दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए केएनआर तिरुमला इंफ्रा प्रा. लि. की याचिका खारिज कर दी। कंपनी ने चाहा था कि वह अपना मध्यस्थ (Arbitrator) एसएआरओडी (Society for Affordable Redressal of Disputes) के पैनल से बाहर से नियुक्त करे। मामला राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) से जुड़े 200 करोड़ रुपये से अधिक के दावों का है, जो आंध्र प्रदेश में एक छह-लेन परियोजना से जुड़ा हुआ है।
पृष्ठभूमि
विवाद भारतमाला परियोजना के तहत चित्तूर से मल्लावरम तक एनएच-140 चौड़ीकरण को लेकर खड़ा हुआ। केएनआर तिरुमला इंफ्रा ने 2018 में यह ठेका हाइब्रिड एन्युटी मोड पर जीता था। काम में बाधाओं और भुगतान अटकने के बाद कंपनी ने मई 2024 में मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू की और गुजरात के पूर्व वरिष्ठ अफसर सुभाष आई. पटेल को अपना मध्यस्थ नियुक्त किया।
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एनएचएआई ने इस पर तुरंत आपत्ति जताई और समझौते की धारा का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि विवादों का निपटारा एसएआरओडी नियमों के तहत ही होगा। इन नियमों के अनुसार दोनों पक्षों को अपने-अपने मध्यस्थ केवल एसएआरओडी पैनल से चुनने होंगे।
कंपनी ने तर्क दिया कि वह एसएआरओडी की सदस्य नहीं है, इसलिए उसे इस पाबंदी से बांधा नहीं जा सकता। उसने रानी कंस्ट्रक्शंस बनाम भारत संघ मामले का हवाला दिया और कहा कि ठेकेदार को मजबूरी में एसएआरओडी से जोड़ना अनुचित होगा।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने मई में आदेश सुरक्षित रख लिया था और 29 अगस्त को फैसला सुनाया।
अदालत ने कहा कि दिसंबर 2024 में एसएआरओडी ने अपने नियम संशोधित कर दिए हैं, जिसके बाद गैर-सदस्य भी बिना सदस्यता लिए मध्यस्थता शुरू कर सकते हैं। ऐसे में सदस्यता का विवाद अब मायने नहीं रखता।
कंपनी का यह दावा कि एसएआरओडी पैनल संकरा है और एनएचएआई के पक्ष में झुका हुआ है, अदालत ने ठुकरा दिया।
"नवीनतम सूची का हवाला देते हुए जज ने कहा कि पैनल में 92 मध्यस्थ शामिल हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, भारत सरकार के सेवानिवृत्त सचिव, वैधानिक आयोगों के सदस्य, वरिष्ठ अभियंता और अन्य पेशेवर मौजूद हैं।"
बेंच ने टिप्पणी की,
"याचिकाकर्ता का यह तर्क कि उसकी स्वतन्त्रता सीमित हो गई है, निराधार है। जब पक्षकारों ने संस्थागत मध्यस्थता पर सहमति दी है तो वे नियमों को मनमर्जी से चुन-छांट कर लागू नहीं कर सकते।"
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के सीओआरई मामले से भी अंतर बताया। वहां रेलवे खुद पैनल तैयार करता था, जबकि एसएआरओडी का पैनल स्वतंत्र है और एनएचएआई के गहरे नियंत्रण में नहीं।
निर्णय
अंत में, अदालत ने केएनआर तिरुमला इंफ्रा की धारा 11(6) मध्यस्थता अधिनियम के तहत दायर याचिका खारिज कर दी। आदेश दिया गया कि कंपनी को अपना मध्यस्थ केवल एसएआरओडी पैनल से ही चुनना होगा। इसके बाद दोनों नामित मध्यस्थ एक अध्यक्षीय मध्यस्थ भी उसी पैनल से चुनेंगे।
न्यायमूर्ति सिंह ने आदेश में कहा,
"याचिका खारिज की जाती है, याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता है कि वह एसएआरओडी पैनल से अपना मध्यस्थ नामित करे।"
इस फैसले से दिल्ली हाई कोर्ट ने संस्थागत मध्यस्थता के महत्व को दोहराया और यह स्पष्ट कर दिया कि सरकारी परियोजनाओं में ठेकेदार तयशुदा ढांचे को दरकिनार नहीं कर सकते, भले ही उन्हें अपने विकल्प सीमित क्यों न लगें।
मामले का शीर्षक: मेसर्स केएनआर तिरुमाला इन्फ्रा प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकर
मामला संख्या: ARB. P. No. 1733 of 2024