नई दिल्ली, 11 सितम्बर: एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने वंदना नामक सोशल वर्क की छात्रा की सजा को रद्द कर दिया, जिस पर विश्वविद्यालय की मार्कशीट में फर्जीवाड़ा करने का आरोप था। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और संदीप मेहता की पीठ ने निचली अदालतों की कड़ी आलोचना की कि उन्होंने “दृश्य रूप से दिखाई देने वाले ओवरराइटिंग” पर ही भरोसा किया और किसी विशेषज्ञ की राय नहीं ली।
पृष्ठभूमि
वंदना ने 1998 में नागपुर विश्वविद्यालय से बीएसडब्ल्यू प्रथम वर्ष की परीक्षा दी थी और अनिवार्य अंग्रेजी विषय में फेल हो गई थी, पुनर्मूल्यांकन के बाद भी। अंतिम वर्ष में प्रवेश पाने के लिए उसने अपनी मार्कशीट और पुनर्मूल्यांकन अधिसूचना कॉलेज में जमा की। बाद में विश्वविद्यालय के कर्मचारियों ने दावा किया कि अंकों में 10 से 18 और 30 तक की हेराफेरी की गई, जिसके बाद भारतीय दंड संहिता की धोखाधड़ी और जालसाजी की धाराओं के तहत पुलिस केस दर्ज हुआ। ट्रायल कोर्ट ने उसे कई बार की जेल सजा सुनाई, जिसे अपील में कुछ कम किया गया, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन के हर महत्वपूर्ण कदम पर सवाल उठाया। पीठ ने कहा, “संदेह चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो, यह कानूनी सबूत के मानक की जगह नहीं ले सकता।” न तो कोई हस्तलेख या फॉरेंसिक विशेषज्ञ गवाही के लिए बुलाया गया और न ही उन विश्वविद्यालय अधिकारियों को पेश किया गया जिन्होंने दस्तावेज़ों को संभाला था। न्यायाधीशों ने नोट किया कि कथित फर्जी दस्तावेज़ कई संस्थागत हाथों से गुजरते हुए पाए गए, जिससे यह दावा कमजोर हो गया कि केवल वंदना ही उसमें छेड़छाड़ कर सकती थी।
पीठ ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत अभियुक्त से पूछताछ में भी खामियां बताईं। अदालत ने कहा, “संयुक्त और उलझाने वाले सवालों से वंदना को अपने बचाव का उचित मौका नहीं मिला। ऐसी प्रक्रिया पूर्वाग्रह पैदा करती है और उन बयानों पर भरोसा करने की वैधता को खत्म कर देती है।”
निर्णय
न्यायालय ने पाया कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि फर्जीवाड़ा वंदना ने किया या उसमें उसकी कोई बेईमानी की नीयत थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज का उपयोग) और 420 सहपठित 511 (धोखाधड़ी का प्रयास) के तहत दी गई सभी सजाओं को रद्द कर दिया।
मामला: वंदना बनाम महाराष्ट्र राज्य
अपील संख्या: आपराधिक अपील संख्या 3977/2025 (विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक अपील) संख्या 9317/2025 से उत्पन्न)
निर्णय की तिथि: 11 सितंबर 2025