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गौहाटी हाईकोर्ट ने एसबीआई ऋण विवाद अपील में सरफेसी एक्ट के तहत प्री-डिपॉजिट शर्त पर सवाल उठाए

Shivam Y.

उमेश चंद्र दास बनाम भारतीय स्टेट बैंक और 2 अन्य - गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने एसएआरएफएईएसआई ऋण अपील में एसबीआई की 35% पूर्व-जमा की मांग पर सवाल उठाया, उधारकर्ता उमेश दास को अंतरिम राहत प्रदान की।

गौहाटी हाईकोर्ट ने एसबीआई ऋण विवाद अपील में सरफेसी एक्ट के तहत प्री-डिपॉजिट शर्त पर सवाल उठाए

गौहाटी हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सरफेसी एक्ट के तहत अपीलों के लिए भारी प्री-डिपॉजिट की अनिवार्यता पर अहम सवाल खड़े किए। मामला उमेश चंद्र दास द्वारा दाखिल याचिका का था, जिन्होंने डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) के आदेश को चुनौती दी थी। उस आदेश में कहा गया था कि उनकी अपील सुनने से पहले उन्हें विवादित ऋण राशि का 35% जमा करना होगा।

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पृष्ठभूमि

दास ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से लगभग ₹1.46 करोड़ का ऋण लिया था। उनका कहना है कि ऋण व्यवस्था के तहत किसी संपत्ति को बंधक रखने की कोई सहमति नहीं हुई थी। विवाद तब शुरू हुआ जब बैंक ने दावा किया कि उन्होंने मूल बिक्री विलेख जमा कर इक्विटेबल मॉर्गेज बना दिया था। दास ने इसका विरोध किया और कहा कि मूल विलेख अभी भी उनके पास है।

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जब बैंक ने उनकी आपत्तियों को खारिज कर दिया, तो उन्होंने डीआरटी का दरवाजा खटखटाया। लेकिन ट्रिब्यूनल ने भी उनकी दलील स्वीकार नहीं की और साथ ही अपील दायर करने के लिए बकाया राशि का 35% जमा करने का निर्देश दिया। इसी आदेश के खिलाफ वे हाईकोर्ट पहुंचे।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

मुख्य न्यायाधीश अशुतोष कुमार और न्यायमूर्ति अरुण देव चौधरी की पीठ ने यह जांचा कि क्या इतनी बड़ी राशि जमा करना तब भी अनिवार्य है जब अपील मुख्य ऋण विवाद के बजाय केवल एक सीमित प्रक्रिया संबंधी आदेश के खिलाफ हो।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उनकी अपील केवल डीआरटी द्वारा बिक्री विलेख को वैज्ञानिक जांच के लिए भेजने से इंकार करने के आदेश को चुनौती देती है।

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उनके वकील ने कहा, "इतनी सीमित चुनौती के लिए किसी को इतनी बड़ी रकम क्यों जमा करनी चाहिए?"

सरफेसी एक्ट की धारा 18 का हवाला देते हुए अदालत ने नोट किया कि कानून के अनुसार उधारकर्ता को ऋण की 50% राशि जमा करनी होती है (जिसे अपीलीय प्राधिकरण 25% तक घटा सकता है)। सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि "किसी भी आदेश" शब्द को इतना व्यापक अर्थ नहीं दिया जा सकता कि हर छोटे आदेश पर भी यह लागू हो।

पीठ ने टिप्पणी की,

"सवाल यह है कि क्या दस्तावेज़ की जांच से संबंधित इनकार वाला आदेश भी ‘किसी भी आदेश’ की श्रेणी में आता है, जिस पर अनिवार्य जमा लागू होता है।"

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साथ ही, न्यायाधीशों ने याद दिलाया कि अदालतों ने लगातार यह माना है कि प्री-डिपॉजिट शर्त अनिवार्य है, जब तक कि उधारकर्ता वास्तविक कठिनाई साबित न कर दे। इस मामले में दास की ओर से आर्थिक कठिनाई का कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया।

निर्णय

बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अंतिम फैसला तो सुरक्षित रखा लेकिन एसबीआई और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि जब तक यह रिट याचिका तय नहीं हो जाती, डीआरटी केवल इसलिए अपील को खारिज नहीं करेगा कि दास ने 35% राशि जमा नहीं की।

अब यह मामला 24 अक्टूबर 2025 को फिर से सूचीबद्ध होगा, जब प्रतिवादी अपना जवाब दाखिल करेंगे।

केस का शीर्षक: उमेश चंद्र दास बनाम भारतीय स्टेट बैंक और 2 अन्य

केस संख्या: WP(C)/5143/2025

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