आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट, अमरावती ने बुधवार (10 सितम्बर 2025) को लंबे समय से चल रहे पारिवारिक विवाद पर फैसला सुनाया। अदालत ने दो खरीदारों की द्वितीय अपील खारिज कर दी और यह साफ कर दिया कि मृतक समायमंथुला सर्वैया की बेटियों को भी भाइयों के बराबर हिस्सा मिलेगा।न्यायमूर्ति वी. गोपाल कृष्ण राव ने ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय अदालत के पूर्व के फैसलों की पुष्टि की, जिनमें दोनों ने बेटियों को उनके भाइयों के समान अधिकार दिए जाने को मान्यता दी थी।
पृष्ठभूमि
मामला लगभग सत्तर साल पुराना है। 1957 में मडिसेट्टिवारिपालेम गाँव (चिन्तलापुडी मंडल, पश्चिम गोदावरी) निवासी समायमंथुला सर्वैया ने यह जमीन खरीदी थी। 1982 में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पहली और दूसरी पत्नी से हुए बेटे-बेटियाँ पीछे रह गए।
2004 में भाइयों ने इस जमीन का बड़ा हिस्सा बाहर के खरीदारों (प्रतिवादी 4 और 5) को बेच दिया। बहनों ने आरोप लगाया कि यह बिक्री उनकी जानकारी के बिना और उनके हस्ताक्षरों का दुरुपयोग कर की गई। 2006 में उन्होंने कोर्ट में विभाजन व अपने हिस्से की मांग की।
ट्रायल कोर्ट, एलुरु ने बहनों के पक्ष में फैसला सुनाया। अपीलीय अदालत ने भी इस आदेश को बरकरार रखा। इसके बाद खरीदारों ने 2021 में हाईकोर्ट में द्वितीय अपील दायर की।
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अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति वी. गोपाल कृष्णा राव ने स्पष्ट किया कि 2005 के हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम के बाद बेटियाँ भी जन्म से पुत्रों के समान हिस्से की हकदार हैं। सुप्रीम कोर्ट के विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा मामले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि मौखिक बंटवारे का दावा तब तक मान्य नहीं हो सकता जब तक ठोस दस्तावेजी सबूत न हों।
पीठ ने साफ कहा-
''भाइयों द्वारा बहनों को शामिल किए बिना की गई बिक्री बेटियों के हिस्से पर बाध्यकारी नहीं होगी। वे क्लास-1 वारिस हैं और उनके अधिकार कानून से सुरक्षित हैं।''
अदालत ने यह भी कहा कि कोई साधारण पत्र या राजस्व रिकार्ड प्रविष्टि त्यागपत्र (रिलिंक्विशमेंट) नहीं माना जा सकता। त्याग के लिए पंजीकृत दस्तावेज़ अनिवार्य है। चूँकि ऐसा कोई दस्तावेज़ मौजूद नहीं था, खरीदारों का दावा टिक नहीं सका।
खरीदारों की ''बोना फाइ'' दलील भी अदालत ने नकार दी। न्यायालय ने कहा कि जब सभी वारिसों को शामिल किए बिना सौदा हुआ, तो बिक्री सिर्फ भाइयों के हिस्से तक ही मान्य मानी जाएगी, बेटियों के हिस्से पर नहीं।
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निर्णय
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में हस्तक्षेप करने योग्य कोई ''महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न'' नहीं बनता। परिणामस्वरूप, अपील खारिज कर दी गई और अपीलीय अदालत का फैसला बरकरार रखा गया।
इस तरह लगभग 20 साल लंबा कानूनी संघर्ष आखिरकार खत्म हुआ और बेटियों के बराबर अधिकार सुनिश्चित हुए।
Case Tittle :श्रीमती मडेती रामादेवी बनाम श्रीमती वंदनापु बसवम्मा
Case Number: द्वितीय अपील संख्या 108 सन् 2021