सुप्रीम कोर्ट ने सिविल अपील नंबर 6377/2012 (रमेश चंद (स्व.) थ्रू LRs बनाम सुरेश चंद एवं अन्य) में दिल्ली हाईकोर्ट का 2012 का फैसला रद्द कर दिया।
यह विवाद दिल्ली के अंबेडकर बस्ती (प्रॉपर्टी नंबर 563) में स्थित मकान को लेकर था, जो मूल रूप से कुंदन लाल (पिता) के स्वामित्व में था।
- सुरेश चंद (वादी) ने दावा किया कि उनके पास जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी, एग्रीमेंट टू सेल, शपथपत्र, रसीद और 16 मई 1996 की रजिस्टर्ड वसीयत के आधार पर मालिकाना हक है।
- उनका कहना था कि रमेश चंद (भाई/प्रतिवादी) केवल लाइसेंसी/अनधिकृत कब्जाधारी थे और बाद में उन्होंने संपत्ति का आधा हिस्सा किसी तीसरे पक्ष (प्रतिवादी नंबर 2) को बेच दिया।
- रमेश चंद का पक्ष था कि 1973 में मौखिक रूप से पिता ने उन्हें संपत्ति सौंप दी थी और उन्होंने वसीयत सहित सारे दस्तावेजों को फर्जी बताया।
ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट ने सुरेश चंद के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद रमेश चंद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन अहम सवालों पर विचार किया:
- क्या GPA, एग्रीमेंट टू सेल, शपथपत्र, रसीद और वसीयत से वैध मालिकाना हक साबित होता है?
- क्या वादी को ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 53A (पार्ट परफॉर्मेंस) का लाभ मिल सकता है?
- पक्षकारों और खरीदार (प्रतिवादी नंबर 2) के अधिकार क्या होंगे?
1. GPA और एग्रीमेंट टू सेल से मालिकाना हक नहीं
कोर्ट ने साफ कहा:
“जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी या एग्रीमेंट टू सेल से मालिकाना हक ट्रांसफर नहीं होता। ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 54 के तहत केवल रजिस्टर्ड सेल डीड से ही वैध मालिकाना हक मिलता है।”
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2. वसीयत संदेहास्पद और सही तरीके से साबित नहीं
वादी की ओर से पेश वसीयत को कोर्ट ने संदेहास्पद परिस्थितियों वाला माना:
- पिता के चार बच्चे थे, लेकिन पूरी संपत्ति केवल एक बेटे को देने की बात थी।
- उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत आवश्यक गवाह पेश नहीं किए गए।
कोर्ट ने कहा:
“सिर्फ वसीयत का रजिस्ट्रेशन उसे वैध नहीं बना देता। जब तक संदेह दूर न हो, वसीयत को स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
3. धारा 53A (पार्ट परफॉर्मेंस) लागू नहीं
चूंकि वादी संपत्ति पर कब्जे में नहीं थे, इसलिए उन्हें धारा 53A का लाभ नहीं दिया जा सकता।
4. उत्तराधिकार कानून लागू
कोर्ट ने कहा कि कुंदन लाल की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति पर सभी क्लास-I वारिसों (बच्चों) का बराबर अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने रमेश चंद की अपील स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया और सुरेश चंद का मुकदमा खारिज कर दिया।
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साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रतिवादी नंबर 2 (खरीदार) का अधिकार रमेश चंद के हिस्से तक सुरक्षित रहेगा।
कोर्ट ने अंत में कहा:
“अचल संपत्ति का मालिकाना हक केवल रजिस्टर्ड सेल डीड से ही ट्रांसफर होता है। GPA, एग्रीमेंट टू सेल या वसीयत से अकेले कोई वैध टाइटल नहीं बनता।”
मामला: रमेश चंद (डी) बनाम सुरेश चंद एवं अन्य
उद्धरण: 2025 आईएनएससी 1059
निर्णय की तिथि: 1 सितंबर, 2025