दिल्ली हाईकोर्ट ने एक सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि जब कानून ने स्पष्ट समयसीमा तय कर रखी है तो लापरवाही को इनाम नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने प्रतिवादी द्वारा लिखित बयान देर से दाख़िल करने को माफ़ करने से इंकार कर दिया। न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने 15 सितंबर 2025 को यह आदेश पारित करते हुए श. केवल कृष्ण की याचिका खारिज कर दी।
पृष्ठभूमि
यह विवाद गुलशन कुमार और अन्य द्वारा दायर एक दीवानी वाद से शुरू हुआ था, जिसमें उन्होंने घोषणा और स्थायी निषेधाज्ञा (injunction) की मांग की थी। जबकि कई प्रतिवादी एकतरफा कार्यवाही में चले गए, प्रतिवादी संख्या 1 के रूप में नामित कृष्ण ने निर्धारित समयसीमा में अपना लिखित बयान दाख़िल नहीं किया।
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रिकॉर्ड के मुताबिक़, उन्हें 19 दिसंबर 2024 को समन की तामील हुई थी। लिखित बयान दाख़िल करने के लिए तय 30 दिन की समयसीमा 18 जनवरी 2025 को समाप्त हो गई थी, और सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 8 नियम 1 के तहत उपलब्ध 90 दिन की अधिकतम सीमा भी 18 मार्च 2025 को समाप्त हो चुकी थी। जब तक कृष्ण ने अपना लिखित बयान दाख़िल करने की कोशिश की, ट्रायल कोर्ट 1 अप्रैल 2025 को उनका अधिकार पहले ही बंद कर चुकी थी। इसके बाद 22 जुलाई 2025 को ट्रायल कोर्ट ने उनकी देरी माफ़ करने की अर्जी और पुराने आदेश को वापस लेने की मांग खारिज कर दी।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कृष्ण के वकील ने दलील दी कि लिखित बयान 120 दिनों के भीतर दाख़िल कर दिया गया था, इसलिए ट्रायल कोर्ट को 'थोड़ी नरमी' बरतनी चाहिए थी। उन्होंने बताया कि कृष्ण एक अन्य मुक़दमे से प्रमाणित प्रतियां हासिल करने का इंतज़ार कर रहे थे, जो उनके बचाव तैयार करने में ज़रूरी थीं। वकील ने कहा, 'यह लापरवाही का मामला नहीं था,' और अदालत से व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया।
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कोर्ट की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति काठपालिया इस दलील से सहमत नहीं हुए। पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट पहले ही इस बहाने को खारिज कर चुकी है।
"वे दस्तावेज़ अधिकतम साक्ष्य का हिस्सा हो सकते थे, न कि लिखित बयान में दर्ज की जाने वाली मूल तथ्य," न्यायाधीश ने कहा।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कृष्ण समय पर अपना बचाव दाख़िल कर सकते थे और बाद में ज़रूरत पड़ने पर उन दस्तावेज़ों को सबूत के रूप में जोड़ सकते थे। अदालत ने टिप्पणी की,
"उन्हें प्रमाणित प्रतियों का इंतज़ार करने के बजाय अन्य वाद के दस्तावेज़ों का निरीक्षण कर लेना चाहिए था,” और जोड़ा कि पूरा प्रयास “सिर्फ़ देरी का बहाना" लगता है।
कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि 90 दिन की समयसीमा के बाद भी अदालत के पास देरी माफ़ करने का अधिकार होता है, लेकिन यह सिर्फ़ 'असाधारण परिस्थितियों' में ही किया जा सकता है। प्रमाणित प्रतियों का इंतज़ार करना ऐसी कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है, अदालत ने कहा।
निर्णय
न्यायमूर्ति काठपालिया ने निष्कर्ष दिया कि ट्रायल कोर्ट के आदेश में कोई त्रुटि नहीं थी और कृष्ण की याचिका को सख़्ती से खारिज कर दिया। पीठ ने कहा,
"मैं impugned आदेश में कोई खामी नहीं देख पा रहा हूं, इसलिए इसे बरकरार रखा जाता है।"
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने यह साफ़ कर दिया कि दीवानी वाद में प्रतिवादी का लिखित बयान दाख़िल करने का अधिकार अब बंद रहेगा, जिससे उनके बचाव का रास्ता प्रभावी रूप से बंद हो गया है।
केस का शीर्षक: श्री केवल कृष्ण बनाम श्री गुलशन कुमार एवं अन्य
केस संख्या: CM(M) 1806/2025