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जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने 85 वर्षीय पिता के खिलाफ एफआईआर रद्द की, आरोपों को बेतुका और दुर्भावनापूर्ण, नागरिक विवाद बताया

Shivam Y.

नानक चंद और अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और अन्य - जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने आरोपों को बेतुका और दुर्भावनापूर्ण बताते हुए 85 वर्षीय पिता के खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी; कहते हैं, नागरिक विवाद को आपराधिक के रूप में चित्रित किया गया है।

जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने 85 वर्षीय पिता के खिलाफ एफआईआर रद्द की, आरोपों को बेतुका और दुर्भावनापूर्ण, नागरिक विवाद बताया

जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट, जम्मू ने एक 85 वर्षीय व्यक्ति और उसके दो बेटों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि यह मामला महज़ एक पारिवारिक विवाद था जिसे आपराधिक रंग दिया गया। न्यायमूर्ति राजेश सेखरी ने 1 सितम्बर 2025 को आदेश सुनाते हुए कहा कि आरोप "इतने बेतुके और स्वाभाविक रूप से असंभव" हैं कि कोई भी समझदार व्यक्ति उन पर विश्वास नहीं कर सकता।

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पृष्ठभूमि

यह मामला थाना नौशहरा में दर्ज एफआईआर संख्या 0208/2022 से जुड़ा है। शिकायतकर्ता, याचिकाकर्ता नानक चंद की बहू, ने आरोप लगाया था कि 4/5 सितम्बर 2022 की रात को याचिकाकर्ताओं ने उसके ताले तोड़कर घर में घुसपैठ की, उस पर हमला किया, उसके कपड़े फाड़ दिए और सोना व नकदी चुरा ली। उसने अपने ससुर और देवरों पर उसकी अस्मिता भंग करने का भी आरोप लगाया।

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लेकिन परिवारिक कलह की जड़ें कहीं गहरी थीं। अदालत ने पाया कि नानक चंद ने 2018 में ही अपने बड़े बेटे (यानी शिकायतकर्ता के पति) को संपत्ति से बेदखल कर दिया था। यह विवाद वसीयत और पावर ऑफ अटॉर्नी को लेकर हुआ था। बेदखली के बाद लगातार कई शिकायतें, पलट-शिकायतें और दीवानी वाद दर्ज हुए।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति सेखरी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दीवानी विवादों को आपराधिक मुकदमे का रूप नहीं दिया जा सकता। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मशहूर भजन लाल फैसले का हवाला देते हुए कहा कि हाईकोर्ट की जिम्मेदारी है कि ऐसे मामलों को समय रहते रोके।

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"85 साल के ससुर और उसके बेटों द्वारा घर तोड़कर घुसना, बहू पर हमला करना और सोना-नकदी चुराना जैसे आरोप न केवल बेतुके हैं बल्कि स्वाभाविक रूप से असंभव भी हैं," जज ने टिप्पणी की।

उन्होंने आगे कहा कि एफआईआर का मकसद दुर्भावनापूर्ण था और वृद्ध याचिकाकर्ता पर संपत्ति संबंधी दबाव डालना था।

अदालत ने शिकायतकर्ता की बातों में विरोधाभास भी पाया। जहाँ उसने नकदी और गहनों की चोरी का दावा किया, वहीं किसी गवाह ने इस आरोप की पुष्टि नहीं की। जाँच के दौरान भी शारीरिक उत्पीड़न के आरोप को समर्थन नहीं मिला।

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"अदालत को आरोपों के रूप की बजाय उनके वास्तविक सार पर ध्यान देना चाहिए,"

न्यायमूर्ति सेखरी ने कहा, यह चेतावनी देते हुए कि चालाकी से लिखी शिकायतें दीवानी मामलों को आपराधिक रूप नहीं दे सकतीं।

निर्णय

अंततः अदालत ने माना कि शिकायत दरअसल बेटे को संपत्ति से बेदखल करने के प्रतिशोध में की गई थी।

आदेश में कहा गया, "विवादित एफआईआर निजी प्रतिशोध और बेदखली के गुस्से को निकालने के लिए दर्ज की गई थी।"

इसी के साथ याचिका स्वीकार कर ली गई और एफआईआर व उससे जुड़े सभी कार्यवाही को खारिज कर दिया गया।

केस का शीर्षक: नानक चंद और अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और अन्य

केस नंबर: CRM(M) No. 786/2022

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