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सुप्रीम कोर्ट ने Maha Mineral की बोली अयोग्यता रद्द की, वॉशरी क्षमता पर दोबारा समीक्षा का आदेश

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने Maha Mineral की बोली अयोग्यता रद्द की, मध्यप्रदेश कोल निविदा मामले में वॉशरी क्षमता पर दोबारा जांच का आदेश।

सुप्रीम कोर्ट ने Maha Mineral की बोली अयोग्यता रद्द की, वॉशरी क्षमता पर दोबारा समीक्षा का आदेश

एक अहम फैसले में, जिसने निविदा शर्तों की व्याख्या के तरीके को बदलने का संकेत दिया है, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें Maha Mineral Mining & Beneficiation Pvt. Ltd. को बड़े कोल बेनिफिकेशन कॉन्ट्रैक्ट से बाहर करने के फैसले को सही ठहराया गया था। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ ने कहा कि कंपनी की बोली को जॉइंट वेंचर (JV) एग्रीमेंट जमा न करने के आधार पर खारिज करना अनुचित था, क्योंकि निविदा दस्तावेज़ में इसे कहीं भी स्पष्ट रूप से अनिवार्य नहीं किया गया था।

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पृष्ठभूमि

मामला मई 2024 से जुड़ा है, जब मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड (MPPGCL) ने श्री सिंघाजी थर्मल पावर प्रोजेक्ट के लिए कोल बेनिफिकेशन और लॉजिस्टिक सेवाओं की निविदा निकाली थी। Maha Mineral Mining ने अन्य कंपनियों के साथ इसमें भाग लिया। टेंडर इवैल्यूएशन कमेटी ने कंपनी को इस आधार पर अयोग्य घोषित कर दिया कि उसने JV एग्रीमेंट संलग्न नहीं किया था, जबकि कंपनी ने महाराष्ट्र स्टेट माइनिंग कॉर्पोरेशन का सर्टिफिकेट दिया था जिसमें उसके 45% साझेदारी की पुष्टि की गई थी।

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बाद में हाईकोर्ट ने इस अयोग्यता को सही ठहराया और कंपनी पर दस्तावेज़ छुपाने का आरोप लगाया। इस बीच, एक अन्य बोलीदाता-रुखमाई इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड-को सफल घोषित कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अलग राय दी। अदालत ने कहा, “क्लॉज 5(D) में JV एग्रीमेंट जमा करने की कोई अनिवार्यता नहीं है।” पीठ ने माना कि वर्क एक्ज़ीक्यूशन सर्टिफिकेट पहले ही कंपनी की हिस्सेदारी और अनुभव का पर्याप्त सबूत था। न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि यदि अधिकारियों को कोई संदेह था तो वे सर्टिफिकेट की जांच कर सकते थे या स्पष्टीकरण मांग सकते थे, लेकिन सीधे तौर पर बोली खारिज करना उचित नहीं था।

हाईकोर्ट की उस अतिरिक्त टिप्पणी पर भी सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई जिसमें कहा गया था कि Maha Mineral की वॉशरी क्षमता पहले से महाराष्ट्र स्टेट माइनिंग कॉर्पोरेशन के लिए प्रतिबद्ध थी। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि यह आधार कभी टेंडर समिति के सामने नहीं आया था, बल्कि प्रतिद्वंद्वी बोलीदाता ने लिखित दलीलों में पहली बार उठाया। न्यायमूर्ति बागची ने कहा, “हाईकोर्ट के लिए यह उचित नहीं था कि वह समिति द्वारा दिए गए कारणों से आगे जाकर नया आधार बना ले।”

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से अपील स्वीकार की। हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए मामले को दोबारा विचार के लिए वापस भेजा गया, लेकिन सिर्फ इस सीमित मुद्दे पर कि क्या Maha Mineral के पास निविदा की धारा 5(B) के तहत पर्याप्त खाली वॉशरी क्षमता थी। अदालत ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह दो महीने के भीतर निर्णय सुनाए। इस बीच, रुखमाई इंफ्रास्ट्रक्चर को दिया गया वर्क ऑर्डर इसी नई जांच के नतीजे पर निर्भर करेगा।

इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि निविदा शर्तों को ठीक उसी तरह लागू किया जाना चाहिए जैसा लिखा गया है, न कि छिपी हुई अनिवार्यताओं के आधार पर। यह फैसला भविष्य की सरकारी बोलियों पर भी असर डाल सकता है, खासकर उन मामलों में जहां तकनीकी बारीकियों का इस्तेमाल कर प्रतियोगियों को बाहर कर दिया जाता है।

मामला: महा मिनरल माइनिंग एंड बेनेफिशिएशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड एवं अन्य

अपील का प्रकार: सिविल अपील (विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 1940/2025 से उत्पन्न)

निर्णय की तिथि: 9 सितंबर 2025

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