नई दिल्ली, 12 सितंबर – भीड़भरे कोर्टरूम में सुप्रीम कोर्ट ने गीता @ रीता मिश्रा और अजय कुमार मिश्रा के लंबे समय से चल रहे वैवाहिक विवाद को खत्म करते हुए उनका तलाक बरकरार रखा और पति को बेटी की शादी के लिए ₹10 लाख देने का निर्देश दिया। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने टिप्पणी की कि जब विवाह पूरी तरह टूट भी जाए, तब भी पिता का अपने बच्चे के प्रति कर्तव्य बना रहता है।
पृष्ठभूमि
गीता और अजय का विवाह मई 1996 में हुआ था और उनके दो बच्चे हैं—1997 में जन्मी एक बेटी और 1999 में जन्मा बेटा। शुरू से ही रिश्ते में दरार आने लगी। 2009 तक अजय ने क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक की अर्जी दे दी, जबकि गीता ने उन पर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया। आने वाले वर्षों में कानूनी लड़ाइयाँ बढ़ती गईं—घरेलू हिंसा की शिकायतें, भरण-पोषण आदेश, और यहाँ तक कि अजय द्वारा बच्चों की पितृत्व जाँच (डीएनए टेस्ट) की असफल अर्जी तक।
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महिला न्यायालय ने गीता को भरण-पोषण और बाद में घरेलू हिंसा के लिए क्षतिपूर्ति दी, लेकिन 2019 में फैमिली कोर्ट ने लगातार वैमनस्य को देखते हुए तलाक का डिक्री दे दी। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2023 में इस फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि बार-बार की पुलिस शिकायतें और दस साल की अलगाव की अवधि विवाह के अपूरणीय टूटने को साबित करती हैं।
अंतिम अपील सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मेल-मिलाप की सारी कोशिशें नाकाम रही हैं। पीठ ने कहा, “यह स्पष्ट है कि पक्षकारों के बीच वैवाहिक संबंध वास्तविकता में समाप्त हो चुके हैं।” गीता ने अपनी मांग घटाकर सिर्फ बेटी की शादी के खर्च के लिए राशि मांगी। अजय ने अपनी आय से इंकार किया, लेकिन पीठ ने इसे स्वीकार नहीं किया। न्यायाधीशों ने कहा, “अपने बच्चों का भरण-पोषण करना पिता का कर्तव्य है और बेटी की शादी के खर्च को पूरा करना एक साधारण दायित्व है।”
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फैसला
कोर्ट ने तलाक को बरकरार रखते हुए अजय कुमार मिश्रा को 15 अक्टूबर 2025 तक गीता को ₹10,00,000 देने का निर्देश दिया। भुगतान न होने की स्थिति में रजिस्ट्री अपील को दोबारा सुनवाई के लिए बहाल करेगी। देश की सर्वोच्च अदालत में इस तरह डेढ़ दशक पुराना विवाद आखिरकार खत्म हुआ।
मामला: गीता @ रीता मिश्रा बनाम अजय कुमार मिश्रा
अपील संख्या: सिविल अपील संख्या …/2025 (@ एसएलपी (सी) संख्या 15168-15173/2024)
निर्णय तिथि: 12 सितंबर 2025