कर्नाटक हाईकोर्ट के कोर्ट हॉल नंबर 2 में सोमवार को एक 72 वर्षीय महिला, श्रीमती महेश्वरी द्वारा दायर हैबियस कॉर्पस याचिका नाटकीय रूप से खारिज कर दी गई। न्यायमूर्ति अनु शिवरामन और न्यायमूर्ति राजेश राय के की पीठ ने सख्त शब्दों में कहा कि संवैधानिक उपायों को उत्पीड़न का साधन नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने ₹2 लाख का भारी खर्च भी लगाया।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता महेश्वरी ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाते हुए दावा किया था कि उनका बेटा, कृपलानी एम., 7 जुलाई 2025 से लापता है। उनका कहना था कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से बार-बार शिकायत करने के बावजूद बेटे को खोजने की कोई कार्रवाई नहीं हुई। इससे पहले भी उन्होंने इसी तरह की हैबियस याचिका दायर की थी, लेकिन बाद में गलत बयानों का हवाला देते हुए उसे वापस ले लिया था।
Read also:- छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दुकान आवंटन रद्द करने का नोटिस किया खारिज, सुनवाई के बाद ही कार्रवाई का निर्देश
इस नई याचिका में उन्होंने फिर से बेटे की खोज के लिए अदालत से दखल की मांग की। लेकिन पुलिस ने अदालत को चौंकाते हुए 7 अगस्त को कृपलानी को चेन्नई के एक लग्जरी होटल से ढूंढकर पेश कर दिया।
अदालत की टिप्पणियाँ
जब बेटा अदालत में पेश हुआ तो मामला अचानक पूरी तरह अलग रूप ले बैठा। राज्य के वकील ने कॉल डिटेल रिकॉर्ड रखे, जिनसे पता चला कि जिस दौरान उसे लापता बताया गया, उसी दौरान वह लगातार अपनी माँ, बहन और दोस्तों से संपर्क में था। यहां तक कि उसके एक दोस्त ने महेश्वरी के वकील से भी बात की थी, जो पर्दे के पीछे मिलीभगत की ओर इशारा करता है।
Read also:- छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने धमतरी की दुकान मामले में तोड़फोड़ नोटिस रद्द किया, सुनवाई का आदेश दिया
न्यायमूर्ति राजेश राय के ने मौखिक फैसला सुनाते हुए कहा,
"रिकॉर्ड साफ़ बताते हैं कि कोई अवैध हिरासत नहीं थी। बल्कि यह याचिका दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से दायर की गई और अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।"
पुलिस ने चेन्नई की वीडियो फुटेज भी दिखाई, जिसमें कृपलानी पुलिस से बदसलूकी करता और एक अधिकारी पर हमला करता दिखाई दिया। उस पर वहाँ पहले ही एफआईआर दर्ज हो चुकी थी।
Read also:- मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पति को दिया तलाक, पत्नी के आत्मदाह प्रयास को माना मानसिक क्रूरता
पीठ ने यह भी नोट किया कि पूरा मामला इंदिरानगर पुलिस से बदला लेने की कोशिश लगता है, क्योंकि उन्होंने पहले कृपलानी की उस शिकायत पर कार्रवाई नहीं की थी जिसमें उसने पड़ोसी पर गांजा उगाने और देर रात पार्टी करने का आरोप लगाया था। अदालत ने कहा कि हैबियस कॉर्पस - जो केवल अवैध हिरासत से नागरिकों की रक्षा के लिए है - का इस तरह दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
निर्णय
मामले को निपटाते हुए डिवीजन बेंच ने याचिका को तुरंत खारिज कर दिया। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने ₹2 लाख का दंडात्मक खर्च भी लगाया। इसमें से आधी राशि कर्नाटक विधिक सेवा प्राधिकरण को और बाकी आधी राशि कर्नाटक पुलिस बेनिवोलेंट फंड को दी जाएगी।
Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना बीजेपी की मानहानि याचिका खारिज की, सीएम रेवंत रेड्डी के पक्ष में फैसला
सख्त चेतावनी देते हुए अदालत ने कहा,
"जो याचिकाकर्ता तथ्य छुपाकर अदालत आते हैं, उन पर उदाहरणीय लागत लगाना ज़रूरी है। ऐसी निरर्थक याचिकाएँ न्यायालय का समय बर्बाद करती हैं और न्याय व्यवस्था को बदनाम करती हैं।"
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि महेश्वरी दो हफ्तों में यह रकम जमा नहीं करतीं, तो उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाएगी। इस तरह गवाही और बहस के बाद गूंजता हुआ संदेश साफ था: हैबियस कॉर्पस स्वतंत्रता की ढाल है, व्यक्तिगत दुश्मनी का हथियार नहीं।
केस का शीर्षक: श्रीमती माहेश्वरी एम बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य
केस नंबर: WPHC No. 81 of 2025
फैसले की तारीख: 1 सितंबर, 2025