सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक मृत आबकारी गार्ड के परिवार द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें परिवार ने दावा किया था कि उनकी मौत सीधा सड़क हादसे से जुड़ी थी और मुआवज़ा मांगा गया था। जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसने पहले ही परिवार की मांग ठुकरा दी थी।
पृष्ठभूमि
यह मामला 29 अप्रैल 2006 का है, जब पीड़ित की मोटरसाइकिल एक अन्य दोपहिया से टकरा गई थी। इस हादसे में उसके दाहिने पैर की हड्डियाँ टूट गईं और उंगली में भी फ्रैक्चर आया, साथ ही ज़ख्म भी हुआ। शुरू में स्थानीय अस्पताल में इलाज हुआ लेकिन बाद में पैर पर एक न भरने वाला ज़ख्म विकसित हो गया। 18 सितंबर 2006 को, एक बड़े अस्पताल में स्किन ग्राफ्ट सर्जरी के बाद उनकी मौत हो गई। डॉक्टरों ने मृत्यु का कारण पल्मोनरी एम्बोलिज़्म और एक्यूट मायोकार्डियल इन्फार्क्शन बताया।
मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) ने परिवार की दलील मानते हुए कहा था कि मौत दुर्घटना की जटिलताओं के कारण हुई। लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि चिकित्सा साक्ष्य इस तरह का सीधा संबंध साबित नहीं करते।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने गवाहियों का बारीकी से अध्ययन किया, खासकर उस प्लास्टिक सर्जन की जिसने सर्जरी की थी। डॉक्टर ने माना कि लंबे समय तक बिस्तर पर रहने से कभी-कभी पल्मोनरी एम्बोलिज़्म जैसी स्थिति हो सकती है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि पीड़ित की चोटें “बहुत गंभीर प्रकृति की नहीं थीं।”
साथ ही यह तथ्य भी सामने आया कि मृतक को डायबिटीज़, हल्का ब्लड प्रेशर और उच्च कोलेस्ट्रॉल की समस्या थी- जो हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ाते हैं। महत्वपूर्ण बात यह रही कि पोस्टमार्टम नहीं कराया गया, जिससे सबूतों में खामी रह गई।
पीठ ने टिप्पणी की, “सिर्फ इसलिए कि हादसे और मौत के बीच नज़दीकी समय का अंतर है… इसका यह मतलब नहीं कि बिना ठोस सबूत मौत का कारण हादसा ही था।”
निर्णय
हाईकोर्ट की दलीलों को सही मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दावा करने वाले यह साबित करने में नाकाम रहे कि दुर्घटना से लगी चोटों और मौत के बीच कोई “संभावनाओं का संतुलन” भी है। अदालत ने साफ़ किया कि दुर्घटना से हुई चोटों के लिए मुआवज़ा वैध है, लेकिन मौत से संबंधित मुआवज़ा नहीं दिया जा सकता।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मृतक की पत्नी, बच्चे और माँ द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिससे लगभग बीस साल लंबी कानूनी लड़ाई का अंत हो गया।
केस का शीर्षक: हसीना एवं अन्य बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य
केस संख्या: सिविल अपील संख्या 6621/2025
निर्णय की तिथि: 4 सितंबर, 2025