधुकुर देशपांडे ने गौड़ा की याचिका का विरोध किया।
ईडी की मुख्य दलीलें थीं:
- समन का संबंध उनकी वकालत की भूमिका से नहीं है।
- गौड़ा कई व्यावसायिक कंपनियों में भागीदार हैं, जिनमें से एक विधायक वीरेन्द्र की कंपनी भी है।
- उनके खिलाफ गैर-कानूनी निवेश के गंभीर आरोप हैं।
देशपांडे ने आगे कहा:
“अगर वकील किसी अपराध में सीधे तौर पर शामिल पाए जाते हैं, तो वे केवल वकील होने का बहाना बनाकर समन से छूट नहीं ले सकते।”
ईडी ने यह भी बताया कि 24 अगस्त को जारी समन अब अप्रासंगिक (infructuous) हो गया है, क्योंकि गौड़ा 26 अगस्त को उपस्थित नहीं हुए। ऐसे में एक नया समन जारी करना पड़ेगा।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने अब इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है और तब तक ईडी को अनिल गौड़ा के खिलाफ किसी भी तरह की त्वरित कार्रवाई करने से रोक दिया है।
मामला: अनिल गौड़ा एच बनाम प्रवर्तन निदेशालय
दिनांक: 2 सितंबर, 2024 (सोमवार की सुनवाई) को फैसला सुरक्षित रखा गया है।