Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्व होटल निदेशक के टीडीएस डिफॉल्ट मामले में अधिक कम्पाउंडिंग शुल्क की मांग रद्द की

Shivam Y.

संगीत सेठ बनाम मुख्य आयकर आयुक्त एवं अन्य - दिल्ली उच्च न्यायालय ने टीडीएस डिफ़ॉल्ट मामले में आयकर विभाग की 5% कंपाउंडिंग शुल्क की मांग को खारिज कर दिया, केवल 3% लागू होने का नियम।

दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्व होटल निदेशक के टीडीएस डिफॉल्ट मामले में अधिक कम्पाउंडिंग शुल्क की मांग रद्द की

दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को एक पूर्व होटल निदेशक को राहत देते हुए आयकर विभाग का वह पत्र रद्द कर दिया जिसमें अधिक कम्पाउंडिंग शुल्क की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति विनोद कुमार की खंडपीठ ने कहा कि विभाग ने 3% के स्थान पर 5% शुल्क की मांग गलत तरीके से की थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि कम्पाउंडिंग दिशा-निर्देशों का दुरुपयोग हुआ है।

Read in English

पृष्ठभूमि

यह मामला वर्ष 2009–10 से जुड़ा है, जब वेलवेट एप्पल होटल प्रा. लि. के निदेशक रहे संगीता सेठ ने लगभग ₹6.11 लाख का स्रोत पर कर कटौती (TDS) समय पर जमा नहीं किया। बाद में ब्याज समेत राशि जमा कर दी गई, फिर भी आयकर अधिनियम के तहत अभियोजन शुरू कर दिया गया।

Read also:- बॉम्बे हाईकोर्ट ने गोवंडी हत्या-डकैती मामले में आठ साल से जेल में बंद आरोपी को दी जमानत

सेठ ने 2014 में पहली बार कम्पाउंडिंग के लिए आवेदन किया था, परंतु वित्तीय तंगी के कारण शुल्क जमा न कर पाने की वजह से आवेदन खारिज हो गया। 2017 में दोबारा आवेदन करने पर इसे 3% की दर से स्वीकार किया गया और उन्होंने टैक्स, ब्याज, जुर्माना और कम्पाउंडिंग शुल्क मिलाकर ₹18.99 लाख से अधिक जमा कर दिया। मगर 2019 में विभाग ने अचानक एक नया पत्र जारी कर अतिरिक्त 5% शुल्क की मांग की और कहा कि सेठ ने पहले के आवेदन का ज़िक्र गलत किया है।

अदालत की टिप्पणियाँ

जजों ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) की 2014 की गाइडलाइन्स का गहराई से अध्ययन किया। इन गाइडलाइन्स के मुताबिक, 5% कम्पाउंडिंग शुल्क केवल उन्हीं मामलों में लिया जा सकता है जहाँ पहले अपराध को वास्तव में कम्पाउंड किया गया हो।

Read also:- जूनियर कोर्ट असिस्टेंट भर्ती के लिए सुप्रीम कोर्ट ने घोषित किए वर्णनात्मक परीक्षा के परिणाम, 2500 से अधिक उम्मीदवार शॉर्टलिस्ट

न्यायमूर्ति राव ने कहा,

"उच्च दर लगाने का उद्देश्य अनुपालन को प्रोत्साहित करना है। लेकिन यह तभी लागू होता है जब पहला अपराध कम्पाउंड हो चुका हो। यदि आवेदन ही खारिज हो गया तो 5% का सवाल ही नहीं उठता।"

खंडपीठ ने अपने पहले के फैसले मास्पार इंडस्ट्रीज प्रा. लि. बनाम चीफ कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स का भी हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि खारिज हुए और कम्पाउंड हुए आवेदनों में अंतर किया जाना ज़रूरी है। अदालत ने ज़ोर दिया कि चूंकि सेठ का पहला आवेदन कभी कम्पाउंड नहीं हुआ था, इसलिए 2019 का पत्र नियमों की गलत व्याख्या पर आधारित है।

Read also:- दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला की बेदखली रोकने की अर्जी खारिज की, कहा पति की ओर से दायर याचिका मान्य नहीं

निर्णय

सुनवाई समाप्त करते हुए खंडपीठ ने आयकर विभाग का 08.02.2019 का पत्र रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि प्राधिकरण कानून के अनुसार आगे बढ़े और 3% कम्पाउंडिंग शुल्क को मान्य माने।

अदालत ने कहा, "दिनांक 08.02.2019 का पत्र रद्द किया जाता है।"

याचिका को इसी आधार पर निपटाया गया और लंबित आवेदनों को निरर्थक मानते हुए खारिज कर दिया गया।

केस का शीर्षक: संगीत सेठ बनाम मुख्य आयकर आयुक्त एवं अन्य

केस संख्या: W.P.(C) 16569/2023 एवं CM APPL. 66783/2023

Advertisment

Recommended Posts