जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट, जम्मू पीठ ने शिक्षा बोर्ड के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें एक युवक की शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में नाम बदलने की मांग को अस्वीकार किया गया था। न्यायमूर्ति संजय धर ने 11 सितंबर 2025 को फैसला सुनाते हुए कहा कि बोर्ड का रवैया ''कानून की दृष्टि से टिकाऊ नहीं'' है और मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता मोहम्मद हसन का नाम बचपन में राज वाली रखा गया था। यही नाम उनकी दसवीं और बारहवीं तक की शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में दर्ज रहा। अदालत में हसन ने बताया कि बचपन से ही इस नाम को लेकर दोस्त मजाक उड़ाते थे लेकिन परिवार के विरोध के चलते वह इसे बदल नहीं पाए।
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ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उन्होंने आधिकारिक तौर पर नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू की। अप्रैल 2023 में भारत सरकार के गजट में नया नाम प्रकाशित हुआ और आधार, पैन, पासपोर्ट, वोटर आईडी और यहां तक कि डोमिसाइल प्रमाणपत्र में भी नाम अपडेट करवा लिया।
इसके बाद उन्होंने जम्मू-कश्मीर बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन (JKBOSE) से पुराने प्रमाणपत्रों में नाम बदलने की गुहार लगाई। मगर दिसंबर 2024 में बोर्ड ने आवेदन खारिज कर दिया। उसका तर्क था कि यह नियमों के खिलाफ है और समय सीमा भी पार हो चुकी है क्योंकि मैट्रिकुलेशन के तीन साल से ज़्यादा बीत चुके थे।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति संजय धर ने व्यापक संवैधानिक दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने कहा कि
''नाम चुनने और बदलने का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) का हिस्सा है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) से भी जुड़ा हुआ है।''
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सुप्रीम कोर्ट के जिग्या यादव बनाम सीबीएसई (2021) फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा,
''पहचान कई आंतरिक और बाहरी पहलुओं का मेल है, और नाम उसका सबसे अहम संकेतक है। व्यक्ति को अपने नाम पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए।''
बोर्ड की यह दलील कि तीन साल की सीमा लागू होती है, अदालत ने खारिज कर दी। जज ने साफ किया कि यह नियम सिर्फ टाइपिंग या लिपिकीय त्रुटियों की सुधार सीमा से जुड़ा है, न कि उस स्थिति से जब व्यक्ति आधिकारिक दस्तावेजों में नाम बदल चुका हो।
अदालत ने केरल, दिल्ली और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों का भी ज़िक्र किया, जहाँ यह कहा गया था कि bona fide (सच्ची) मांग को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
निर्णय
मामले का निपटारा करते हुए अदालत ने बोर्ड का दिसंबर 2024 का आदेश रद्द कर दिया। साथ ही JKBOSE को निर्देश दिया कि वह मोहम्मद हसन के आवेदन पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक दोबारा विचार करे।
अगर आवेदन स्वीकार किया जाता है तो नए प्रमाणपत्रों में नाम ''राज वाली उर्फ़ मोहम्मद हसन'' दर्ज किया जाए, ताकि पुरानी और नई पहचान दोनों में समानता बनी रहे।
इस फैसले से अदालत ने साफ संदेश दिया कि नाम चुनना या बदलना किसी दफ्तर की मेहरबानी नहीं बल्कि व्यक्ति की गरिमा और अधिकार का हिस्सा है।
मामले का शीर्षक: मोहम्मद हसन बनाम जम्मू एवं कश्मीर संघ शासित प्रदेश एवं अन्य
मामला संख्या: WP(C) No. 21 of 2025