Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो एफआईआर रद्द करने से किया इंकार, पीड़िता पर कलंक की दलील को बताया "घृणित"

Shivam Y.

अल्ताफ बनाम दिल्ली सरकार एवं अन्य - दिल्ली उच्च न्यायालय ने पोक्सो मामले में एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया, कलंक संबंधी तर्क को "घृणित" बताया और घोषित अपराधी को 10,000 रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो एफआईआर रद्द करने से किया इंकार, पीड़िता पर कलंक की दलील को बताया "घृणित"

दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को अल्ताफ नामक व्यक्ति द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सरिता विहार थाने में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी। यह मामला, एफआईआर संख्या 391/2024, भारतीय न्याय संहिता और पॉक्सो कानून के तहत दर्ज है, जिसमें एक नाबालिग लड़की के यौन शोषण के गंभीर आरोप शामिल हैं।

Read in English

न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने मौखिक निर्णय सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को घोषित अपराधी घोषित किया जा चुका है और वह अभी भी कानून से बच रहा है। अभियोजन पक्ष ने याचिका का कड़ा विरोध करते हुए बताया कि पीड़िता अब भी नाबालिग है। अदालत ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि आरोपी ने लड़की का वीडियो बनाकर उसे धमकाते हुए शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया था।

Read also:- झारखंड उच्च न्यायालय ने स्वर्गीय सीताराम लोहिया की 2008 की वसीयत को मंजूरी दी, बीरेन पोद्दार को मल्टी-सिटी संपत्तियों के निष्पादक के रूप में पुष्टि की

बचाव पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि मामला रद्द कर दिया जाए ताकि लड़की को सामाजिक कलंक से बचाया जा सके।

इस दलील को कड़े शब्दों में ठुकराते हुए न्यायमूर्ति काठपालिया ने कहा,

"कलंक तो उस व्यक्ति पर होना चाहिए जिसने अपराध किया है, न कि उस पीड़िता पर जिसने पीड़ा सही है।"

अदालत ने जोर देकर कहा कि समाज में मानसिकता बदलने की ज़रूरत है ताकि शर्म अपराधी पर डाली जाए, पीड़िता पर नहीं।

Read also:- दिल्ली हाईकोर्ट: पत्नी को कॉल रिकॉर्ड और होटल सबूत तक पहुंच, व्यभिचार मामले में बड़ा फैसला

याचिकाकर्ता के वकील ने आगे कहा कि पीड़िता के माता-पिता ने आरोपी से समझौता कर लिया है। अदालत ने इस तर्क को भी पूरी तरह निराधार बताते हुए खारिज कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अपराध से पीड़िता प्रभावित हुई है, न कि उसके माता-पिता। और चूंकि पीड़िता नाबालिग है, इसलिए उसके द्वारा आरोपी को माफ करने का प्रश्न ही नहीं उठता।

अदालत ने कहा कि हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है और याचिका को ₹10,000 के खर्च के साथ खारिज कर दिया। यह राशि एक सप्ताह के भीतर दिल्ली हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति में जमा करनी होगी। साथ ही निचली अदालत को आदेश दिया गया कि खर्च की राशि जमा कराई जाए।

केस शीर्षक:- अल्ताफ बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य सरकार एवं अन्य।

केस संख्या: CRL.M.C. 2363/2025 & CRL.M.A. 10629/2025

Advertisment

Recommended Posts