राजस्थान हाई कोर्ट, जोधपुर ने 27 अगस्त 2025 को सीताराम नामक 40 वर्षीय व्यक्ति की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी। सीताराम ने निचली अदालत द्वारा उसके खिलाफ बलात्कार, मारपीट और घर में जबरन घुसने के आरोप तय करने के आदेश को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति संदीप शाह ने 18 अगस्त को आदेश सुरक्षित रखा था और माना कि मुकदमे को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है।
पृष्ठभूमि
मामला बीकानेर ज़िले की एक महिला 'एस' द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर से जुड़ा है। उसने आरोप लगाया कि 7 अक्टूबर 2022 को सीताराम - जो उसका देवर है - अपनी पत्नी गायत्री के साथ उसके घर में घुस आया और उस पर हमला किया। शिकायत के अनुसार, सीताराम ने लाठी से प्रहार किया जबकि गायत्री ने लात-घूंसों से मारपीट की। शोर सुनकर पड़ोसी दौड़े और दोनों को अलग किया।
बाद में मजिस्ट्रेट के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 164 के तहत दिए गए बयान में शिकायतकर्ता ने खुलासा किया कि घटना से तीन महीने पहले सीताराम ने उसके साथ बलात्कार किया था। यह खुलासा, जो शुरुआती एफआईआर और पुलिस बयान में नहीं था, बचाव पक्ष की दलील का मुख्य मुद्दा बन गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
याचिकाकर्ता के वकील का कहना था कि बलात्कार का आरोप बाद में 'सोची-समझी तरकीब' से लगाया गया, क्योंकि न तो एफआईआर में और न ही धारा 161 CrPC के तहत प्रारंभिक बयान में इसका ज़िक्र था। उनका आरोप था कि ट्रायल कोर्ट 'अभियोजन का तोता' बन गया है।
दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष और पीड़िता के वकील ने तर्क दिया कि धारा 164 CrPC में दिया गया बयान स्पष्ट है और पड़ोसियों की गवाही से भी इसकी पुष्टि होती है। उनका कहना था कि ट्रायल कोर्ट का आरोप तय करना बिल्कुल सही था।
न्यायमूर्ति शाह ने विचार करते हुए कहा,
"सिर्फ इसलिए कि बलात्कार का आरोप पहली बार धारा 164 CrPC के बयान में लगाया गया, इसे आरोप तय करने के चरण पर ही नकारा नहीं जा सकता।"
उन्होंने ज़ोर दिया कि इस स्तर पर अदालत को केवल यह देखना होता है कि प्रथम दृष्टया सामग्री है या नहीं, न कि मुकदमे का नतीजा क्या होगा।
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए उन्होंने समझाया कि आरोप तय करने के समय "मिनी-ट्रायल" करना अदालत का काम नहीं है, बल्कि देखना है कि गंभीर संदेह मौजूद है या नहीं।
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निर्णय
अपने अंतिम आदेश में न्यायमूर्ति शाह ने निष्कर्ष निकाला कि शिकायतकर्ता के बाद के बयान और गवाहों की पुष्टि समेत उपलब्ध साक्ष्य आरोप तय करने के लिए पर्याप्त हैं। अदालत ने कहा:
"ट्रायल कोर्ट के समक्ष पर्याप्त प्रथम दृष्टया सामग्री उपलब्ध थी कि आरोपी-पेटिशनर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 452, 341, 323, 354 और 376 के तहत आरोप तय किए जा सकें।"
इस प्रकार, हाई कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी और 19 जुलाई 2023 को राज्य बनाम सीताराम मामले में निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणियाँ केवल प्रथम दृष्टया हैं और मुकदमे के परिणाम को प्रभावित नहीं करेंगी।
अब मामला बीकानेर की ट्रायल कोर्ट में सुनवाई के लिए वापस जाएगा।
केस का शीर्षक: राजस्थान राज्य बनाम सीताराम
केस नंबर: एस.बी. आपराधिक पुनरीक्षण याचिका संख्या 964/2023
निर्णय की तिथि: 27 अगस्त 2025