Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ज़ाइडस वेलनेस का ट्रेडमार्क मुक़दमा अनिवार्य मध्यस्थता प्रक्रिया को दरकिनार करने पर ख़ारिज किया

Shivam Y.

ज़ाइडस वेलनेस प्रोडक्ट्स लिमिटेड बनाम करनाल फूड्स पैक क्लस्टर लिमिटेड और अन्य - हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम की धारा 12ए के तहत अनिवार्य पूर्व-मुकदमेबाजी मध्यस्थता को छोड़ने के लिए ज़ाइडस वेलनेस ट्रेडमार्क मुकदमे को खारिज कर दिया।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ज़ाइडस वेलनेस का ट्रेडमार्क मुक़दमा अनिवार्य मध्यस्थता प्रक्रिया को दरकिनार करने पर ख़ारिज किया

शिमला स्थित हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ज़ाइडस वेलनेस प्रोडक्ट्स लिमिटेड द्वारा दायर ट्रेडमार्क उल्लंघन का मुकदमा ख़ारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि कंपनी ने कमर्शियल कोर्ट्स एक्ट, 2015 के तहत अनिवार्य पूर्व-विवाद मध्यस्थता प्रक्रिया का पालन नहीं किया। न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने यह आदेश 29 अगस्त 2025 को पारित किया, जब कर्नाल फूड्स पैक क्लस्टर लिमिटेड और अन्य की ओर से दाख़िल आवेदन पर सुनवाई हुई।

Read in English

पृष्ठभूमि

ग्लूकोन-डी जैसे प्रसिद्ध ऊर्जा पेय मिश्रण की निर्माता कंपनी ज़ाइडस ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था। कंपनी का आरोप था कि प्रतिवादी ग्लूकोज़-डी, ग्लूकोस्पून-डी और ग्लूकोज़-सी नाम से समान उत्पाद बेच रहे थे, जिनके नाम और पैकेजिंग उसके पंजीकृत ट्रेडमार्क से भ्रामक रूप से मिलते-जुलते हैं और यह उल्लंघन है।

Read also:- गौहाटी हाईकोर्ट ने असम की महिला को विदेशी घोषित करने वाले ट्रिब्यूनल के आदेश को नए सिरे से समीक्षा हेतु लौटाया

कंपनी ने कई राहतें मांगी थीं - जैसे प्रतिवादियों को विवादित ब्रांड का उपयोग रोकने का आदेश, जब्त उत्पादों का नष्टिकरण, एक करोड़ से अधिक रुपये का हर्जाना और ग्लूकोन-डी को प्रसिद्ध ट्रेडमार्क घोषित करना।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों का कहना था कि वाद सुनवाई योग्य ही नहीं है, क्योंकि कमर्शियल कोर्ट्स एक्ट की धारा 12A के तहत पहले मध्यस्थता की प्रक्रिया पूरी करना अनिवार्य है। केवल उन्हीं मामलों में सीधा मुक़दमा दायर हो सकता है, जहाँ तत्काल अंतरिम राहत की आवश्यकता हो।

Read also:- छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राजस्व अधिकारी को लंबित मुआवजा विवाद का तीन महीने में निपटारा करने का निर्देश दिया

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति गोयल ने समयरेखा का बारीकी से अध्ययन किया। ज़ाइडस ने पहली बार अप्रैल 2023 में नोटिस भेजा था और कई बार अनुस्मारक भेजे। मगर कंपनी ने मुक़दमा 2025 में दायर किया, यह कहते हुए कि बिक्री जारी रहने और दिसंबर 2024 में एक व्हाट्सएप ऑफ़र मिलने से नई तात्कालिकता उत्पन्न हुई।

न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि अप्रैल 2023 से लेकर मुक़दमा दायर होने तक "कोई गुणात्मक नया विकास" सामने नहीं आया।

Read also:- कर्नाटक हाई कोर्ट ने संपत्ति विवाद में निचली अदालत को चार हफ्तों में स्थगन याचिका पर निर्णय लेने का निर्देश दिया

अदालत ने कहा,

"आवेदन पूरी तरह चुप है कि ऐसा क्या था जिसने तत्काल राहत की आवश्यकता बनाई, जिससे धारा 12A की वैधानिक शर्त को दरकिनार किया गया।"

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फ़ैसलों - पाटिल ऑटोमेशन (2022) और यामिनी मनोहर (2024) - का हवाला देते हुए अदालत ने दोहराया कि व्यावसायिक विवादों में मध्यस्थता पहली अनिवार्य सीढ़ी है, जब तक कि वास्तविक और तात्कालिक राहत की आवश्यकता न हो। न्यायाधीश ने चेतावनी दी कि तत्काल राहत का दावा "मात्र एक नक़ाब" बनकर कानूनी प्रक्रिया से बचने का साधन नहीं होना चाहिए।

Read also:- जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने भूपिंदर कुमार की पीएसए के तहत की गई निवारक हिरासत को रद्द किया, अधिकारों के उल्लंघन का हवाला

निर्णय

हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ज़ाइडस के पास मध्यस्थता प्रक्रिया से बचने का कोई उचित कारण नहीं था। न्यायमूर्ति गोयल ने कहा, "वादी का धारा 12A को दरकिनार करना स्वीकार्य नहीं है।” अदालत ने स्पष्ट किया कि वाद को सिविल प्रक्रिया संहिता की आदेश 7 नियम 11(ड) के तहत ख़ारिज किया जाता है।

इस प्रकार, अदालत ने वादी का plaint (वादपत्र) ख़ारिज कर दिया और लंबित आवेदनों को निपटा दिया। आदेश का मतलब यह है कि ज़ाइडस को अब दुबारा शुरुआत करनी होगी और यह संदेश साफ़ है कि व्यावसायिक मुक़दमे बिना वैधानिक मध्यस्थता प्रक्रिया के सीधे अदालत में नहीं लाए जा सकते।

केस का शीर्षक: ज़ाइडस वेलनेस प्रोडक्ट्स लिमिटेड बनाम करनाल फ़ूड्स पैक क्लस्टर लिमिटेड और अन्य

केस संख्या: OMP No. 644 of 2025 in COMS No. 1 of 2025

Advertisment

Recommended Posts