सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान सहित कई आरोपियों द्वारा दायर जमानत याचिकाओं पर नोटिस जारी किया। ये याचिकाएँ 2020 उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की कथित बड़ी साज़िश से जुड़ी हैं। लंबे समय से टल रही इस सुनवाई को आखिरकार न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने लिया।
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पृष्ठभूमि
फरवरी 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान भड़की हिंसा में 53 लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए थे। दिल्ली पुलिस का आरोप है कि अभियुक्तों ने योजनाबद्ध तरीके से विरोध प्रदर्शनों को साम्प्रदायिक हिंसा में बदलने की साज़िश रची। सभी पांच याचिकाकर्ता चार साल से अधिक समय से कड़े गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत जेल में हैं।
आरोपियों ने पहले दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। लेकिन 2 सितंबर को हाईकोर्ट ने उनकी जमानत याचिकाएँ खारिज कर दीं और कड़े शब्दों में कहा,
"प्रदर्शन के नाम पर हिंसा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। किसी भी साज़िशी हिंसा को प्रदर्शनों के बहाने अनुमति नहीं दी जा सकती।"
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अभियुक्तों के परिवारों के बीच उम्मीद और बेचैनी दोनों दिखाई दीं। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो एक आरोपी का पक्ष रख रहे थे, ने अदालत से जल्द सुनवाई का आग्रह किया।
उन्होंने कहा, "कृपया इसे दिवाली से पहले सुन लीजिए ताकि वे एक और त्योहार जेल में न बिताएँ।"
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने विशेष रूप से गुलफिशा फातिमा की अंतरिम जमानत की मांग की। उन्होंने कहा कि फातिमा एक छात्रा हैं जिनकी शिक्षा और जीवन पिछले पांच साल से ठहर गया है। सिंघवी ने दलील दी,
"यह चौंकाने वाला है कि एक छात्रा इतने लंबे समय से जेल में है।"
पीठ ने दलीलों को स्वीकार करते हुए तत्काल राहत देने से इंकार कर दिया। न्यायमूर्ति कुमार ने टिप्पणी की,
"हम इसे पिछले सप्ताह नहीं सुन सके क्योंकि हममें से एक अनुपलब्ध थे। सभी मामलों में नोटिस जारी करें।"
सुप्रीम कोर्ट ने अब दिल्ली पुलिस को "सभी माध्यमों से" नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है और सुनवाई की अगली तारीख 7 अक्टूबर तय की है। तब तक अभियुक्तों को जेल में ही रहना होगा।
यह आदेश उन लोगों के लिए एक और इंतज़ार का समय है जो 2020 से जेल में बंद हैं। अब शीर्ष अदालत यह तय करेगी कि बिना मुकदमे के लंबी कैद क्या UAPA मामलों में जमानत के पक्ष में तर्क बन सकती है।