भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2025 को दिए अपने हालिया फैसले में इकबाल अहमद (मृत) द्वारा विधिक प्रतिनिधि एवं अन्य बनाम अब्दुल शुकूर मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए मामला पुनः हाई कोर्ट को भेजा कि अपीलीय अदालत ने बिना यह जांचे कि अतिरिक्त साक्ष्य याचिकाओं में समर्थित थे या नहीं, उन्हें स्वीकार कर गलती की।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद 20 फरवरी 1995 के एक समझौते से जुड़ा है, जिसमें प्रतिवादी अब्दुल शुकूर ने ₹10,67,000 में अपना मकान बेचने पर सहमति दी थी। वादकारियों ने ₹5,00,000 दो किस्तों में चुका दिए थे। जब प्रतिवादी ने बिक्री विलेख निष्पादित नहीं किया, तो वादकारियों ने 1996 में विशिष्ट निष्पादन का मुकदमा दायर किया।
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निचली अदालत ने 2000 में वादकारियों के पक्ष में डिक्री जारी की और माना कि समझौता सिद्ध हुआ है तथा वादी अनुबंध निभाने के लिए तत्पर थे। लेकिन हाई कोर्ट ने 2008 में यह डिक्री पलट दी और प्रतिवादी को कर अभिलेख व एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट जैसे अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की अनुमति दी। हाई कोर्ट ने माना कि समझौता असली नहीं था और प्रतिवादी को केवल ₹1,00,000 ऋण लौटाने का आदेश दिया।
अपीलकर्ताओं ने कहा कि हाई कोर्ट ने उन्हें प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत अतिरिक्त साक्ष्यों का जवाब देने का अवसर दिए बिना उन्हें स्वीकार कर लिया। उनका तर्क था कि निचली अदालत ने पहले ही पूरे मामले की जांच कर ली थी। उन्होंने उन फैसलों का भी हवाला दिया जिनमें आरक्षित निर्णय देर से देने की समस्या पर टिप्पणी की गई थी।
दूसरी ओर, प्रतिवादी ने कहा कि हाई कोर्ट ने सही किया क्योंकि सार्वजनिक दस्तावेजों से यह स्पष्ट हुआ कि वादी ने अपनी अचल संपत्ति नहीं बेची थी, जैसा कि उन्होंने दावा किया था।
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न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर ने अपने फैसले में कहा:
“अपील की सुनवाई में आदेश 41 नियम 27(1) सीपीसी के तहत अतिरिक्त साक्ष्य स्वीकार करने से पहले यह देखना जरूरी है कि वे साक्ष्य पक्षकार की याचिकाओं के अनुरूप हैं या नहीं। यदि उचित दलीलें नहीं हैं तो ऐसे साक्ष्य स्वीकार करना व्यर्थ है।”
अदालत ने बच्छाज नाहर बनाम नीलिमा मंडल और भारत संघ बनाम इब्राहीम उद्दीन जैसे मामलों का हवाला दिया और कहा कि अतिरिक्त साक्ष्य लेने के लिए याचिकाओं का होना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाई कोर्ट का निर्णय विधि के अनुरूप नहीं था। शीर्ष अदालत ने 30 दिसंबर 2008 का आदेश रद्द कर दिया और मामला पुनः हाई कोर्ट को भेज दिया ताकि अपील और अतिरिक्त साक्ष्य से जुड़ी याचिका पर दोबारा विचार किया जा सके। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि चूंकि मुकदमा 1997 में दायर हुआ था, इसलिए हाई कोर्ट मामले का जल्द निपटारा करे।
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अपील को स्वीकार किया गया और दोनों पक्षों को अपने-अपने खर्च उठाने का आदेश दिया गया।
केस का शीर्षक: इकबाल अहमद (मृत) द्वारा कानूनी सलाहकार एवं अन्य बनाम अब्दुल शुकूर
केस संख्या: सिविल अपील संख्या 10458/2010
निर्णय की तिथि: 22 अगस्त 2025