Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने फरार आरोपी पर ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द किया, आत्मसमर्पण और ज़मानत विकल्प का निर्देश

Shivam Y.

मोहम्मद सिद्दीक लोन बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और अन्य। - जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने एनडीपीएस आरोपियों के खिलाफ ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया, आत्मसमर्पण और जमानत याचिका का निर्देश दिया, बीएनएसएस के तहत सुरक्षा उपायों पर जोर दिया।

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने फरार आरोपी पर ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द किया, आत्मसमर्पण और ज़मानत विकल्प का निर्देश

अनुपस्थित आरोपियों के साथ निचली अदालतें कैसे पेश आएँगी, इस पर असर डाल सकने वाले एक अहम फैसले में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट, श्रीनगर ने उस आदेश को निरस्त कर दिया है जिसमें कुपवाड़ा की ट्रायल कोर्ट ने एक आरोपी के खिलाफ कठोर प्रावधान लागू किया था। न्यायमूर्ति मोहम्मद यूसुफ वानी ने यह आदेश 13 अगस्त 2025 को मोहम्मद सिद्दीक़ लोन बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर व अन्य मामले में सुनाया।

Read in English

पृष्ठभूमि

यह मामला एफआईआर संख्या 72/2022 से जुड़ा है, जो मादक द्रव्य और मन:प्रभावी पदार्थ (NDPS) अधिनियम के तहत दर्ज हुआ था। पुलिस का आरोप था कि लोन का संबंध सह-आरोपियों से है जिन्हें एक सार्वजनिक बस में चरस के साथ पकड़ा गया। लेकिन याचिकाकर्ता का कहना था कि उसके पास से कोई बरामदगी नहीं हुई और उसका नाम केवल अन्य आरोपियों के बयान से सामने आया।

Read also:- मद्रास हाईकोर्ट ने ट्रांसजेंडर एमबीबीएस स्नातक के दस्तावेज लौटाने का आदेश दिया, विश्वविद्यालय को समिति बनाने का निर्देश

इसके बावजूद, दिसंबर 2022 में ट्रायल कोर्ट ने पुराने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 299 (अब BNSS की धारा 335) के तहत कार्यवाही शुरू कर दी, जो उन मामलों में साक्ष्य दर्ज करने की अनुमति देती है जब आरोपी फरार हो। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह आदेश किसी कानूनी प्रक्रिया - जैसे उद्घोषणा या गिरफ्तारी वारंट - के बिना, केवल जांच अधिकारी के बयान पर आधारित था।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति वानी ने ट्रायल कोर्ट के आदेश की बारीकी से जांच की और उसे त्रुटिपूर्ण पाया। बेंच ने कहा,

"दंड संहिता की धारा 299 के तहत कार्यवाही केवल जांच अधिकारी के कहने पर शुरू कर दी गई। ट्रायल कोर्ट को दस्तावेज़ों के आधार पर अपनी संतुष्टि दर्ज करनी चाहिए थी।"

Read also:- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चौथी यादव और श्रीराम की उम्रकैद बरकरार रखी, 1983 देवरिया हत्या कांड का फैसला

न्यायाधीश ने यह भी रेखांकित किया कि यह प्रावधान असाधारण है क्योंकि इसके तहत आरोपी की अनुपस्थिति में गवाहों के बयान दर्ज किए जाते हैं। यदि बाद में गवाह मर जाएँ या उपलब्ध न हों, तो आरोपी के जिरह का अधिकार स्थायी रूप से प्रभावित हो सकता है।

हाई कोर्ट ने एक चिंताजनक प्रवृत्ति पर भी टिप्पणी की। न्यायमूर्ति वानी ने कहा,

"आपराधिक अदालतें अक्सर केवल जांच अधिकारी के कहने पर धारा 299 की कार्यवाही शुरू कर देती हैं, बिना यह सुनिश्चित किए कि आरोपी को गिरफ्तार करने के प्रयास पूरी तरह किए गए।" उन्होंने चेताया कि ऐसी शॉर्टकट प्रक्रिया निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को कमजोर कर सकती है।

Read also:- बॉम्बे हाईकोर्ट ने हिकल लिमिटेड पर जीएसटी की कार्यवाही को किया रद्द, कहा निरस्त नियमों पर कार्रवाई टिक नहीं सकती

निर्णय

हाई कोर्ट ने 12 दिसंबर 2022 के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करे। साथ ही, लोन को ज़मानत अर्जी दाखिल करने की स्वतंत्रता दी गई और ट्रायल कोर्ट को कहा गया कि वह इस पर शीघ्र निर्णय करे।

मामले का समापन हाई कोर्ट की इस सख्त लेकिन नरम याद दिलाने के साथ हुआ कि धारा 299/335 जैसे असाधारण प्रावधान केवल सुरक्षा उपायों का कड़ाई से पालन करने के बाद ही लागू किए जाएँ, न कि जांचकर्ताओं की सुविधा के लिए।

केस का शीर्षक: मोहम्मद सिद्दीक लोन बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और अन्य।

केस नंबर: CRM(M) 471/2025 CrlM 1133/2025

Advertisment

Recommended Posts