बॉम्बे हाईकोर्ट के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, न्यायमूर्ति आर.आई. चागला ने ठाणे के सांसद नरेश गणपत म्हास्के की जीत को चुनौती देने वाली चुनाव याचिका को खारिज करने से सोमवार को इनकार कर दिया। शिवसेना (यूबीटी) नेता राजन विचारे द्वारा दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि म्हास्के ने अनिवार्य चुनावी हलफनामे, जिसे फॉर्म 26 कहा जाता है, में अपने पिछले आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा नहीं किया था।
यह आदेश म्हास्के और एक अन्य प्रतिवादी की ओर से दायर दो अर्जियों पर आया, जिसमें उन्होंने इस याचिका को शुरुआती चरण में ही खारिज करने की मांग की थी। अदालत ने हालांकि यह मांग ठुकरा दी और मुकदमे को पूरा चलाने का रास्ता साफ कर दिया।
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पृष्ठभूमि
पूरा विवाद नामांकन हलफनामों में आपराधिक पृष्ठभूमि के खुलासे को लेकर है — यह नियम इसलिए बनाया गया था ताकि मतदाता सही जानकारी के आधार पर फैसला ले सकें। याचिकाकर्ता का कहना है कि म्हास्के को 2016 में ठाणे की एक अदालत ने दोषी ठहराया था और 2017 में अपील भी खारिज हो चुकी थी। इसके बावजूद, उन्होंने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए दाखिल फॉर्म 26 में सजा वाले खंड में "लागू नहीं" लिखा।
म्हास्के की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रम ननकानी ने तर्क दिया कि चूंकि उन्हें जेल की सजा नहीं हुई बल्कि प्रोबेशन पर छोड़ दिया गया था, इसलिए सजा का खुलासा करना जरूरी नहीं था।
ननकानी ने कहा,
“सिर्फ एक साल या उससे ज्यादा की सजा होने पर ही जानकारी देना जरूरी होता है। मेरे मुवक्किल को ऐसी कोई सजा नहीं हुई।” उन्होंने यह भी कहा कि याचिका में ठोस तथ्य नहीं हैं और यह राजनीतिक बदले की भावना से दायर हुई है।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति आर.आई. चागला ने अपने आदेश में फॉर्म 26 के कानूनी ढांचे पर विस्तार से चर्चा की। अदालत ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 33A के तहत केवल उन्हीं सजा मामलों का खुलासा करना अनिवार्य है, जिनमें कम से कम एक साल की सजा हुई हो। लेकिन अदालत ने यह भी माना कि चुनाव आयोग ने समय-समय पर मतदाताओं के ‘जानने के अधिकार’ को ध्यान में रखते हुए खुलासों का दायरा बढ़ाया है।
पीठ ने टिप्पणी की,
"उम्मीदवारों के बारे में जानकारी का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(क) से निकलता है। अदालतें बार-बार कह चुकी हैं कि आपराधिक पृष्ठभूमि छुपाना मतदाताओं पर अनुचित प्रभाव डाल सकता है," आदेश में कहा गया।
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क्या याचिका में मुकदमा चलाने लायक पर्याप्त ‘मूलभूत तथ्य’ हैं, इस पर अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता दारियस खंबाटा से सहमति जताई। उन्होंने कहा कि यह तय करना कि जानकारी छुपाना भ्रष्ट आचरण है या नहीं, बिना सबूत के नहीं हो सकता। अदालत ने माना कि इस स्तर पर आरोपों की सच्चाई परखना मुमकिन नहीं।
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि शुरुआत में ही चुनाव याचिका खारिज करना एक अपवाद है।
"चुनाव याचिका तभी शुरुआती स्तर पर खारिज की जा सकती है जब उसमें कारण-कार्रवाई का बिल्कुल अभाव हो," न्यायमूर्ति चागला ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा।
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निर्णय
अदालत ने माना कि याचिका में प्रथमदृष्टया मामला बनता है, और इसी आधार पर सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत दायर दोनों अर्जियां खारिज कर दीं। इसका मतलब है कि म्हास्के की जीत को चुनौती देने वाली चुनाव याचिका अब मुकदमे की पूरी सुनवाई तक जाएगी।
"उठाए गए सवाल चुनावी ईमानदारी के मूल तक जाते हैं और इन्हें शुरुआती स्तर पर नकारा नहीं जा सकता," न्यायमूर्ति चागला ने आदेश में कहा।
इस फैसले के साथ ही ठाणे चुनाव विवाद अब मुकदमे के चरण में प्रवेश करेगा - जो भारतीय राजनीति में दुर्लभ माना जाता है, क्योंकि ज्यादातर चुनाव याचिकाएं शुरुआती चरण में ही खत्म हो जाती हैं।
केस का शीर्षक: राजन बाबूराव विचारे बनाम नरेश गणपत म्हस्के और अन्य।
केस नंबर: चुनाव याचिका नंबर 3, 2024