एक संवेदनशील मामले में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने 11 वर्षीय बच्ची और उसके पिता के बीच मुलाक़ात का व्यावहारिक कार्यक्रम तय करने के लिए दोनों माता-पिता को निर्देशित किया है। पिता ने लगभग चार साल से बेटी से कोई मुलाक़ात नहीं की है।
पृष्ठभूमि
यह मामला अक्टूबर 2024 में पारित एक आदेश से जुड़ा है, जिसमें अंतरिम मुलाक़ात की अनुमति दी गई थी। हालांकि, पिता ने शुरुआत में सहमति जताने के बावजूद बाद में बेटी से मिलने से इनकार कर दिया और याचिका के अंतिम निपटारे की मांग की। इस साल फरवरी 2025 में, हाईकोर्ट ने उनकी अनिच्छा दर्ज की और अंतरिम आदेश पर रोक लगा दी। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने पिता की याचिका खारिज कर दी लेकिन उन्हें हाईकोर्ट में जल्द सुनवाई का अनुरोध करने की अनुमति दी।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति माधव जे. जामदार ने कहा कि बच्चे का भावनात्मक विकास दोनों माता-पिता पर निर्भर करता है। अदालत ने टिप्पणी की—“एक बच्चा निर्जीव वस्तु नहीं है जिसे एक माता-पिता से दूसरे के पास फेंका जा सके।” उन्होंने कहा कि रातभर मुलाक़ात (overnight access) केवल तब दी जा सकती है जब पहले छोटे-छोटे नियमित मिलन हो जाएँ। अदालत ने यशिता साहू बनाम राजस्थान राज्य (2020) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि बच्चे को दोनों माता-पिता का प्यार और देखभाल पाना उसका मौलिक अधिकार है।
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आज की तकनीक के दौर में संपर्क केवल आमने-सामने मुलाक़ात तक सीमित नहीं होना चाहिए। फ़ोन कॉल और वीडियो बातचीत भी अहम हैं, खासकर जब माता-पिता अलग-अलग रहते हों।
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निर्णय
अदालत ने माँ और पिता दोनों को 11 सितंबर 2025 को दोपहर 3 बजे व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये पेश होने का निर्देश दिया है। इस दौरान मुलाक़ात का कार्यक्रम तय किया जाएगा-पहले कुछ घंटों की मुलाक़ात से शुरुआत होगी, फिर धीरे-धीरे रातभर की मुलाक़ात दी जाएगी, साथ ही पिता और बेटी के बीच नियमित फ़ोन कॉल भी शामिल किए जाएँगे।
केस का शीर्षक: श्वेता चंद्रा बनाम ब्रह्मानंद बलदेव राय
आदेश की तिथि: 8 सितंबर 2025
केस संख्या: रिट याचिका संख्या 13980/2024