कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को फैमिली कोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें एक महिला को उसके छोटे वेतन के आधार पर भरण-पोषण से वंचित किया गया था। जस्टिस डॉ. अजय कुमार मुखर्जी ने कहा कि यदि पति शारीरिक रूप से सक्षम है, तो वह बेरोजगारी का बहाना बनाकर अपनी कानूनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।
पृष्ठभूमि
यह मामला रिंकी चक्रवर्ती (नी दास) द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जिसे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत दाखिल किया गया था। उन्होंने अपने पति से प्रति माह ₹10,000 की मांग की थी, यह आरोप लगाते हुए कि 2012 में विवाह के बाद पति ने उन्हें छोड़ दिया। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने पहले उन्हें अंतरिम राहत दी थी, लेकिन जून 2023 में अंतिम भरण-पोषण की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि पत्नी की अपनी आय है और पति बेरोजगार है।
महिला ने उस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि यह आदेश यांत्रिक और अन्यायपूर्ण था। उनके वकीलों ने जोर देकर कहा कि वह कठिनाई में जीवन बिता रही हैं जबकि पति आर्थिक रूप से मजबूत परिवार से है और जानबूझकर जिम्मेदारी से बच रहा है।
अदालत की टिप्पणियाँ
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से चले आ रहे मुकदमों का गहराई से परीक्षण किया। अदालत ने नोट किया कि सुप्रीम कोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों ने पहले भी अंतरिम भरण-पोषण के उनके अधिकार को बरकरार रखा था। इसके बावजूद फैमिली कोर्ट ने अंतिम राहत से इनकार कर दिया और कहा कि,
"गरीब निर्धन व्यक्ति को पत्नी का भरण-पोषण करने का आदेश देने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होता।"
जस्टिस मुखर्जी ने इस तर्क से कड़ा असहमति जताई। उन्होंने टिप्पणी की:
"एक सक्षम युवक को यह मान लिया जाता है कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने लायक कमाई कर सकता है। वह यह कहकर नहीं बच सकता कि उसकी स्थिति पत्नी को बनाए रखने की नहीं है।"
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न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि धारा 125 दंप्रसं का उद्देश्य पत्नियों को दरिद्रता से बचाना है और उन्हें वही सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना है जो वे अपने ससुराल में पातीं। पत्नी की ₹12,000 मासिक आय, अदालत ने कहा,
"भरण-पोषण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती, खासकर तब जब पति ने स्वयं स्वीकार किया कि उसका आर्थिक स्तर ऊंचा है।"
अदालत ने पति की दलीलों में विरोधाभास भी पाया - एक ओर उसने आरोप लगाया कि पत्नी ने दांपत्य जीवन से परहेज किया, और दूसरी ओर कहा कि विवाह कभी पूर्ण नहीं हुआ।
निर्णय
हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करते हुए फैमिली कोर्ट का जून 2023 का आदेश रद्द कर दिया। अब पति को आदेश दिया गया है कि वह अपनी पत्नी को प्रति माह ₹4,000 भरण-पोषण के रूप में दे, जो उसकी मूल अर्जी की तारीख से लागू होगा। बकाया राशि को अक्टूबर 2026 तक बारह समान किस्तों में चुकाना होगा।
आदेश इस याद दिलाने के साथ समाप्त हुआ कि भरण-पोषण दान नहीं बल्कि कानूनी और नैतिक कर्तव्य है।
"पति जिम्मेदारी से बचने के लिए बेरोजगारी का बहाना नहीं ले सकता," जस्टिस मुखर्जी ने टिप्पणी की और मामला निपटाया।
केस का शीर्षक: रिंकी चक्रवर्ती नी दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य
केस संख्या: CRR 2556 of 2023