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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पति को दिया तलाक, पत्नी के आत्मदाह प्रयास को माना मानसिक क्रूरता

Shivam Y.

हीरालाल मीना बनाम श्रीमती. रामा @ रामेती - मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 2003 के विवाह को भंग कर दिया, पत्नी के आत्मदाह के प्रयास को मानसिक क्रूरता माना, 2006 के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को पलट दिया।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पति को दिया तलाक, पत्नी के आत्मदाह प्रयास को माना मानसिक क्रूरता

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर ने हीरालाल मीना और उनकी पत्नी रमा @ रमेटी के विवाह को निरस्त कर दिया, और 2006 की पारिवारिक अदालत के फैसले को पलट दिया। न्यायमूर्ति विशाल धागट और न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने 26 अगस्त 2025 को यह फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि पत्नी द्वारा खुद को आग लगाना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।

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पृष्ठभूमि

हीरालाल और रमा का विवाह अप्रैल 2003 में हिंदू रीति-रिवाजों से हुआ था। इस विवाह से एक बेटी का जन्म हुआ। लेकिन 2005 तक दोनों के रिश्ते में तनाव गहराता चला गया। पति का आरोप था कि पत्नी न केवल उसका अपमान करती थी बल्कि छोटी-छोटी बातों पर धमकियां भी देती थी। हालात तब गंभीर हो गए जब जून 2005 में पत्नी ने कथित तौर पर खुद को आग के हवाले कर दिया और गंभीर रूप से झुलस गई।

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दूसरी ओर, पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके ससुराल वालों ने उसे आग लगाई थी, हालांकि उसने इस संबंध में कोई एफआईआर दर्ज नहीं कराई। उसका कहना था कि उसने "समाज के सम्मानित लोगों" की सलाह पर ऐसा नहीं किया।

2006 में पारिवारिक अदालत ने पति की तलाक याचिका खारिज कर दी थी, यह मानते हुए कि उसके आरोप साबित नहीं हुए। इसके बाद हीरालाल ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।

अदालत की टिप्पणियाँ

हाईकोर्ट ने सबूतों का गहराई से परीक्षण किया और पाया कि पत्नी ने अपने इस दावे के समर्थन में कोई पड़ोसी या स्वतंत्र गवाह पेश नहीं किया कि उसके ससुराल वालों ने उसे जलाया।

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पीठ ने कहा,

"आरोपियों पर आपराधिक मामला दर्ज न कराने का उसका स्पष्टीकरण तब कुछ मायने रखता अगर बाद में दांपत्य संबंध सामान्य हो गए होते। लेकिन स्थिति और बिगड़ती चली गई।"

वहीं पति का यह कहना कि यह आत्मदाह का मामला था, पूरे मामले में सुसंगत बना रहा। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि ऐसा चरम कदम स्वाभाविक रूप से दूसरे जीवनसाथी में भय और असुरक्षा पैदा करता है, जिससे वैवाहिक जीवन की नींव हिल जाती है।

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जजों ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने सुलह-समझौता (मेडिएशन) कार्यवाही पर भरोसा किया, जबकि ऐसी बातचीत गोपनीय रहनी चाहिए थी। हाईकोर्ट ने इसे "अनुचित और भ्रामक" बताया और कहा कि निष्कर्ष केवल सबूतों के आधार पर ही होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय समर घोष बनाम जया घोष (2007) का हवाला देते हुए पीठ ने दोहराया कि सामान्य झगड़े तलाक का आधार नहीं होते, लेकिन ऐसे कृत्य जो गंभीर मानसिक आघात और भय उत्पन्न करें, वे मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आते हैं।

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फैसला

अदालत ने माना कि पत्नी का आत्मदाह प्रयास और उसके बाद का व्यवहार मानसिक क्रूरता है। इसलिए पति की अपील स्वीकार कर ली गई। 2003 में संपन्न हुआ विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया।

जजों ने टिप्पणी की,

"यह भयावह कृत्य अपने आप में यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि पत्नी ने मानसिक क्रूरता की है।"

लगभग दो दशक पुराने इस मामले का निपटारा आखिरकार अपीलीय स्तर पर हुआ।

केस का शीर्षक: हीरालाल मीना बनाम श्रीमती। राम@रामेति

केस नंबर: प्रथम अपील नंबर 133, 2007

फैसले की तारीख: 26 अगस्त 2025

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