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रेलवे प्रशिक्षु की सेवा समाप्ति बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश पलटा, वजीफ़ा वसूली से इनकार

Vivek G.

रेलवे प्रशिक्षु की सेवा समाप्ति बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश पलटा, वजीफ़ा वसूली से इनकार

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पटना हाईकोर्ट का वह फ़ैसला रद्द कर दिया जिसमें एक प्रशिक्षु वरिष्ठ अनुभाग अभियंता (SSE) को नौकरी पर बहाल कर दिया गया था, जबकि वह अनिवार्य प्रशिक्षण परीक्षाओं में दो बार असफल रहा था। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा कि 52 सप्ताह का पूरा प्रशिक्षण, जिसमें अंतिम लिखित परीक्षा शामिल है, स्थायी नियुक्ति के लिए पूर्व शर्त है।

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पृष्ठभूमि

मामला 2014 की भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है, जब आलोक कुमार, जो ओबीसी वर्ग से आते हैं, रेलवे भर्ती बोर्ड, मुजफ्फरपुर के तहत SSE (इलेक्ट्रिकल/ड्रॉइंग) प्रशिक्षु के रूप में चयनित हुए। उन्होंने 46 सप्ताह का प्रशिक्षण पूरा किया, लेकिन अंतिम चरण यानी जनरल एंड सब्सिडियरी रूल्स (G&SR) प्रशिक्षण और परीक्षा में फेल हो गए। नवंबर 2017 में पहली बार असफल रहने के बाद मार्च 2018 में बिना वजीफ़ा दूसरी बार मौका दिया गया, लेकिन वे फिर भी सफल नहीं हो सके। जनवरी 2019 में उनकी सेवा समाप्त कर दी गई और उसके बाद ₹1.53 लाख वजीफ़ा वापस करने का आदेश जारी हुआ, जो दूसरी बार प्रशिक्षण के दौरान ग़लती से दे दिया गया था।

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कुमार ने सेवा समाप्ति को चुनौती देते हुए केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT), पटना का दरवाज़ा खटखटाया, मगर वहाँ से राहत नहीं मिली। बाद में 2023 में पटना हाईकोर्ट ने सेवा समाप्ति रद्द कर दी और कहा कि SSE पद के लिए कोई “विभागीय परीक्षा” निर्धारित नहीं की गई थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई शामिल थे, ने हाईकोर्ट की व्याख्या से असहमति जताई। अदालत ने ज़ोर देकर कहा कि रेलवे का 1991 का मास्टर सर्कुलर साफ तौर पर कहता है कि प्रशिक्षण के अंत में लिखित परीक्षा पास करना अनिवार्य है, तभी प्रशिक्षुओं को पद पर समायोजित किया जा सकता है। अदालत ने टिप्पणी की—“अन्यथा यह समझना कठिन है कि बिना किसी परीक्षा के यह कैसे तय होगा कि किसी उम्मीदवार ने पर्याप्त प्रशिक्षण हासिल किया है या नहीं।”

न्यायालय ने “भर्ती” और “नियुक्ति” के बीच फर्क भी स्पष्ट किया। पहले दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि भर्ती केवल प्रारंभिक प्रक्रिया है, जबकि वास्तविक नियुक्ति तभी होती है जब उम्मीदवार प्रशिक्षण में सफल हो।

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जहाँ तक भेदभाव के आरोप का सवाल है- कुमार का कहना था कि उनके कुछ बैचमेट्स बिना G&SR प्रशिक्षण के ही नियुक्त कर दिए गए- पीठ ने आरटीआई रिकॉर्ड का हवाला दिया। इसमें स्पष्ट हुआ कि वे उम्मीदवार वास्तव में पूरे 52 सप्ताह का प्रशिक्षण पूरा कर चुके थे। इसलिए अदालत ने कहा कि यह आरोप “ग़लत और भ्रामक” है।

निर्णय

सर्वोच्च न्यायालय ने अंत में माना कि जब आलोक कुमार दो प्रयासों में भी G&SR प्रशिक्षण पास नहीं कर पाए, तो रेलवे अधिकारियों ने उनकी सेवा समाप्त करके कोई ग़ैरक़ानूनी काम नहीं किया। पटना हाईकोर्ट का आदेश पलट दिया गया और उनकी याचिका ख़ारिज कर दी गई।

हालाँकि, अदालत ने आंशिक राहत दी। रेलवे द्वारा वजीफ़ा वापसी की माँग को खारिज कर दिया गया। अदालत ने कहा कि यह राशि प्रशासनिक भूल के कारण दी गई थी, न कि उम्मीदवार की किसी धोखाधड़ी या ग़लत बयानी के चलते। इसलिए इसकी वसूली “न्यायोचित नहीं” है।

इन निर्देशों के साथ अपील का निपटारा कर दिया गया।

मामले का शीर्षक: भारत संघ एवं अन्य बनाम आलोक कुमार (भारत का सर्वोच्च न्यायालय, 2025)

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