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39 किलो गांजा बरामदगी मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का पुनः सुनवाई आदेश सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने 39 किलो गांजा मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का पुनः सुनवाई आदेश रद्द कर अपीलों को नई सुनवाई के लिए बहाल किया।

39 किलो गांजा बरामदगी मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का पुनः सुनवाई आदेश सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द

नई दिल्ली, 15 सितम्बर – सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें 39 किलो गांजा से जुड़े एक मादक पदार्थ मामले की पूरी पुनः सुनवाई का निर्देश दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि मामला फिर से शुरू करने के हाईकोर्ट के कारण “भ्रामक और आधारहीन” हैं और इसके बजाय अपीलों को दोबारा सुनवाई के लिए बहाल कर दिया।

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पृष्ठभूमि

यह मामला सितम्बर 2020 में महाराष्ट्र के अकोला ज़िले के अदगांव स्थित मरी माता मंदिर के पास हुई एक छापेमारी से शुरू हुआ। पुलिस का दावा है कि एक झोपड़ी में बैठे कैलास बाजीराव पवार और राजू मोटीराम सोलंके से 18 प्लास्टिक पैकेट में रखे 39 किलो गांजा बरामद हुए। बाद में अन्य स्थान से और मादक पदार्थ मिलने पर दो और आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।

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ट्रायल कोर्ट ने 2023 में कैलास और राजू को गवाहों की गवाही और छापे के वीडियो के आधार पर दोषी ठहराया, जबकि बाकी दो को बरी कर दिया। अपील पर, 2024 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने वीडियो साक्ष्य और रासायनिक जांच की प्रक्रिया में कमी का हवाला देते हुए सज़ा को रद्द कर दिया और पूरे मामले की पुनः सुनवाई का आदेश दिया।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने पीठ की ओर से लिखते हुए हाईकोर्ट की दलीलों से असहमति जताई। पीठ ने कहा, “एक बार जब धारा 65बी की आवश्यकताओं को पूरा कर लिया जाता है तो वीडियो किसी दस्तावेज़ की तरह स्वीकार्य हो जाता है।” अदालत ने नोट किया कि फोटोग्राफर ने जरूरी प्रमाणपत्र दे दिया था और सीडी अदालत में चलायी भी गई थी।

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न्यायालय ने यह मांग “अजीब और अस्वीकार्य” बताई कि हर गवाह वीडियो की सामग्री को शपथ पर बयान करे। रासायनिक विश्लेषक की गवाही न होने पर जजों ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 293 का हवाला दिया, जो विशेषज्ञ की रिपोर्ट को स्वतः स्वीकार्य मानती है जब तक उस पर विशेष आपत्ति न हो।

पीठ ने जोड़ा कि यदि हाईकोर्ट को वीडियो या अन्य साक्ष्य समझने में कठिनाई थी, तो वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य ले सकता था, पूरी पुनः सुनवाई का आदेश देने के बजाय। अदालत ने कहा, “पुनः सुनवाई पहले की कार्यवाही को मिटा देती है और केवल असाधारण मामलों में ही दी जाती है। यह ऐसा मामला नहीं था।”

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का पुनः सुनवाई का आदेश रद्द कर दिया और मूल अपीलों- जो दोनों दोषियों ने दायर की थीं- को बॉम्बे हाईकोर्ट में दोबारा सुनवाई के लिए भेज दिया। हाईकोर्ट को छह महीने में फैसला करने का निर्देश दिया गया है। सुनवाई के दौरान कैलास को जमानत पर रहने की अनुमति दी गई है। अदालत ने साफ किया कि वह दोष या निर्दोष होने पर कोई राय नहीं दे रही, केवल यह तय कर रही है कि पुनः सुनवाई का आदेश उचित नहीं था।

मामला: कैलास पुत्र बाजीराव पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य

मामला संख्या: आपराधिक अपील (विशेष अनुमति याचिका आपराधिक संख्या 4646/2025 से उत्पन्न)

निर्णय की तिथि: 15 सितंबर 2025

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