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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कब्ज़ा विवाद में लोक कमीश्नर नियुक्ति पर ट्रायल कोर्ट का आदेश किया रद्द

Shivam Y.

धनी राम @ धनु बनाम बंदी देवी - हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने भूमि अतिक्रमण मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा स्थानीय आयुक्त के अनुरोध को अस्वीकार करने को रद्द कर दिया; नए सिरे से विचार करने का निर्देश देता है।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कब्ज़ा विवाद में लोक कमीश्नर नियुक्ति पर ट्रायल कोर्ट का आदेश किया रद्द

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट, शिमला ने उस ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें एक अर्जी खारिज कर दी गई थी, जिसमें लोक कमीश्नर की नियुक्ति की मांग की गई थी। यह आदेश न्यायमूर्ति बिपिन चंदर नेगी ने 5 सितंबर 2025 को सुनाया। मामला धनी राम @ धन्नू बनाम बंदी देवी से जुड़ा हुआ था।

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पृष्ठभूमि

यह विवाद मंडी जिले की एक ज़मीन को लेकर है, जहाँ धनी राम ने स्थायी निषेधाज्ञा (permanent prohibitory injunction) मांगी थी ताकि प्रतिवादी बंदी देवी को निर्माण कार्य करने से रोका जा सके। इसके साथ ही उन्होंने अनिवार्य निषेधाज्ञा (mandatory injunction) की भी मांग की थी, जिससे मुकदमे की अवधि में किए गए किसी भी निर्माण को ध्वस्त किया जा सके।

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ट्रायल कोर्ट में दोनों पक्षों की गवाही पूरी हो चुकी थी। इसी दौरान धनी राम ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 26 नियम 9 के तहत आवेदन किया, जिसमें लोक कमीश्नर की नियुक्ति की मांग की गई। इस प्रावधान के तहत अदालत मौके पर जाकर तथ्य स्पष्ट करने के लिए जांच करवा सकती है।

दूसरी ओर, बंदी देवी ने सभी आरोपों से इनकार किया और याद दिलाया कि 2006 में पहले ही सीमांकन (demarcation) हो चुका है, जिसमें किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं पाया गया था। उनका कहना था कि बनाई गई सीमा दीवार उनकी ही ज़मीन पर है।

अदालत की टिप्पणियाँ

ट्रायल कोर्ट ने इस आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मुख्य वाद में कब्ज़े की राहत (possession) की मांग नहीं की गई है और लोक कमीश्नर नियुक्ति के लिए अर्जी सही तरह से लिखी नहीं गई थी।

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न्यायमूर्ति नेगी ने इस तर्क को सख़्ती से खारिज किया। उन्होंने कहा,

"खारिज करने के आधार त्रुटिपूर्ण हैं।"

न्यायाधीश ने यह भी टिप्पणी की कि तकनीकी बिंदुओं पर ज़्यादा ध्यान देना और न्याय के बड़े उद्देश्य को नज़रअंदाज़ करना अत्यधिक तकनीकी दृष्टिकोण है, जो वास्तविक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।

हाईकोर्ट ने साफ किया कि आदेश 26 नियम 9 CPC का असली मक़सद किसी पक्षकार को वह सबूत जुटाने में मदद करना नहीं है, जिसे वह खुद भी ला सकता है, बल्कि केवल उन्हीं स्थितियों में है जब उपलब्ध रिकॉर्ड विवाद को सुलझाने के लिए पर्याप्त न हो।

न्यायाधीश नेगी ने कहा,

"इसका उद्देश्य केवल उस विवादित तथ्य को स्पष्ट करना है जिसके लिए मौके पर जांच आवश्यक हो।"

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निर्णय

अंतिम आदेश में हाईकोर्ट ने 6 मार्च 2021 को पारित ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और मामला दोबारा विचार हेतु निचली अदालत को भेज दिया।

अदालत ने निर्देश दिया कि धनी राम की अर्जी पर ट्रायल कोर्ट उपलब्ध साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए फिर से विचार करे। यदि अदालत को लगे कि मौजूदा रिकॉर्ड से विवाद का समाधान संभव नहीं है, तभी लोक कमीश्नर नियुक्त किया जाए।

दोनों पक्षों को 25 सितंबर 2025 को ट्रायल कोर्ट में उपस्थित होने के लिए कहा गया।

केस का शीर्षक: धनी राम @ धनु बनाम बंदी देवी

केस नंबर: CMPMO No. 68 of 2021

निर्णय तिथि: 5 सितंबर 2025

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