केरल हाईकोर्ट, एर्नाकुलम में, गुरुवार (11 सितंबर 2025) को एक सनसनीखेज जमानत याचिका पर अहम फैसला सुनाया गया। न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस ने एक प्रमुख कारोबारी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी, जिस पर अपनी पूर्व एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट के साथ बार-बार यौन शोषण का आरोप है। वहीं, उनके तीन सहयोगियों को, जिन पर कम गंभीर आरोप हैं, राहत देते हुए अग्रिम जमानत दे दी गई।
पृष्ठभूमि
यह मामला अपराध संख्या 235/2025 से जुड़ा है, जो इंफोपार्क पुलिस स्टेशन, एर्नाकुलम में दर्ज हुआ था। शिकायतकर्ता, 42 वर्षीय महिला, जो एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट के पद पर काम करती थी, ने आरोप लगाया कि उसका पूर्व नियोक्ता, वेणु गोपालकृष्णन, ने एक साल से अधिक समय तक उसका लगातार यौन उत्पीड़न किया। उसने कहा कि उसे दफ्तर में अपमानजनक यौन कृत्यों के लिए मजबूर किया गया और अश्लील वीडियो भेजे गए। जब उसने इस्तीफा देने की कोशिश की, तो उसके आवेदन को करियर बर्बाद करने की धमकियों के साथ खारिज कर दिया गया।
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वहीं कारोबारी और उसका स्टाफ अदालत में अलग कहानी लेकर आए। उनका कहना था कि शिकायतकर्ता और उसके पति ने "हनी ट्रैप" योजना के तहत ₹30 करोड़ की मांग की थी और यहां तक कि चेक स्वीकार किए थे, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया। उनका दावा था कि यौन उत्पीड़न की शिकायत महज़ ब्लैकमेलिंग के मामले को ढकने के लिए गढ़ी गई है।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति थॉमस ने केस डायरी, शिकायत और एफआईआर का विस्तार से अध्ययन किया। उन्होंने पुलिस की कार्यवाही में गंभीर खामियाँ पाईं:
- पीड़िता का बयान (धारा 183 बीएनएसएस के तहत) लिखित शिकायत के बावजूद देर से दर्ज हुआ।
- एफआईआर में बलात्कार के प्रयास से जुड़ी धाराएँ शामिल नहीं की गईं।
- जब्त किए गए मोबाइल फोन और लैपटॉप, जिनमें अहम सबूत बताए गए, कई दिनों तक बिना रिकॉर्ड के पुलिस के पास रहे।
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न्यायाधीश ने कहा,
"यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच जिस तरह से आगे बढ़ रही है, वह इस अदालत का भरोसा नहीं जगाती।"
बचाव पक्ष द्वारा डिजिटल सबूतों को फर्जी बताने की कोशिश को भी अदालत ने नहीं माना। न्यायमूर्ति थॉमस ने टिप्पणी की,
"गंभीर यौन उत्पीड़न के मामलों में, जब अदालत को आरोप पूरी तरह झूठे प्रतीत नहीं होते, तब हमेशा उचित यही है कि जांच अधिकारी को स्वतंत्र रूप से जांच करने दिया जाए।"
सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का हवाला देते हुए उन्होंने याद दिलाया कि पुलिस हिरासत में पूछताछ का महत्व अधिक होता है, जबकि अग्रिम जमानत मिलने पर पूछताछ का असर कम हो जाता है।
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निर्णय
अदालत ने माना कि कारोबारी (प्रथम आरोपी) को अग्रिम जमानत देना उचित नहीं होगा, क्योंकि आरोप गंभीर हैं, सबूतों से छेड़छाड़ का खतरा है और उनका प्रभावशाली दर्जा गवाहों को प्रभावित कर सकता है।
हालांकि, आरोपी संख्या 2 से 4 - कंपनी के कर्मचारी और निदेशक - पर प्रत्यक्ष यौन शोषण का आरोप नहीं है। इन्हें अदालत ने कड़ी शर्तों के साथ अग्रिम जमानत दे दी, जैसे जांच में सहयोग करना, गवाहों को प्रभावित न करना और पीड़िता से संपर्क न करना।
न्यायमूर्ति थॉमस ने सख्त शब्दों में कहा:
"यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें प्रथम याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देकर सुरक्षा दी जाए। अतः उसकी याचिका खारिज की जाती है। याचिकाकर्ता संख्या 2 से 4 को अग्रिम जमानत दी जाती है, शर्तों के अधीन।"
इसके साथ ही, भरी अदालत में माहौल भारी हो गया - कारोबारी बिना जमानत के लौटे, जबकि उनके सहयोगी सशर्त राहत लेकर बाहर निकले।
केस का शीर्षक: वेणु गोपालकृष्णन और अन्य। बनाम केरल राज्य और अन्य।
केस नंबर: B.A. No. 9589 of 2025 (Kerala High Court, Ernakulam)