दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार, 10 सितम्बर 2025 को, दंपत्ति दिव्या शर्मा और मुदित वशिष्ठा द्वारा दायर दो क्रॉस-याचिकाओं पर एक साझा फैसला सुनाया। जस्टिस स्वरना कांत शर्मा ने दोनों पक्षों की लंबी बहस सुनने के बाद परिवार न्यायालय के उस आदेश में हस्तक्षेप से इंकार कर दिया, जिसमें पत्नी और उनके छोटे बच्चे के लिए ₹25,000 प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण तय किया गया था।
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पृष्ठभूमि
यह विवाह जनवरी 2019 में दिल्ली के छतरपुर फार्म्स में हुआ था। अगले साल एक पुत्र का जन्म हुआ, लेकिन संबंध जल्द ही बिगड़ गए। अप्रैल 2020 तक पत्नी ने उत्पीड़न और क्रूरता का आरोप लगाते हुए ससुराल छोड़ दिया। 2021 में उसने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत परिवार न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया और ₹2 लाख मासिक भरण-पोषण की मांग की। परिवार न्यायालय ने हालांकि अंतरिम तौर पर ₹25,000 तय किया।
इस रकम से असंतुष्ट होकर दोनों पक्ष हाईकोर्ट पहुँचे - दिव्या शर्मा ने बढ़ोतरी की मांग की, जबकि मुदित वशिष्ठा ने कमी की मांग करते हुए कहा कि आदेश उनकी सामर्थ्य से बाहर है।
अदालत में दलीलें
पत्नी के वकीलों का कहना था कि ₹25,000 पति की जीवनशैली के सामने नगण्य है। "उसके पास करोड़ों की संपत्ति है, किराये की आय है और यूरोप हनीमून जैसी फिज़ूलखर्ची का सबूत मौजूद है," उन्होंने कहा। उन्होंने 2018–19 का आयकर रिटर्न दिखाया जिसमें ₹10 लाख से अधिक वार्षिक आय दर्ज थी।
वहीं पति की ओर से बिल्कुल उलटी तस्वीर पेश की गई। उनके वकीलों ने कहा कि वे एक वकील के तौर पर केवल ₹14,000 मासिक कमाते हैं और संपत्तियों में उनका कोई वास्तविक स्वामित्व नहीं है। यहां तक कि फॉर्च्यूनर कार और हनीमून यात्रा भी पिता ने ही वित्तपोषित की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि पत्नी पढ़ी-लिखी है और "जानबूझकर काम नहीं कर रही" जबकि वह अपने लिए कमाने में सक्षम है।
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अदालत की टिप्पणियाँ
जस्टिस शर्मा पति की दलीलों से संतुष्ट नहीं दिखीं। अदालत ने कहा, “यह विश्वास योग्य नहीं है कि प्रतिवादी केवल ₹14,000/- प्रति माह ही कमा रहा है।” न्यायालय ने नोट किया कि 2018–19 में उसकी आय ₹10 लाख से अधिक थी लेकिन 2020–21 में, अलगाव के तुरंत बाद, अचानक ₹1.8 लाख रह गई। जज ने टिप्पणी की कि ऐसे हस्तांतरण और आय में गिरावट “वित्तीय क्षमता को जानबूझकर कम दिखाने के प्रयास” को दर्शाते हैं।
पत्नी की रोजगार क्षमता पर अदालत ने स्पष्ट कहा:
"सुप्रीम कोर्ट ने कमाने की क्षमता और वास्तविक आय के बीच अंतर स्पष्ट किया है। एक पाँच वर्षीय बच्चे की देखभाल करते हुए सीए की पढ़ाई कर रही पत्नी से तत्काल नौकरी करने की अपेक्षा वास्तविक या न्यायसंगत नहीं है।"
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निर्णय
आख़िरकार हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय की गणना का समर्थन किया। अदालत ने कहा कि ₹25,000 प्रति माह का आदेश बच्चे की शिक्षा और परवरिश की ज़रूरतों तथा पति की वित्तीय क्षमता के बीच उचित संतुलन है। पत्नी और पति दोनों की याचिकाएँ खारिज कर दी गईं।
जस्टिस शर्मा ने पति को निर्देश दिया कि यदि कोई बकाया है तो उसे दो महीने के भीतर साफ़ करे, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि यह केवल अंतरिम व्यवस्था है, अंतिम फैसला सबूतों पर आधारित होगा।
इस तरह अदालत की कार्यवाही का अंत हुआ, न पत्नी पूरी तरह संतुष्ट हुई न पति, लेकिन हाईकोर्ट ने साफ़ कर दिया - ₹25,000 का आदेश जारी रहेगा।
केस का शीर्षक:- मुदित वशिष्ठ बनाम दिव्या शर्मा एवं अन्य।
केस नं.: CRL.REV.P. 750/2024