केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को वरिष्ठ वन अधिकारी से जुड़े दशकों पुराने छेड़छाड़ मामले में पूर्व वन मंत्री डॉ. ए. नीललोहीतदासन नादर की सज़ा को ख़ारिज कर दिया। न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ ने 15 सितंबर 2025 को फैसला सुनाते हुए संदेह का लाभ देते हुए पूर्व मंत्री को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के सबूत सख्त कानूनी जांच में खरे नहीं उतरे।
पृष्ठभूमि
यह मामला 27 फरवरी 1999 का है, जब शिकायतकर्ता, जो उस समय कोझिकोड में डिवीजनल फ़ॉरेस्ट ऑफ़िसर थीं, ने आरोप लगाया था कि नादर ने गवर्नमेंट गेस्ट हाउस में उनकी अस्मिता भंग की। 2004 में ट्रायल कोर्ट ने उन्हें आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषी ठहराया और एक साल की साधारण क़ैद की सज़ा सुनाई। अपील पर सेशंस कोर्ट ने दोषसिद्धि बरकरार रखी लेकिन सज़ा घटाकर तीन महीने कर दी।
पूर्व मंत्री ने दोनों आदेशों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दाखिल की। उनके वकीलों का तर्क था कि यह मामला ''फ़ॉरेस्ट माफिया'' के दबाव में गढ़ा गया था। उन्होंने शिकायतकर्ता की गवाही में विरोधाभास, शिकायत दर्ज कराने में देरी और सुनी-सुनाई गवाही पर निर्भरता की ओर इशारा किया।
Read Also : कलकत्ता हाईकोर्ट ने बेरोजगारी के दावे के बावजूद पति को मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति एडप्पागथ ने कहा कि हालांकि केवल पीड़िता की गवाही के आधार पर भी अदालत दोषसिद्धि कर सकती है, लेकिन यह गवाही ''उत्कृष्ट गुणवत्ता'' की होनी चाहिए - यानी सुसंगत, विश्वसनीय और बड़े विरोधाभासों से मुक्त। अदालत ने कहा,
''सवाल यह है कि क्या उसकी गवाही, जिसमें उसने कहा कि याचिकाकर्ता ने उसका हाथ पकड़ा और अपनी ओर खींचा, दोष साबित करने के लिए भरोसेमंद मानी जा सकती है।''
अदालत ने शिकायतकर्ता के बयान में खामियाँ और असंगतियाँ पाईं। घटना के दो साल से अधिक समय बाद, जब मंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया था, तब जाकर उसने औपचारिक शिकायत दर्ज कराई। उसने दावा किया कि उसने उसी दिन अपनी माँ और दोस्त को बताया था, लेकिन यह बात पहले दिए गए बयानों या लिखित शिकायत में नहीं थी। जिन वरिष्ठ अधिकारियों से उसने कहा था कि वह मिली थी, उन्होंने भी अदालत में उसका समर्थन नहीं किया।
फ़ैसले में पहचान की ग़लती का मुद्दा भी सामने आया। जिस व्यक्ति को उसने कमरे में मौजूद बताया था, वह उस दिन कोझिकोड में था ही नहीं। न्यायमूर्ति एडप्पागथ ने टिप्पणी की,
''उसका संस्करण लगातार संशोधित और बेहतर किया गया है, ''और निष्कर्ष निकाला कि इसे ''पूरी तरह विश्वसनीय'' गवाही नहीं माना जा सकता।
फैसला
अदालत ने पाया कि ट्रायल कोर्ट और सेशंस कोर्ट दोनों ने असंगत और अस्वीकार्य सबूतों पर भरोसा किया। हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि रद्द कर दी। डॉ. नादर को आईपीसी की धारा 354 के आरोप से बरी कर दिया गया। अदालत ने कहा,
''किसी भी हालत में, यह ऐसा मामला है जिसमें याचिकाकर्ता को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए था।''
इस आदेश के साथ, पूर्व मंत्री दो दशकों से अधिक की कानूनी लड़ाई के बाद मुक्त हो गए। अदालत ने साफ़ कर दिया कि अभियोजन पक्ष अपराध साबित करने में संदेह से परे असफल रहा।
केस का शीर्षक : डॉ. ए. नीललोहीतदासन नादर बनाम राज्य केरल
केस नंबर : आपराधिक पुनरीक्षण याचिका संख्या 1449 वर्ष 2004