राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर ने एक संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण आदेश में राज्य अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वेतनवृद्धि और ग्रीष्मकालीन अवकाश के वेतन से वंचित किए जाने को लेकर शिक्षकों के समूह द्वारा उठाई गई शिकायतों पर तय समय सीमा के भीतर निर्णय लें। याचिकाकर्ता, मीनाक्षी पारीक और तीन अन्य ने सेवा लाभों में भेदभाव का आरोप लगाते हुए अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था।
पृष्ठभूमि
मामला लंबे समय से चल रहे उस विवाद से जुड़ा है जिसमें शिक्षकों की वार्षिक वेतनवृद्धि और अवकाश वेतन की गणना पर सवाल उठते रहे हैं, खासकर उनके लिए जिन्होंने शैक्षणिक सत्र के बीच में सेवा ज्वाइन की। याचिकाकर्ताओं ने योगेश कुमार पारीक बनाम राज्य राजस्थान (2014) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें जयपुर पीठ ने साफ कहा था कि नियमित नियुक्त शिक्षक- even अगर दिसंबर के बाद नियुक्त हुए हों - ग्रीष्मकालीन अवकाश वेतन और नियुक्ति की तारीख से ही समय पर वेतनवृद्धि पाने के हकदार हैं।
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इसके बावजूद, याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ज़िला शिक्षा अधिकारियों ने उन्हें यह लाभ देने से इनकार कर दिया। उनका आरोप था कि उनकी वेतनवृद्धि लगभग दो महीने आगे खिसका दी गई और अवकाश वेतन भी रोका गया।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति नूपुर भाटी ने माना कि यह विवाद अब "रेस इंटिग्रा नहीं रहा" (अब विवादित नहीं है), क्योंकि 2014 के फैसले में सिद्धांत पहले ही तय हो चुका है। पीठ ने शिक्षा विभाग के 28 जुलाई 2003 के परिपत्र की भी याद दिलाई, जिसमें साफ लिखा गया था कि प्रोबेशन पर भी नियुक्त शिक्षक ग्रीष्मकालीन अवकाश वेतन पाने के हकदार होंगे।
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"प्रभारी अधिकारी उत्तरदाताओं की कार्रवाई को सही ठहराने में असमर्थ रहा," - यह टिप्पणी पहले के आदेश में की गई थी, जिस पर वर्तमान पीठ ने भी भरोसा किया।
पूरा विवाद फिर से खोलने के बजाय, अदालत ने यह स्वीकार किया कि यदि उनकी अर्जी पर 2014 के फैसले की रोशनी में विचार कर लिया जाए, तो याचिकाकर्ता संतुष्ट रहेंगे।
निर्णय
इसी आधार पर, हाईकोर्ट ने रिट याचिका को बंद करते हुए स्पष्ट निर्देश दिए। याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर एक विस्तृत प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करना होगा। राज्य को, बदले में, प्रतिनिधित्व प्राप्त होने के बारह सप्ताह के भीतर एक कारणयुक्त और "स्पीकिंग" आदेश पारित करना होगा।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि राहत केवल तभी दी जाएगी जब याचिकाकर्ताओं के दावे सही पाए जाएँ। यदि उनकी बात सही निकली तो सरकार को वित्तीय और सेवा लाभ देने ही होंगे।
इन्हीं निर्देशों के साथ रिट याचिका और स्थगन प्रार्थना दोनों का निस्तारण कर दिया गया।
केस का शीर्षक: मीनाक्षी पारीक एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य
केस संख्या: एस.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 17076/2025