हरियाणा की हजारों एकड़ ग्रामीण ज़मीन से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाया। राज्य सरकार की अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने साफ किया कि “बचत भूमि”-यानी जो ज़मीन गांव के आम कार्यों के लिए चिन्हित नहीं हुई या उपयोग में नहीं आई-वह ग्राम पंचायत के पास नहीं जाएगी। ऐसी ज़मीन मूल ज़मीन मालिकों को ही वापस करनी होगी।
पृष्ठभूमि
मामला 1992 से शुरू होता है, जब हरियाणा सरकार ने पंजाब विलेज कॉमन लैंड्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1961 में संशोधन (हरियाणा एक्ट नंबर 9, 1992) किया। इस संशोधन ने “शामलात देह” की परिभाषा को इतना बढ़ा दिया कि उसमें वह ज़मीन भी शामिल हो गई जो भूमि-सुधार (कन्सॉलिडेशन) के दौरान किसानों से ली गई थी, भले ही उसका कभी सामुदायिक उपयोग न हुआ हो।
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राज्यभर के भूमिधारकों ने इसे अन्यायपूर्ण बताया और कहा कि यह बिना मुआवज़े के जबरन अधिग्रहण है। उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने आंशिक रूप से किसानों का पक्ष माना और कहा कि जो ज़मीन वास्तव में आम उपयोग के लिए सुरक्षित है, वह पंचायत की होगी, लेकिन बचत ज़मीन किसानों को लौटानी होगी। राज्य ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। मामला सालों चला, समीक्षा याचिका तक दाखिल हुई और दोबारा सुनवाई भी हुई।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और के.वी. विश्वनाथन शामिल थे, ने 1960 के दशक से चली आ रही संवैधानिक मिसालों का अध्ययन किया।
पीठ ने प्रसिद्ध भगत राम केस का ज़िक्र किया, जिसमें कहा गया था कि सिर्फ पंचायत की आय के लिए ज़मीन सुरक्षित करना, बिना किसी विशेष सामुदायिक उपयोग के, संविधान में दिए गए मुआवज़े के अधिकार का उल्लंघन है।
बेंच ने स्पष्ट किया – “धारा 18(c) के तहत आम उपयोग के लिए सुरक्षित भूमि सरकार या ग्राम पंचायत की होगी। लेकिन जो ज़मीन किसानों से प्रोराटा आधार पर ली गई लेकिन किसी योजना में आम प्रयोजन के लिए चिन्हित नहीं हुई, यानी बचत भूमि, वह न तो राज्य और न ही ग्राम पंचायत की होगी।”
कोर्ट ने Stare Decisis (पूर्वनिर्णयों का पालन) सिद्धांत पर भी ज़ोर दिया, जिसमें कहा गया कि जब किसी क़ानूनी व्याख्या को लंबे समय तक लगातार लागू किया जाता है, तो बिना किसी ठोस कारण के उसे बदलना उचित नहीं। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सौ से अधिक मामलों में यही राय दी है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा।
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फैसला
मामले का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य की अपील में “कोई दम नहीं” है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि पंचायत को वही ज़मीन मिलेगी जो स्कूल, श्मशान, तालाब और अन्य सार्वजनिक ज़रूरतों के लिए चिन्हित की गई है। लेकिन बचत भूमि पर पंचायत का कोई हक नहीं है।
आदेश अंत में साफ शब्दों में कहा गया: “राज्य की अपील खारिज की जाती है। कोई लागत आदेश नहीं।”
केस का शीर्षक: हरियाणा राज्य बनाम जय सिंह एवं अन्य, सिविल अपील संख्या 6990/2014
मुद्दा: हरियाणा अधिनियम संख्या 9/1992 (पंजाब ग्राम साझा भूमि अधिनियम, 1961 में संशोधन) की वैधता