गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ संकेत दिया कि चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला लेते समय अदालत बहुत सावधानी से आगे बढ़ेगी। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश सुर्या कांत की अगुवाई वाली पीठ बार-बार याद दिलाती रही कि SIR कोई हर साल होने वाला अभ्यास नहीं है। “हम बहुत ज़्यादा हस्तक्षेप नहीं कर सकते और बार-बार सुझाव नहीं दे सकते,” पीठ ने कहा और हल्के अंदाज़ में जोड़ा, “वे यह प्रक्रिया लगभग बीस साल बाद कर रहे हैं।”
पृष्ठभूमि
तमिलनाडु, पुडुचेरी और कई अन्य क्षेत्रों से दायर याचिकाओं में चुनाव आयोग द्वारा नौ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में SIR शुरू करने की वैधता और तर्क पर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन का तर्क था कि आयोग के बताए गए कारण-तेज़ शहरीकरण और पलायन जैसे-न तो एक-दूसरे से मेल खाते हैं और न ही इस अभ्यास से उनका सीधा संबंध दिखता है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि मतदाता सूची से किसी का नाम हटाना कोई साधारण प्रशासनिक कदम नहीं है। “नाम हटाना मूलतः नागरिकता को निलंबित करने जैसा है,” उन्होंने अदालत से कहा, यह चेतावनी देते हुए कि बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) को किसी मतदाता की पहचान पर संदेह करने का अधिकार स्पष्ट दिशानिर्देशों के बिना दे दिया गया है।
अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ और अधिवक्ता के बीच कई बार बातचीत उदाहरणों के जरिये आगे बढ़ी। जस्टिस जॉयमल्या बागची ने कहा, “माइग्रेशन शब्द केवल घरेलू पलायन तक सीमित नहीं है,” यह संकेत देते हुए कि यह शब्द आबादी के कई तरह के बदलावों को अपने भीतर समेट सकता है। मुख्य न्यायाधीश ने भी पंजाब के खेत मज़दूरों का उदाहरण देते हुए कहा-कई लोग दशकों से वहीं बस गए हैं, पर जड़ें किसी और राज्य में बनी रहती हैं।
रामचंद्रन ने पलटकर कहा कि बिहार के लिए दिए गए कारणों को सहज रूप से लक्षद्वीप या अंडमान-निकोबार जैसे क्षेत्रों पर लागू नहीं किया जा सकता। उन्होंने चुनाव आयोग की दलील को “सरल, आसान और आलसी अनुमान” बताया।
एक मौके पर CJI ने हैवलॉक द्वीप की अपनी यात्रा का ज़िक्र करते हुए कहा, “वहाँ के ज़्यादातर निवासी पंजाब, बिहार, बंगाल से आए प्रवासी थे,” यह रेखांकित करते हुए कि जनसंख्या परिवर्तन को संदर्भ के साथ समझना ज़रूरी है, न कि कठोर मान्यताओं के साथ।
लेकिन पीठ इस बात पर भी अडिग रही कि चुनावी प्रक्रियाओं में अदालत को अत्यधिक हस्तक्षेप से बचना चाहिए। CJI ने टिप्पणी की, “SIR को कोई प्रक्रियागत तरीका नहीं बना सकते। अगर हम माइक्रो-मैनेज करना शुरू कर दें तो यह हर साल होने वाली प्रक्रिया बन जाएगी-यह ठीक नहीं है।”
निर्णय
कोई अंतिम आदेश पारित नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि मुद्दों की गहराई से जांच ज़रूरी है, लेकिन न्यायिक संयम उसका मार्गदर्शन करेगा। मामले की अगली सुनवाई अगले मंगलवार तय की गई है।
Case Title: Challenges to Election Commission’s Special Intensive Revision (SIR) of Electoral Rolls
Case No.: Not specified in the order/hearing summary
Case Type: Writ Petitions challenging SIR notifications
Decision Date: Hearing held on Thursday (Final decision not yet delivered; next hearing scheduled for Tuesday)