इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉ. इला गुप्ता की वह अपील खारिज कर दी है जिसमें उन्होंने गाज़ियाबाद के वसुंधरा स्थित डुप्लेक्स फ्लैट पर स्वामित्व का दावा किया था। मामला पारिवारिक रिश्तों और पैसों के लेन-देन से जुड़ा था, जहाँ उन्होंने आरोप लगाया कि उनके चाचा, ओम प्रकाश गुप्ता, ने धोखाधड़ी से फ्लैट अपने नाम करा लिया।
पृष्ठभूमि
डॉ. इला गुप्ता, जो कि पेशे से डॉक्टर हैं, ने अदालत को बताया कि वर्ष 2005 में उन्होंने अपने चाचा ओम प्रकाश गुप्ता को वसुंधरा हाउसिंग स्कीम में घर के लिए आवेदन करने की ज़िम्मेदारी दी थी। वह अपने पेशे में व्यस्त थीं, इसलिए उन्होंने ₹85,000 पंजीयन शुल्क और बाद में लगभग ₹7.6 लाख उन्हें सौंपे। उनका दावा था कि यह पूरी व्यवस्था भरोसे और पारिवारिक रिश्तों पर आधारित थी, और चाचा केवल ''नामधारी'' थे, असली मालिक वही थीं।
लेकिन विवाद तब शुरू हुआ जब अलॉटमेंट के बाद चाचा ने खुद को ही मालिक बताना शुरू कर दिया। गुप्ता का कहना था कि उन्होंने बिना जानकारी के आगे की किश्तें भी भर दीं। इसके बाद नोटिस और फिर 2006 में मुकदमा दायर किया गया।
ट्रायल कोर्ट ने 2013 में मुकदमा खारिज कर दिया और केवल आंशिक राहत दी- ₹8.46 लाख राशि 6% ब्याज के साथ वापस लौटाने का आदेश। इसी फैसले को चुनौती देते हुए इला गुप्ता ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
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अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति संदीप जैन ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। गुप्ता की ओर से कहा गया कि
''चाचा रिश्ते में पितामह थे, इस कारण विश्वास की स्थिति में थे। उन्होंने केवल कोटा लाभ लेने के लिए नाम का उपयोग किया, वास्तविक धनराशि अपीलकर्ता ने दी।''
वहीं बचाव पक्ष ने जोर देकर कहा कि असली मालिक वही हैं क्योंकि उन्होंने अपनी पेंशन, बचत और पारिवारिक योगदान से करीब ₹25 लाख का भुगतान किया। ''उन्होंने सिर्फ मुझे ₹8.45 लाख का अल्पकालिक ऋण दिया था,'' उनके वकील ने दलील दी।
अदालत ने साक्ष्यों की बारीकी से पड़ताल की और पाया कि बिक्री विलेख और कब्ज़ा दोनों ओम प्रकाश गुप्ता के नाम पर थे। सिर्फ आर्थिक सहयोग से कानूनी स्वामित्व साबित नहीं होता। अदालत ने साफ किया कि बेनामी लेन-देन (प्रतिषेध) अधिनियम, 1988, ऐसे दावों को रोकता है जब तक भरोसे की स्थिति (fiduciary capacity) साबित न हो।
अपने आदेश में बेंच ने कहा:
''वादिनी यह साबित करने में पूरी तरह असफल रही कि प्रतिवादी संख्या-1 किसी भी प्रकार से उसके प्रति फिड्यूशियरी स्थिति में थे। मात्र वित्तीय लेन- देन से स्वामित्व का दावा मान्य नहीं है।''
निर्णय
लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकरार रखा। यह तय किया गया कि ओम प्रकाश गुप्ता ही वैध मालिक हैं और यह घर डॉ. इला गुप्ता के लिए कोई बेनामी संपत्ति नहीं था। अपील को निराधार मानकर खारिज कर दिया गया।
हालाँकि, ट्रायल कोर्ट का आदेश यथावत रखा गया, जिसके तहत ओम प्रकाश गुप्ता को ₹8,46,865 राशि 6% वार्षिक ब्याज सहित लौटानी होगी। दोनों पक्षों को अपने- अपने खर्चे खुद उठाने का निर्देश दिया गया।
फैसला साफ शब्दों में खत्म हुआ- डॉ. इला गुप्ता वसुंधरा फ्लैट पर स्वामित्व या कब्ज़े का दावा नहीं कर सकतीं।
Case Tittle : डॉ. इला गुप्ता बनाम ओम प्रकाश गुप्ता एवं एक अन्य
Case Number : First Appeal From Order (FAFO) No. 1238 of 2013