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इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: मल्टीप्लेक्स निर्माण वैध, सिनेमा भूमि पर त्यागी परिवार की अपील खारिज

Shivam Y.

श्रीमती अर्चना त्यागी और 4 अन्य बनाम यदुराज नारायण - इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने त्यागी परिवार की अपील खारिज कर दी, नंदन सिनेमा के लिए उपहार में दी गई भूमि पर मल्टीप्लेक्स निर्माण को वैध करार दिया, जिससे दशकों पुराना विवाद समाप्त हो गया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: मल्टीप्लेक्स निर्माण वैध, सिनेमा भूमि पर त्यागी परिवार की अपील खारिज

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (4 सितंबर 2025) को एक लंबे समय से चले आ रहे पारिवारिक संपत्ति विवाद में अहम फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि जिस ज़मीन को पहले सिनेमा हाल बनाने के लिए गिफ्ट किया गया था, उस पर मल्टीप्लेक्स का निर्माण करना गिफ्ट डीड की शर्तों का उल्लंघन नहीं है। जस्टिस संदीप जैन की एकल पीठ ने स्म्ट. अर्चना त्यागी और अन्य चार लोगों द्वारा यदुराज नारायण के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया और मार्च 2024 के ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।

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पृष्ठभूमि

यह विवाद 1968 में रघुकुल नारायण द्वारा किए गए दो गिफ्ट डीड से जुड़ा है। उन्होंने मेरठ की अपनी ज़मीन का हिस्सा अपने भतीजे यदुराज नारायण को दिया था। इन डीड में खास तौर पर शर्त रखी गई थी कि ज़मीन पर सिनेमा हाल बनाया जाएगा। यदुराज ने इस शर्त का पालन करते हुए 1974 में मशहूर नंदन सिनेमा बनाया, जो लगभग 47 साल तक चला।

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मामला 2019 में तब खड़ा हुआ जब त्यागी परिवार को पता चला कि पुराना सिंगल-स्क्रीन थिएटर तोड़कर उसी जगह मल्टीप्लेक्स बनाया जा रहा है। परिवार का कहना था कि यह गिफ्ट की शर्तों का उल्लंघन है। उन्होंने नोटिस भेजे और 2021 में मुकदमा दायर कर दिया। इसमें उन्होंने कब्ज़ा, स्थायी निषेधाज्ञा और यहाँ तक कि ₹33,300 प्रतिदिन मेस्ने मुनाफ़ा (उपयोग लाभ) की मांग भी की।

अदालत की टिप्पणियाँ

हाईकोर्ट ने 1968 के डीड की भाषा का बारीकी से परीक्षण किया। जस्टिस जैन ने कहा:

"दाता ने केवल सिनेमा हाल बनाने के लिए भूमि गिफ्ट की थी… लेकिन यह कहीं नहीं लिखा था कि वह हाल हमेशा बना रहेगा।"

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न्यायाधीश ने यह भी रेखांकित किया कि नंदन सिनेमा नियमपूर्वक बनाया गया और दशकों तक चला। अगर यह मान लिया जाए कि पुरानी इमारत को हमेशा बनाए रखना ज़रूरी था, तो यह “गिफ्ट डीड की एक अव्यावहारिक व्याख्या” होगी।

अदालत ने आगे कहा,

"अगर अपीलकर्ताओं की व्याख्या मान ली जाए तो इसका मतलब होगा कि प्राप्तकर्ता 50 साल बाद भी जर्जर इमारत को बदल नहीं पाएगा, जो कि अनुचित है।"

कोर्ट ने यह भी माना कि मल्टीप्लेक्स भले ही आधुनिक रूप में हो, लेकिन इसका मूल उद्देश्य वही है - जनता को फिल्म दिखाना। पॉपकॉर्न या कॉफी बेचने जैसी दुकानें सिर्फ सहायक गतिविधियाँ हैं।

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निर्णय

अंतिम आदेश में अदालत ने कहा कि यदुराज नारायण ने गिफ्ट की मुख्य शर्त का पालन करते हुए सिनेमा हाल बनाया और लगभग आधी सदी तक उसे चलाया। एक बार यह शर्त पूरी हो गई तो ज़मीन का मालिकाना हक़ उसी को मिल गया और दाता के उत्तराधिकारी गिफ्ट को रद्द नहीं कर सकते।

"चूंकि प्राप्तकर्ता ने गिफ्ट की शर्तों का पूरी तरह पालन किया है… इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उसने किसी तरह का उल्लंघन किया है," जस्टिस जैन ने कहा।

अपील इस प्रकार खारिज कर दी गई और दोनों पक्षों को अपने-अपने खर्च उठाने का निर्देश दिया गया।

इस फैसले के साथ ही त्यागी परिवार की ज़मीन वापस लेने की कोशिश खत्म हो गई और मेरठ में मल्टीप्लेक्स प्रोजेक्ट के रास्ते साफ हो गए।

केस का शीर्षक: श्रीमती अर्चना त्यागी एवं 4 अन्य बनाम यदुराज नारायण

केस संख्या: प्रथम अपील संख्या 381/2024

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