दो बेंगलुरु निवासियों के लिए, जो एक दशक से अधिक समय से अपने घर की लड़ाई लड़ रहे थे, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा राहतभरा आदेश दिया। अदालत ने बिल्डर को मोहाली में उनका फ्लैट सौंपने का निर्देश दिया। यह मामला IREO समूह की कंपनी Puma Realtors द्वारा घर समय पर न देने से जुड़ा था, जिसने कई खरीदारों को अधर में छोड़ दिया था।
पृष्ठभूमि
अमित नेहरा और उनके सह-अपीलकर्ता ने 2010 में मोहाली के सेक्टर-99 स्थित IREO Rise (गार्डेनिया) प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक किया था। 2011 तक उन्होंने कुल कीमत 60 लाख रुपये में से लगभग पूरा भुगतान-57.5 लाख रुपये से अधिक-कर दिया था। लेकिन बिल्डर ने नवंबर 2013 तक कब्जा देने का वादा पूरा नहीं किया।
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हताश होकर खरीदारों ने पहले चंडीगढ़ कंज़्यूमर फोरम का रुख किया। लेकिन मामला 2018 में तब कॉर्पोरेट दिवालिया कार्यवाही में चला गया जब नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने बिल्डर के खिलाफ दिवालिया याचिका स्वीकार कर ली। इसके बाद खरीदारों ने रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल के पास अपना दावा दाखिल किया, लेकिन विवाद इस बात पर खड़ा हुआ कि दावा समय पर किया गया था या नहीं।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि भले ही कंपनी ने खरीदारों के दावे के समय पर सवाल उठाया हो, लेकिन असलियत यह है कि यह दावा अप्रैल 2020 तक सत्यापित, स्वीकार और लेनदारों की सूची में दर्ज हो चुका था।
पीठ ने कहा, “वित्तीय लेनदारों की सूची का प्रकाशन एक वैधानिक कर्तव्य है। इसे एक औपचारिकता मात्र नहीं समझा जा सकता।”
अदालत ने यह तर्क खारिज कर दिया कि खरीदारों को केवल “देर से दावा करने वाले” मानकर 50% रकम वापसी तक सीमित रखा जाए। इसके बजाय अदालत ने कहा कि उन्होंने लगभग पूरी कीमत चुका दी थी और उनका नाम आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज था।
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साधारण नागरिकों की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए पीठ ने टिप्पणी की, “आज उन्हें कब्जा न देना, जबकि उनका दावा सत्यापित और स्वीकार किया जा चुका है, अनुचित और अवांछित हानि पहुँचाना होगा।”
निर्णय
NCLT और NCLAT के आदेशों को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सफल रिज़ॉल्यूशन आवेदकों-वन सिटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड और APM इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड-को निर्देश दिया कि वे अपीलकर्ताओं को मोहाली के IREO Rise (गार्डेनिया) प्रोजेक्ट, ब्लॉक D, फ्लैट नंबर GBD-00-001 का रजिस्ट्री कराकर कब्जा दो महीने के भीतर सौंपें।
इस फैसले के साथ खरीदारों को केवल रकम वापसी नहीं, बल्कि 14 साल बाद वह घर भी मिल गया जिसके लिए वे संघर्ष कर रहे थे। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका यह आदेश अन्य लंबित अपीलों, जिनमें से एक इसी साल खारिज की जा चुकी है, पर असर नहीं डालेगा।
मामला: अमित नेहरा एवं अन्य बनाम पवन कुमार गर्ग एवं अन्य
(सिविल अपील संख्या 4296/2025, भारत का सर्वोच्च न्यायालय)
निर्णय की तिथि: 9 सितंबर, 2025