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बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुलिस को पांच साल के जुड़वां बच्चे की कस्टडी दादी से पिता को सौंपने का आदेश दिया

Shivam Y.

प्रवीण नाथलाल पारघी पुत्र स्वर्गीय श्री नाथलाल पारघी बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य। - बॉम्बे हाई कोर्ट ने कल्याण और प्राकृतिक संरक्षकता अधिकारों पर जोर देते हुए 5 वर्षीय जुड़वां लड़के की कस्टडी दादी से पिता को देने का निर्देश दिया।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुलिस को पांच साल के जुड़वां बच्चे की कस्टडी दादी से पिता को सौंपने का आदेश दिया

एक संवेदनशील अभिरक्षा विवाद में, जिसमें पिता का सामना अपनी ही मां से हुआ, बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को पुलिस को निर्देश दिया कि वे पाँच वर्षीय लड़के की अभिरक्षा उसकी दादी से लेकर पिता को दो हफ्तों के भीतर सौंप दें। यह फैसला प्रवीण नाथलाल पर्गी बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य में 4 सितम्बर 2025 को न्यायमूर्ति रविंद्र वी. घुगे और न्यायमूर्ति गौतम ए. अंकाड की खंडपीठ ने सुनाया।

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पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता प्रवीण पर्गी मुंबई महानगरपालिका (MCGM) में मुक़ादम के पद पर कार्यरत हैं। वे नवंबर 2019 में सरोगेसी के माध्यम से जन्मे जुड़वां बेटों के जैविक पिता हैं। इनमें से एक बेटा, लक्ष्य, उनके पास है जबकि दूसरा बेटा, लव्य, उनकी 74 वर्षीय मां (प्रतिवादी संख्या 5) के पास है।

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मामले के दस्तावेज़ों के अनुसार, जन्म के तुरंत बाद स्वास्थ्य जटिलताओं के चलते यह व्यवस्था की गई थी। समय बीतने के साथ, विशेषकर कोविड-19 लॉकडाउन हटने के बाद, परिवार में विवाद गहराए। पर्गी ने फैमिली कोर्ट में अभिरक्षा याचिकाएँ दायर कीं, पर वे अब भी लंबित हैं। इस बीच, उनकी मां ने उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता और वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत शिकायतें दर्ज कराईं।

एक बेटे से लंबे समय तक अलगाव से परेशान होकर पर्गी ने हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की और अपने बेटे की अभिरक्षा लौटाने की मांग की।

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अदालत की टिप्पणियाँ

बहस के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने ज़ोर दिया कि पति-पत्नी में कोई वैवाहिक विवाद नहीं है और दोनों माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल करने में सक्षम हैं। अधिवक्ता एम. जे. रीना रोलैंड ने कहा, “परिवारिक विवादों के कारण जुड़वां बच्चों को अलग नहीं होना चाहिए।” उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलों का हवाला दिया जिनमें कहा गया था कि प्राकृतिक अभिभावकों का पहला अधिकार होता है, जब तक वे अयोग्य साबित न हों।

दादी के वकीलों ने बिल्कुल अलग तस्वीर पेश की। उनका आरोप था कि पर्गी और उनकी पत्नी ने जन्म के समय ही बच्चों को "बोझ" कहकर ठुकरा दिया और एक बच्चे को स्वेच्छा से उनकी देखभाल में छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि लव्य अब भावनात्मक रूप से उनसे जुड़ चुका है और अचानक उसे हटाना नुकसानदेह होगा। उन्होंने संपत्ति विवाद को भी इस मुकदमे के पीछे की असली वजह बताया।

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दोनों पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने स्पष्ट रुख अपनाया। निर्णय लिखते हुए न्यायमूर्ति अंकाड ने कहा:

"याचिकाकर्ता जैविक पिता और प्राकृतिक अभिभावक हैं, उन्हें अपने बेटे की अभिरक्षा का निर्विवाद कानूनी अधिकार है। दादी का भावनात्मक लगाव प्राकृतिक माता-पिता के अधिकारों पर हावी नहीं हो सकता।"

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया गौतम कुमार दास बनाम एनसीटी दिल्ली (2024) के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें पिता को बच्चे की अभिरक्षा लौटाई गई थी। न्यायाधीशों ने माना कि बच्चे के कल्याण को सर्वोपरि रखना चाहिए, परंतु ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं है जिससे साबित हो कि पिता उसकी देखभाल करने में अक्षम हैं।

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फैसला

पीठ ने आंशिक रूप से याचिका स्वीकार की। मलाड पुलिस को निर्देश दिया गया कि वे पाँच वर्षीय लव्य को दादी से लेकर दो हफ्तों में पिता को सौंप दें। सहज बदलाव सुनिश्चित करने के लिए अदालत ने दादी को तीन महीनों तक सप्ताह के दिनों में सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक बच्चे से मिलने की अनुमति दी। इस दौरान उनकी बेटियाँ भी उनके साथ रह सकती हैं।

फैसले का समापन करते हुए पीठ ने कहा:

"बच्चे का कल्याण अभिरक्षा मामलों में सर्वोच्च विचार है। जैविक माता-पिता के अधिकार तभी सीमित किए जा सकते हैं जब उनकी देखभाल बच्चे के लिए हानिकारक साबित हो।"

इस तरह, हाईकोर्ट ने इस असामान्य और कड़वे पारिवारिक विवाद को कम से कम अभी के लिए निपटा दिया - यह याद दिलाते हुए कि भावनाएँ चाहे कितनी भी तीव्र क्यों न हों, कानून प्राकृतिक अभिभावकों को सर्वोच्च अधिकार देता है।

केस का शीर्षक: प्रवीण नाथलाल पारघी पुत्र स्वर्गीय श्री नाथलाल पारघी बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

केस संख्या: रिट याचिका संख्या 2374, 2025

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