राजस्थान हाईकोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता की नियुक्ति चुनौती खारिज की, स्टेट लिटिगेशन पॉलिसी को गैर-प्रवर्तनीय बताते हुए क्वो वारंटो याचिका अस्वीकार

By Abhijeet Singh • December 4, 2025

राजस्थान उच्च न्यायालय ने अतिरिक्त महाधिवक्ता की नियुक्ति को चुनौती को खारिज कर दिया, राज्य मुकदमेबाजी नीति को लागू न करने योग्य और क्वो वारंटो को बनाए रखने योग्य नहीं माना। - सुनील समदरिया बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

राजस्थान हाई कोर्ट, जयपुर में 2 दिसंबर को कोर्टरूम नंबर 1 में माहौल कुछ तीखा था। अधिवक्ता सुनील समदारिया ने खुद अपनी दलीलें दीं और सामने थे राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट मामलों के लिए नियुक्त एक Additional Advocate General (AAG)। समदारिया ने पूछा “उन्हें इस पद पर बैठने का अधिकार ही क्या है?” लेकिन पीठ अडिग रही: मामला क़ानूनी मानदंडों पर खरा नहीं उतरता।

Read in English

फैसला कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा और न्यायमूर्ति बलजींदर सिंह संधू की खंडपीठ ने सुनाया।

पृष्ठभूमि

समदारिया ने शुरुआत में क्वो वारंटो की रिट दायर की यह वही याचिका है जो पूछती है “आप किस अधिकार से यह सार्वजनिक पद धारण कर रहे हैं?” उनका दावा था कि AAG के पास न्यूनतम 10 साल का वकालत अनुभव नहीं है, जैसा कि राजस्थान स्टेट लिटिगेशन पॉलिसी 2018 में बताया गया है।

याचिकाकर्ता ने क्लॉज़ 14.8 को भी चुनौती दी, जिसमें विशेषज्ञता के आधार पर नियुक्ति की अनुमति है। उन्होंने मनमानी और राजनीतिक सुविधा की बात कही। लेकिन एकलपीठ ने इसे खारिज कर दिया और समदारिया विशेष अपील लेकर आए।

अदालत की टिप्पणियां

सुनवाई के शुरुआत में ही पीठ ने पूछा क्या यह लिटिगेशन पॉलिसी क़ानून की तरह लागू भी होती है?
यह सवाल निर्णायक साबित हुआ।

राज्य का पक्ष साफ़ था-

  • यह पॉलिसी सिर्फ़ दिशानिर्देश है
  • इससे किसी को कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं होता
  • सरकार को अपने विधि अधिकारियों की नियुक्ति में विवेकाधिकार है

पीठ ने इसे स्वीकार करते हुए कहा:

“राज्य वादकरण नीति, 2018 कानून में प्रवर्तनीय नहीं है।”

साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्वो वारंटो तभी संभव है, जब पद सार्वजनिक कार्यालय हो और पात्रता क़ानून या नियमों से तय हो। यहाँ अदालत ने अंतर बताया:

  • Advocate General = संविधानिक सार्वजनिक पद
  • Additional Advocate General = वैसा सार्वजनिक पद नहीं

नियुक्ति को अदालत ने व्यावसायिक एंगेजमेंट बताया न कि कोई वैधानिक नियुक्ति।

कोर्ट ने एक बेहद मानवीय टिप्पणी भी की, जो वकालत की कला पर थी

“वकालत की कला, वर्षों के अनुभव से बंधी हुई नहीं होती… इसे चयनकर्ता पर ही छोड़ देना चाहिए।”

निर्णय

खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला कि-

  1. स्टेट लिटिगेशन पॉलिसी को कानून की तरह लागू नहीं किया जा सकता
  2. क्लॉज़ 14.8 अवैध या मनमाना नहीं
  3. यहाँ क्वो वारंटो का कोई आधार नहीं बनता
  4. राज्य को यह अधिकार है कि वह अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए किस वकील को उपयुक्त समझे

इस प्रकार, विशेष अपील का भी वही हश्र हुआ जो याचिका का।

अपील खारिज। लंबित सभी आवेदन निस्तारित।

और इसके साथ ही अदालत ने मामले पर विराम लगा दिया AAG की नियुक्ति पर कोई असर नहीं पड़ा।

Title:- Sunil Samdaria vs. State of Rajasthan & Anr.

Recommended