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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संपत्ति विवाद में क्षेत्राधिकार स्पष्ट किया, वादी की याचिका लौटाने का आदेश

Vivek G.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा वैवाहिक स्थिति का फैसला केवल परिवार न्यायालय कर सकता है, ट्रायल कोर्ट को वादपत्र लौटाने का आदेश दिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संपत्ति विवाद में क्षेत्राधिकार स्पष्ट किया, वादी की याचिका लौटाने का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक पारिवारिक संपत्ति विवाद में क्षेत्राधिकार से जुड़ा अहम मुद्दा सुलझाया, जिसमें दूसरी शादी का दावा किया गया था। न्यायमूर्ति संदीप जैन ने साफ किया कि किसी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति पर फैसला सिविल अदालत नहीं कर सकती, यह अधिकार केवल परिवार न्यायालय का है।

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पृष्ठभूमि

यह मामला स्म्ट. वर्षा शर्मा @ सुमन द्वारा दायर किया गया था। उनका कहना था कि उन्होंने मुकेश शर्मा से उनकी पहली पत्नी रेखा की मृत्यु के बाद विवाह किया था। विवाह मार्च 2011 में हिन्दू रीति-रिवाजों से हुआ था। 2014 में मुकेश की मृत्यु हो गई और लगभग 30 करोड़ रुपये की संपत्ति छोड़ी। वर्षा का दावा था कि इस संपत्ति में उनका एक-तिहाई हिस्सा बनता है।

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लेकिन मुकेश के बेटे अजय शर्मा ने इसे सिरे से नकार दिया। उनका आरोप था कि वर्षा उनके घर में नौकरानी के रूप में काम करती थीं और उन्होंने दस्तावेज गढ़े हैं।

इसके बाद वर्षा ने गौतमबुद्ध नगर की निचली अदालत में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने खुद को मुकेश की विधिक दूसरी पत्नी घोषित करने की मांग की। सिविल जज ने 2022 में याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि इस तरह का मामला केवल परिवार न्यायालय ही सुन सकता है।

अदालत की टिप्पणियाँ

अपील में वर्षा के वकील ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट ने गंभीर गलती की है। यदि अदालत को क्षेत्राधिकार नहीं था, तो उसे पूरा मामला खारिज करने के बजाय केवल वादपत्र (plaint) वापस करना चाहिए था, ताकि परिवार न्यायालय में दायर किया जा सके।

हाईकोर्ट ने इस तर्क से सहमति जताई। न्यायमूर्ति जैन ने कहा, “वैवाहिक स्थिति पर घोषणा परिवार न्यायालय का विशेषाधिकार है। इस मामले में निचली अदालत ने अधिकार क्षेत्र पर तो सही निष्कर्ष निकाला, लेकिन पूरी याचिका खारिज कर गलती की।”

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सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि जब किसी अदालत के पास अधिकार क्षेत्र नहीं होता, तो उसे सिविल प्रक्रिया संहिता की आदेश 7 नियम 10 के तहत वादपत्र वापस करना चाहिए। इससे वादी को सक्षम अदालत में पुनः याचिका दायर करने का अवसर मिलता है और समय व कोर्ट फीस दोनों बचते हैं।

निर्णय

अंततः अदालत ने वर्षा की अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर ली। 2022 का खारिज आदेश रद्द कर दिया गया, लेकिन क्षेत्राधिकार पर निष्कर्ष को बरकरार रखा गया। निचली अदालत को निर्देश दिया गया है कि वह मूल वादपत्र लौटाए, ताकि वर्षा परिवार न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकें। न्यायमूर्ति ने कहा, “कोई लागत (कॉस्ट) नहीं दी जाएगी,” और मामले को उचित मंच पर आगे बढ़ाने के लिए छोड़ दिया।

केस का शीर्षक: श्रीमती वर्षा शर्मा @ सुमन बनाम अजय शर्मा एवं अन्य

केस संख्या: प्रथम अपील संख्या 812/2022

निर्णय की तिथि: 4 सितंबर 2025

अपीलकर्ता: श्रीमती वर्षा शर्मा @ सुमन

प्रतिवादी: अजय शर्मा एवं अन्य

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