इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2 सितम्बर 2025 को भारत सरकार को यह अनुमति दी कि वह अपनी याचिका, जो मूल रूप से संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दाखिल की गई थी, को आर्बिट्रेशन एंड कन्सिलिएशन एक्ट, 1996 की धारा 37 के तहत अपील में परिवर्तित कर सके। विवाद की जड़ 2002 के एक आर्बिट्रल अवार्ड से जुड़ी है, जिसे सरकार ने जिला जज, आगरा के समक्ष चुनौती दी थी लेकिन असफल रही।
पृष्ठभूमि
मामला तब शुरू हुआ जब भारत सरकार ने 27 मई 2002 को एम/एस भुलार कंस्ट्रक्शन कंपनी के पक्ष में दिए गए आर्बिट्रल अवार्ड को चुनौती दी। सरकार ने आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 34 के तहत आपत्तियां दायर कीं, लेकिन जिला जज ने मार्च 2010 में उन्हें खारिज कर दिया। इसके बाद भारत सरकार हाईकोर्ट पहुंची, पहले अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दाखिल की और बाद में इसे अनुच्छेद 227 की याचिका में बदल दिया गया।
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हालांकि, सुनवाई के दौरान प्रतिवादियों ने एक अहम आपत्ति उठाई: ऐसे आदेशों के खिलाफ सही कानूनी उपाय आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 37 के तहत अपील है, न कि रिट या सुपरवाइजरी याचिका।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम ने विशेष कुमार बनाम शांति प्रसाद और कैलाश चंद्र बनाम राम नरेश गुप्ता जैसे फैसलों का उल्लेख किया। पीठ ने कहा कि हालांकि कुछ निर्णयों में एक प्रकार की कार्यवाही को दूसरी के रूप में मानने से रोका गया है, परंतु लगातार ऐसे फैसले भी रहे हैं जहां न्याय की आवश्यकता होने पर परिवर्तन की अनुमति दी गई है।
पीठ ने टिप्पणी की, "सिद्धांत यह है कि जब मामला पहले से न्यायालय के समक्ष है तो तकनीकीताओं को न्याय के रास्ते में नहीं आना चाहिए।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे परिवर्तन से अनावश्यक मुकदमों की संख्या कम होती है।
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प्रतिवादी पक्ष ने ज़ोर दिया कि याचिकाकर्ता को यह याचिका वापस लेकर नई अपील दाखिल करनी चाहिए और विलंब माफी का अनुरोध करना चाहिए। उन्होंने राम मोहन लाल बृज भूषण लाल बनाम भारत संघ (1980) के निर्णय का हवाला दिया।
लेकिन अदालत ने व्यापक दृष्टांतों पर भरोसा किया, जिनमें रिलाएबल वाटर सप्लाई सर्विस बनाम भारत संघ का सुप्रीम कोर्ट का फैसला शामिल था, जिसने उचित परिस्थितियों में ऐसे परिवर्तन की शक्ति को मान्यता दी।
फैसला
अपने अंतिम आदेश में हाईकोर्ट ने भारत सरकार को लंबित अनुच्छेद 227 की याचिका को आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 37 के तहत अपील में बदलने की अनुमति दी। अदालत ने इस प्रक्रिया के लिए तीन सप्ताह का समय दिया और कहा कि परिवर्तन के बाद मामला संबंधित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।
इस तरह, अदालत ने सरकार की चुनौती को जीवित रखा, लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब इसे केवल विधिक रूप से उपलब्ध अपील मार्ग से ही आगे बढ़ाया जा सकेगा।
केस का शीर्षक: भारत संघ बनाम भुलर कंस्ट्रक्शन कंपनी एवं अन्य
केस नंबर: 2023 के अनुच्छेद 227 नंबर 8841 के तहत मामले