सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में खचाखच भरी अदालत में हल्की-सी सिहरन महसूस की जा रही थी, जब मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने विवादित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत 12 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें इस कानून के कई प्रावधानों को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, राजीव धवन, ए.एम. सिंघवी, सी.यू. सिंह और हुजैफा अहमदी ने जोरदार दलीलें दीं कि नया कानून मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों पर सीधा हमला है।
वहीं केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने डटकर बचाव किया और कहा कि यह कानून लंबे समय से जरूरी सुधार है, जिसका मकसद वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण रोकना और प्रशासन को सुव्यवस्थित करना है।
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विवाद की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ताओं का मुख्य तर्क यह था कि 1995 के वक्फ अधिनियम में 2025 में किए गए संशोधन बेहद व्यापक हैं और इसने पुराने नियमों को तहस-नहस कर दिया है। उन्होंने बताया कि कानून ने "उपयोग द्वारा वक्फ" जैसे पुराने सिद्धांत को खत्म कर दिया, जिससे लंबे समय से उपयोग में आने वाली धार्मिक संपत्तियों को वक्फ माना जाता था।
अब कानून कहता है कि वक्फ बनाने के लिए कम से कम पांच साल तक इस्लाम का अभ्यास साबित करना होगा, पंजीकरण अनिवार्य होगा, और अनुसूचित जनजातियों की भूमि को वक्फ घोषित नहीं किया जा सकेगा।
सिब्बल ने तीखे लहजे में कहा,
"इसका असली मकसद वक्फ संपत्तियों का अधिग्रहण है, सुरक्षा का ढोंग मात्र है।"
उन्होंने चेताया कि नया ढांचा सदियों पुराने धार्मिक स्थलों को भी मिटा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि नई धारा 3सी से राज्य द्वारा नियुक्त अफसर किसी भी संपत्ति को एकतरफा सरकारी भूमि घोषित कर सकते हैं और उसका वक्फ दर्जा तत्काल खत्म हो जाएगा। "यह समुदाय को सड़क पर ला देगा," उन्होंने कहा।
धवन और सिंघवी ने कहा कि यह कानून वक्फ बोर्डों में गैर-मुसलमानों को बहुमत में ला सकता है और मौखिक वक्फ की परंपरा समाप्त कर रहा है - "यह पूरे समुदाय के अधिकारों को छीनने जैसा है।"
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अदालत में दलीलें और बहस
सॉलिसिटर जनरल ने हालांकि पलटवार करते हुए आंध्र प्रदेश का मामला पेश किया, जिसमें 1654 एकड़ सरकारी जमीन को ‘उपयोग द्वारा वक्फ’ बताकर दावा किया गया था। "राज्य की जिम्मेदारी है कि सार्वजनिक जमीन की रक्षा करे," उन्होंने कहा।
मेहता ने कहा कि यह कानून धार्मिक क्रियाओं में नहीं, बल्कि वित्त और रिकॉर्ड जैसे सांसारिक पहलुओं में सुधार करता है। उन्होंने साफ किया कि केंद्रीय वक्फ परिषद में अधिकतम चार और राज्य वक्फ बोर्डों में दो गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं। "यह व्यवस्था सुधारने की बात है, आस्था खत्म करने की नहीं," उन्होंने कहा।
जब याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि नया कानून संरक्षित स्मारकों में धार्मिक गतिविधियां रोक देगा, तो मेहता ने बताया कि प्राचीन स्मारक अधिनियम पहले से ही पारंपरिक पूजा की अनुमति देता है। उन्होंने कहा कि संशोधन भावी मामलों पर लागू होंगे और इन्हें संसदीय समिति की समीक्षा के बाद लाया गया है।
फिर भी याचिकाकर्ता जोर देते रहे कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25, 26 और 300A का उल्लंघन करता है।
"सिर्फ एक समुदाय से पांच साल का धार्मिक सबूत मांगा जा रहा है, बाकी किसी धर्म पर ऐसा बंधन नहीं," सिंघवी ने कहा।
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अदालत की टिप्पणियां
पीठ ने बेहद सतर्क रुख अपनाया और कई बार कहा कि संसद द्वारा पारित कानून को रोकने की कसौटी बहुत ऊंची होती है। “हर कानून को संवैधानिक मान्यता की धारणा का लाभ मिलता है,” मुख्य न्यायाधीश ने याद दिलाया। उन्होंने कहा कि अदालत तभी दखल देती है जब कोई प्रावधान संसद की शक्ति से बाहर हो या मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन करता हो।
न्यायाधीशों ने यह भी इंगित किया कि अभी तक कोई ऐसा व्यक्ति सामने नहीं आया है जिसे इस कानून से सीधा नुकसान हुआ हो - अधिकतर याचिकाएं जनहित याचिकाएं हैं।
“कोई कानून सिर्फ इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि वह अलोकप्रिय है या असुविधाजनक है,” पीठ ने कहा और जोड़ा, “अगर दो व्याख्याएं संभव हैं - एक संवैधानिक और दूसरी असंवैधानिक - तो संवैधानिक व्याख्या को प्राथमिकता दी जाएगी।”
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला
अंततः पीठ ने कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर रोक लगाने से मना कर दिया, जिससे यह कानून फिलहाल लागू रहेगा और इसकी संवैधानिकता पर अंतिम सुनवाई बाद में होगी।
“याचिकाकर्ता यह नहीं दिखा सके कि ये प्रावधान प्रथम दृष्टया असंवैधानिक हैं या संसद की शक्ति से बाहर हैं,” आदेश में कहा गया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून को वैध मानने की धारणा बनी रहेगी।
इसके साथ ही सुनवाई समाप्त हुई - कानून अभी कायम है, लेकिन उसके चारों ओर उठता तूफान थमा नहीं है।
पीठ: मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह
मुकदमे का शीर्षक: वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के संबंध में
मुकदमा संख्या: रिट याचिका (सिविल) संख्या 276/2025