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1998 सिरसा हत्याकांड में राजन की अपील खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले अपलोड में देरी पर जताई नाराज़गी

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने 1998 सिरसा हत्याकांड में राजन की उम्रकैद बरकरार रखी, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट पर फैसले अपलोड में देरी को लेकर नाराज़गी जताई।

1998 सिरसा हत्याकांड में राजन की अपील खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले अपलोड में देरी पर जताई नाराज़गी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 1998 में हरियाणा के सिरसा कॉलेज हत्याकांड मामले में दोषी राजन की अपील खारिज कर दी। पीठ ने निचली अदालत और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सज़ा को बरकरार रखते हुए यह भी कहा कि हाईकोर्ट द्वारा आदेश सुनाने के बाद विस्तृत फैसला अपलोड करने में ढाई साल की देरी गंभीर चिंता का विषय है।

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पृष्ठभूमि

यह मामला 22 जुलाई 1998 का है, जब नेशनल कॉलेज, सिरसा के बाहर हिंसक झड़प हुई। घायल प्रत्यक्षदर्शी बलबीर सिंह की एफआईआर के अनुसार, राजन समेत कुछ हथियारबंद लोग शिव दत्त सिंह को पुरानी रंजिश और कॉलेज चुनावी दुश्मनी को लेकर घेरने पहुंचे। आरोप है कि राजन ने पिस्तौल से गोली चलाई जो चूक गई, लेकिन अन्य आरोपी नरेश और विकास ने 12-बोर बंदूक से फायर कर शिव दत्त को गंभीर रूप से घायल कर दिया। इलाज के दौरान आधे घंटे में ही उनकी मौत हो गई।

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ट्रायल कोर्ट ने राजन और विकास को हत्या का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई। नरेश, जो मुकदमे के दौरान फरार हो गया था, बाद में पकड़ा गया और उसे भी दोषी ठहराया गया। अन्य आरोपी बरी हो गए। राजन की अपील 2016 में हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी, हालांकि विस्तृत फैसला जुलाई 2018 में, यानी ढाई साल बाद ही अपलोड हुआ।

सुप्रीम कोर्ट में राजन की ओर से दलील दी गई कि हाईकोर्ट का फैसला अपलोड करने में असाधारण देरी हुई, जिससे गंभीर नुकसान हुआ और मामला दोबारा सुनवाई के लिए भेजा जाना चाहिए। बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि राजन से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ।

पीठ ने इन दलीलों को ठुकराते हुए कहा, “सिर्फ इसलिए कि हथियार बरामद नहीं हुआ, प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही को संदिग्ध नहीं माना जा सकता।” अदालत ने बलबीर सिंह और बिशन सिंह की गवाही को विश्वसनीय और पर्याप्त माना।

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साथ ही, कोर्ट ने हाईकोर्ट की उस प्रथा पर नाराज़गी जताई जिसमें आदेश सुनाने के बाद विस्तृत फैसला लंबे समय तक अपलोड नहीं किया जाता। “ऐसी देरी पीड़ित पक्ष को आगे न्याय पाने के अवसर से वंचित करती है,” पीठ ने कहा और अनिल राय बनाम बिहार राज्य मामले में दिए गए पुराने दिशा-निर्देशों को दोहराया।

फैसला

अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि प्रत्यक्षदर्शियों की भरोसेमंद गवाही और चिकित्सीय साक्ष्य पर आधारित है। इसलिए, उम्रकैद की सज़ा बरकरार रखी जाती है। अपील खारिज कर दी गई और रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि यह आदेश सभी हाईकोर्ट्स को भेजा जाए ताकि फैसले अपलोड करने में देरी जैसी स्थिति न हो।

केस का शीर्षक: राजन बनाम हरियाणा राज्य

उद्धरण: 2025 INSC 1081

निर्णय की तिथि: 2 सितंबर 2025

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