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दिल्ली उच्च न्यायालय ने सप्तपदी अनुष्ठान विवाद पर विवाह की वैधता को चुनौती देने वाली पति की अपील खारिज कर दी

Shivam Y.

X और Y - दिल्ली उच्च न्यायालय ने सप्तपदी अनुष्ठान न करने पर विवाह की वैधता पर सवाल उठाने वाली पति की याचिका को खारिज कर दिया, तथा पारिवारिक न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सप्तपदी अनुष्ठान विवाद पर विवाह की वैधता को चुनौती देने वाली पति की अपील खारिज कर दी

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक व्यक्ति की अपील खारिज कर दी, जिसमें उसने विवाह की वैधता पर सवाल उठाया था। उसका कहना था कि हिंदू रीति-रिवाजों के तहत होने वाली सप्तपदी (अग्नि के चारों ओर सात फेरे) की रस्म पूरी नहीं की गई।

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न्यायमूर्ति अनिल क्षेतरपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें विवाह को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

पृष्ठभूमि

पति ने फैमिली कोर्ट्स एक्ट, 1984 की धारा 19 के तहत अदालत का रुख किया था। उसने दावा किया कि 19 जून 2016 को पत्नी के साथ हुई शादी अधूरी और इसलिए अवैध है क्योंकि सप्तपदी की अनिवार्य रस्म नहीं हुई।

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पति के अनुसार, दंपति केवल अक्टूबर 2016 तक साथ रहे, हालांकि बाद में एक बेटी का जन्म हुआ। पत्नी का कहना था कि सभी आवश्यक रस्में, जिनमें सप्तपदी भी शामिल है, पूरी की गईं और उसे 2017 में ससुराल से निकाल दिया गया।

इससे पहले कड़कड़डूमा स्थित फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि उसके सबूत पर्याप्त नहीं हैं। इस फैसले से असंतुष्ट होकर उसने हाईकोर्ट में अपील दायर की।

अदालत की टिप्पणियां

हाईकोर्ट ने कहा कि पति ने गवाही देते हुए दोहराया कि सप्तपदी नहीं हुई थी, लेकिन उसने अपने पक्ष में किसी भी गवाह - जैसे पुरोहित, बुजुर्ग या शादी में मौजूद अतिथि - को पेश नहीं किया।

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हिंदू विवाह अधिनियम का हवाला देते हुए पीठ ने समझाया कि धारा 7 किसी भी पक्ष की प्रथाओं और रस्मों के अनुसार विवाह सम्पन्न करने की अनुमति देती है।

न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया, "सप्तपदी हर मामले में अनिवार्य शर्त नहीं है।"

अदालत ने विवाह की वैधता के पक्ष में कानूनी अनुमान को भी याद किया। बॉम्बे हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि जब कोई जोड़ा साथ रहता है और उससे संतान का जन्म होता है, तो कानून विवाह को वैध और संतान को वैध मानता है।

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अदालत ने टिप्पणी की, "विवाह की वैधता के अनुमान को हल्के में नकारा नहीं जा सकता।"

विवाह एल्बम न होने पर पति के तर्क को खारिज करते हुए न्यायाधीशों ने कहा,

"भले ही एल्बम प्रस्तुत किया जाता, उससे यह निर्णायक रूप से साबित नहीं होता कि सप्तपदी हुई या नहीं।"

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फैसला

सभी दलीलों पर विचार करने के बाद खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा,

"साक्ष्य का बोझ पति पर था कि यह साबित करे कि सप्तपदी नहीं हुई। वह इस जिम्मेदारी को निभाने में असफल रहा।"

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि फैमिली कोर्ट का फैसला 'युक्तिसंगत और संभव' है। इस प्रकार पति की अपील खारिज कर दी गई। अब विवाह की वैधता बनी रहती है और फैमिली कोर्ट का आदेश यथावत रहेगा।

केस शीर्षक: X और Y

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