केरल हाईकोर्ट, एर्नाकुलम ने सोमवार को एनडीपीएस (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act) के तहत दोषी ठहराए गए 33 वर्षीय युवक की सजा रद्द कर दी। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष की कार्यवाही में ऐसी प्रक्रिया संबंधी कमियां थीं, जो पूरे मामले की जड़ को हिला देती हैं। जस्टिस जॉनसन जॉन ने यह फैसला क्रिमिनल अपील नंबर 447/2014 पर सुनाया।
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पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता अस्कफ, सुल्तान बथेरी निवासी अज़ीज़ का बेटा है। उसे 2011 में 250 बुप्रेनोर्फिन इंजेक्शन और कई डाईजेपाम एम्प्यूल्स के कथित कब्जे में पाए जाने पर गिरफ्तार किया गया था। वटकारा स्थित विशेष एनडीपीएस अदालत ने उसे एनडीपीएस एक्ट की धारा 22(b) और 22(c) के तहत दोषी ठहराकर सजा सुनाई थी।
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लेकिन अपील की सुनवाई में सामने आया कि महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं—जो कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के तहत अनिवार्य हैं - को नजरअंदाज कर दिया गया था। आरोपी लंबे समय से जेल में था और हाईकोर्ट ने उसके लिए अधिवक्ता आनंद महादेवन को राज्य-नियुक्त वकील नियुक्त किया था क्योंकि कोई निजी वकील उपलब्ध नहीं था।
अदालत के अवलोकन
जस्टिस जॉनसन जॉन ने दो मुख्य पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया। पहला, ट्रायल कोर्ट ने गवाहों की मुख्य गवाही को खुले अदालत में दर्ज करने के बजाय उनके हलफनामों को स्वीकार कर लिया।
इस पर जज ने कहा:
"अगर ट्रायल कोर्ट किसी महत्वपूर्ण गवाह के हलफनामे को आपराधिक मुकदमे में सबूत के रूप में स्वीकार करता है, तो इससे आरोपी को गंभीर नुकसान होता है।"
अदालत ने याद दिलाया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 276 यह कहती है कि सत्र अदालत में गवाही आरोपी की उपस्थिति में दर्ज होनी चाहिए, ताकि वकील अनुचित या अप्रासंगिक सवालों पर आपत्ति जता सके।
दूसरा, अदालत ने जब्त किए गए मादक पदार्थों की सैंपलिंग में गंभीर खामियों की ओर इशारा किया। जांच अधिकारी ने मौके पर ही नमूने लिए, जबकि एनडीपीएस एक्ट की धारा 52A के तहत मजिस्ट्रेट की देखरेख में यह प्रक्रिया होना अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट के Union of India v. Mohanlal मामले का हवाला देते हुए जज ने कहा:
"ऐसे कोई प्रावधान नहीं हैं जो कहें कि जब्ती के समय ही सैंपल लिए जाएं।"
अदालत ने यह भी कहा कि निर्धारित प्रक्रिया का पालन न करने से अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर हो जाता है।
सुप्रीम कोर्ट के Simranjit Singh v. State of Punjab और अन्य फैसलों का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि यदि जांच अधिकारी मजिस्ट्रेट की देखरेख के बिना सैंपल लेता है तो सबूत की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह उठता है।
निर्णय
अदालत ने पाया कि बचाव पक्ष की दलीलें सही हैं और अभियोजन का मामला संदेहों से भरा है। जस्टिस जॉनसन जॉन ने कहा:
"अभियोजन का मामला संदेह से मुक्त नहीं है, इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।"
इस प्रकार हाईकोर्ट ने निचली अदालत का आदेश रद्द करते हुए अस्कफ को सभी आरोपों से बरी कर दिया और तत्काल रिहा करने का आदेश दिया, जब तक कि किसी अन्य मामले में उसकी हिरासत आवश्यक न हो। अदालत ने रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि आदेश की प्रति जेल अधीक्षक को तुरंत भेजी जाए ताकि अनुपालन सुनिश्चित हो सके।
इस फैसले के साथ अदालत ने एक बार फिर साफ कर दिया कि एनडीपीएस मामलों में कड़ी सजा को देखते हुए प्रक्रिया संबंधी नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
केस का शीर्षक: असकाफ़ बनाम केरल राज्य और अन्य।
केस संख्या: 2014 की आपराधिक अपील संख्या 447
निर्णय की तिथि: 8 सितंबर 2025