Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने पुनरीक्षण आदेश रद्द कर बेटी के पैतृक संपत्ति अधिकार बहाल किए, विभाजन विवाद में आया बड़ा फैसला

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट का पुनरीक्षण आदेश रद्द कर बेटी के पैतृक अधिकार बहाल किए, विभाजन मामले में बड़ा फैसला।

सुप्रीम कोर्ट ने पुनरीक्षण आदेश रद्द कर बेटी के पैतृक संपत्ति अधिकार बहाल किए, विभाजन विवाद में आया बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक लंबे समय से चले आ रहे विभाजन विवाद में मद्रास हाईकोर्ट का पुनरीक्षण आदेश रद्द करते हुए मल्लेश्वरी, दिवंगत मुनुसामी नायडु की बेटी, के पक्ष में फैसला सुनाया। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने अपनी सीमित पुनरीक्षण अधिकारिता को पार कर दिया था। अदालत ने मल्लेश्वरी के अधिकार को हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत बहाल किया।

Read in English

पृष्ठभूमि

यह विवाद वर्ष 2000 से जुड़ा है, जब मल्लेश्वरी के भाई सुब्रमणि ने पैतृक संपत्ति के बंटवारे के लिए वाद दायर किया। शुरुआती दौर में मल्लेश्वरी को इस मुकदमे में पक्षकार नहीं बनाया गया। 2003 में पारित प्रारंभिक डिक्री में केवल पिता और बेटे को हिस्सेदारी दी गई। इसके बाद भूमि का कुछ हिस्सा के. सुगुना को बेच दिया गया, जबकि अन्य हिस्से मल्लेश्वरी के नाम कर दिए गए।

यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने धोखाधड़ी मामले में अनीथा आर. नायर की ज़मानत शर्तों में ढील देने वाले केरल हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक

2011 में पिता की मृत्यु के बाद मल्लेश्वरी ने उत्तराधिकारी के रूप में मुकदमे में प्रवेश किया और डिक्री में संशोधन की मांग की, ताकि बेटी होने के नाते उन्हें 2005 के संशोधन अधिनियम के तहत अधिकार मिल सके, जिसमें बेटियों को बराबर का पैतृक अधिकार दिया गया है।

ट्रायल कोर्ट ने उनकी याचिका को समयसीमा और एस्टॉपल (पूर्व सहमति) के आधार पर खारिज कर दिया। लेकिन 2022 में मद्रास हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया। उस आदेश की 2024 में पुनरीक्षण याचिका में समीक्षा कर दी गई और मामला ट्रायल कोर्ट को फिर से भेजा गया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपील सुनते समय यह जांचा कि हाईकोर्ट का पुनरीक्षण आदेश वैध था या नहीं। खंडपीठ ने साफ कहा-“पुनरीक्षण याचिका का उद्देश्य सीमित होता है और इसे अपील के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।”

यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने GMR कमलांगा मामले में हरियाणा यूटिलिटीज़ की याचिका खारिज की, समानुपातिक कोयला बंटवारे को बरकरार रखा

जजों ने टिप्पणी की कि पुनरीक्षण अदालत का दायरा केवल रिकॉर्ड पर स्पष्ट त्रुटि को सुधारने तक सीमित है, न कि साक्ष्यों और तथ्यों की पुनः जांच करने तक। इस मामले में हाईकोर्ट ने मूलतः पूरे मामले की पुनः सुनवाई कर दी, जो कि पुनरीक्षण के अधिकार से बाहर है।

निर्णय

निष्कर्ष में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने अपनी अधिकारिता से आगे बढ़कर काम किया। अदालत ने 2022 का आदेश बहाल किया, जिसमें मल्लेश्वरी को पैतृक संपत्ति में एक-तिहाई हिस्सा देने का अधिकार मान्यता दी गई थी। दीवानी अपील को स्वीकार कर लिया गया और ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि सभी लंबित आवेदनों का निपटारा तीन माह के भीतर किया जाए।

केस का शीर्षक: मल्लेश्वरी बनाम के. सुगुना एवं अन्य

उद्धरण: 2025 आईएनएससी 1080 (विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 12787/2025 से दीवानी अपील)

निर्णय की तिथि: 8 सितंबर 2025

Advertisment

Recommended Posts