दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को अमन सत्य कच्छरू ट्रस्ट द्वारा दायर दो याचिकाओं का निपटारा कर दिया, जिनमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के उस निर्णय को चुनौती दी गई थी जिसके तहत राष्ट्रीय रैगिंग रोकथाम कार्यक्रम (NRPP) के प्रबंधन का अनुबंध सेंटर फॉर यूथ सोसायटी (C4Y) को दिया गया था।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ ने कहा कि ट्रस्ट द्वारा उठाए गए मुद्दे पहले से ही उच्च शिक्षा में छात्रों की आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सुनवाई के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन हैं।
पृष्ठभूमि
यह विवाद 2012 से जुड़ा है, जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ट्रस्ट ने एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन और निगरानी डेटाबेस की जिम्मेदारी संभाली। वर्षों तक हुए सर्वेक्षणों में रैगिंग मामलों में तेज गिरावट दिखाई दी, लेकिन हालात तब बदले जब 2021 में यूजीसी ने नामांकन मॉडल से हटकर खुले टेंडर की नीति अपनाई। ट्रस्ट का आरोप था कि यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेशों की भावना के खिलाफ है और जानबूझकर उन्हें बाहर करने के लिए तैयार किया गया।
अपनी याचिकाओं में ट्रस्ट ने 2021 और 2024 के टेंडर रद्द करने की मांग की और अधिकारियों पर C4Y को पक्षपातपूर्ण तरीके से फायदा पहुँचाने का आरोप लगाया, जबकि उसके पास विशेषज्ञता का अभाव है। ट्रस्ट की ओर से पेश हुई अधिवक्ता इंदिरा उन्निनायर ने दलील दी कि रैगिंग, संस्थागत उपेक्षा और बढ़ती छात्र आत्महत्याएँ आपस में गहराई से जुड़ी हैं।
अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत चिंताजनक आँकड़ों पर गौर किया: हर साल 13,000 से ज्यादा छात्र आत्महत्याएँ, 2022 से रैगिंग शिकायतों में लगातार वृद्धि, और हाशिए पर मौजूद छात्रों के बीच बढ़ती ड्रॉपआउट दरें।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति दयाल ने टिप्पणी की -
"हम आँखें मूँद नहीं सकते जब बार-बार खबरें आती हैं कि शिकायतें अनसुनी रह जाने के बाद युवा अपनी जान गंवा रहे हैं।"
Read also:- राष्ट्रपति ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में छह अतिरिक्त न्यायाधीशों की पुष्टि की।
लेकिन अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने अमित कुमार बनाम भारत संघ (2025) मामले में पहले ही पूर्व न्यायाधीश एस. रविंद्र भट की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स गठित कर दी है, जो प्रणालीगत खामियों की समीक्षा कर सुधार सुझाएगी। खास बात यह है कि ट्रस्ट के संस्थापक प्रोफेसर राजेंद्र कच्छरू भी इस टास्क फोर्स के सदस्य हैं।
पीठ ने कहा,
"चूँकि सर्वोच्च न्यायालय पहले से इन मुद्दों पर विचार कर रहा है, हमारे लिए समानांतर जांच करना न तो उचित होगा और न ही व्यावहारिक। समाधान उसी ढाँचे से निकलना चाहिए जो पहले से चालू है।"
निर्णय
हाई कोर्ट ने मौजूदा टेंडर में दखल देने से इनकार किया और कहा कि यह 31 दिसंबर 2025 को समाप्त हो जाएगा। पीठ ने स्पष्ट किया -
"इस अनुबंध के अंतिम चरण में हम मौजूदा कामकाज को बाधित नहीं करना चाहते।" अदालत ने यह भी दर्ज किया कि यूजीसी ने ट्रस्ट को बकाया भुगतान मंजूर कर दिया है।
दलीलों के दौरान, प्रो. कच्छरू ने पेशकश की कि उनका ट्रस्ट "बिना किसी शुल्क लिए" एंटी-रैगिंग डेटाबेस की निगरानी करने को तैयार है। अदालत ने कहा कि इस प्रस्ताव पर संबंधित प्राधिकरण बाद में विचार कर सकते हैं।
अंत में, अदालत ने उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट की टास्क फोर्स संरचनात्मक चिंताओं का समाधान करेगी और टिप्पणी की कि ,
"एक उचित, कार्यशील और प्रभावी एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन तुरंत जरूरी है, वरना हम और युवा जीवन इस अभिशाप के हाथों खो देंगे।"
केस का शीर्षक:- अमन सत्या काचरू ट्रस्ट बनाम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अन्य।
केस क्रमांक:- W.P.(C) 5438/2022 एवं W.P.(C) 9263/2024