कर्नाटक हाई कोर्ट ने मंगलवार (9 सितम्बर 2025) को वह एकतरफा आदेश रद्द कर दिया जिसमें चार बेटों और एक बहू को अपने बुजुर्ग माता-पिता को ₹5 लाख मुआवज़ा देने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने इसके बजाय मासिक भरण-पोषण को प्रत्येक के लिए ₹30,000 कर दिया और साफ किया कि एकमुश्त मुआवज़ा वरिष्ठ नागरिक कानून में मान्य नहीं है।
पृष्ठभूमि
यह विवाद बेंगलुरु की बोहरा परिवार से जुड़ा है। चार बेटे और एक बहू का अपने पिता हीरालाल बोहरा और सौतेली माँ निर्मला बोहरा से वर्षों से टकराव चल रहा था। एक ओर बेटे पिता पर संपत्ति को अनुचित ढंग से नियंत्रित करने का आरोप लगाते रहे, तो दूसरी ओर माता-पिता ने बच्चों पर उत्पीड़न और किराए की संपत्ति पर अवैध कब्ज़े का आरोप लगाया।
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2021 में सहायक आयुक्त ने माता-पिता के पक्ष में आदेश दिया और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत बच्चों को ₹5 लाख देने और संपत्ति खाली करने का निर्देश दिया। लेकिन यह आदेश बिना बच्चों को सुने ही पारित हुआ था।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने अपने आदेश में दो बड़ी खामियों को स्पष्ट किया। पहली, आदेश एकतरफा था और कोई ठोस सबूत नहीं था कि बेटों को नोटिस सही तरीके से मिला था। दूसरी, ₹5 लाख “मुआवज़ा” देने का आदेश कानून में कहीं दर्ज नहीं है।
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न्यायाधीश ने कहा,
"मुआवज़ा शब्द न तो अधिनियम में है और न ही नियमों में। भरण-पोषण बार-बार की ज़रूरतों के लिए होता है - भोजन, कपड़ा, इलाज - यह एकमुश्त राशि नहीं हो सकती।"
अदालत ने महँगाई के असर और पुराने ₹10,000 मासिक सीमा पर भी चिंता जताई।
"2007 में जो ₹100 में मिलता था, आज उसके लिए लगभग ₹1000 चाहिए। अगर राहत केवल कागज़ी हो, तो वह राहत नहीं है," न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने टिप्पणी की और केंद्र सरकार से धारा 9 की समीक्षा करने का आग्रह किया।
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निर्णय
अदालत ने संतुलित आदेश देते हुए कहा:
- सहायक आयुक्त का 2021 का आदेश रद्द किया जाता है।
- मामला फिर से सुनवाई के लिए भेजा गया ताकि दोनों पक्षों को सुना जा सके।
- बच्चों को अप्रैल 2021 से अब तक प्रत्येक माह ₹10,000 प्रति माता-पिता देने का आदेश।
- 9 सितम्बर 2025 से आगे यह राशि बढ़ाकर ₹30,000 प्रति माह प्रति माता-पिता कर दी गई।
- अगर पहले ₹5 लाख का भुगतान हो चुका है, तो उसे बकाया राशि में समायोजित किया जाएगा।
- इस आदेश की प्रति केंद्र वित्त मंत्रालय को भेजी जाएगी ताकि भरण-पोषण सीमा को महँगाई के अनुसार संशोधित किया जा सके।
अदालत ने अंत में कहा,
"जीवन की संध्या गरीबी और उपेक्षा की छाया में नहीं बल्कि देखभाल की रोशनी में बीते। भरण-पोषण मृगतृष्णा नहीं होना चाहिए।"
केस का शीर्षक: श्री सुनील एच. बोहरा एवं अन्य बनाम सहायक आयुक्त एवं अन्य
केस संख्या: Writ Petition No. 13448 of 2021 (GM–RES)