दवाइयों की एक कंपनी को बड़ी राहत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य जीएसटी अधिकारियों द्वारा पारित उन आदेशों को रद्द कर दिया, जिनमें इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) देने से इनकार किया गया था और यूपीजीएसटी एक्ट की धारा 74 के तहत कार्यवाही शुरू की गई थी। न्यायालय ने मि. सेफकॉन लाइफसाइंस प्राइवेट लिमिटेड की याचिका स्वीकार करते हुए राजस्व अधिकारियों को बिना जांच-पड़ताल के कार्रवाई करने पर फटकार लगाई।
पृष्ठभूमि
सेफकॉन, जो दवाइयों के थोक व्यापार और निर्माण के व्यवसाय में है, ने अप्रैल 2021 में महाराष्ट्र के भिवंडी स्थित मि. यूनिमैक्स फार्मा केम से दवाइयां खरीदी थीं। उस समय यूनिमैक्स न केवल जीएसटी विभाग में पंजीकृत था बल्कि उसके पास वैध दवा लाइसेंस भी था। खरीददारी टैक्स इनवॉइस, ई-वे बिल, ट्रांसपोर्ट बिल्टी और बैंकिंग चैनल से किए गए भुगतान के साथ पूरी तरह समर्थित थी।
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इसके बावजूद, वाणिज्य कर उप आयुक्त, आगरा ने नोटिस जारी किया कि यूनिमैक्स का पंजीकरण बाद में रद्द कर दिया गया और उसने जिन फर्मों से सामान खरीदा था, उन्होंने कर जमा नहीं किया था। इसी आधार पर अधिकारियों ने सेफकॉन को आईटीसी का लाभ देने से इनकार कर दिया। प्रथम अपीलीय प्राधिकारी ने भी दिसंबर 2022 में इस निर्णय को बरकरार रखा, जिसके बाद सेफकॉन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति पियूष अग्रवाल ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद रिकॉर्ड का परीक्षण किया और पाया कि याचिकाकर्ता ने सभी दस्तावेजी सबूत - खरीद आदेश, टैक्स इनवॉइस, ई-वे बिल, ट्रांसपोर्ट रिकॉर्ड और खरीदार व सप्लायर दोनों द्वारा जीएसटी रिटर्न दाखिल किए जाने के प्रमाण - प्रस्तुत किए थे।
न्यायालय ने पाया कि कर अधिकारियों ने इन साक्ष्यों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। बेंच ने कहा,
"जब एक बार माल की वास्तविक आवाजाही और कर भुगतान साबित हो गया है और उसका कोई खंडन रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया, तो धारा 74 के तहत कार्यवाही को उचित नहीं ठहराया जा सकता।"
न्यायालय ने यह भी आलोचना की कि अधिकारियों ने केवल केंद्रीय खुफिया इकाई की आंतरिक रिपोर्ट पर आंख मूंदकर भरोसा किया, न उसकी पुष्टि की और न ही उसे करदाता के साथ साझा किया।
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा,
"केंद्रीय खुफिया इकाई से प्राप्त सूचना को बिना सत्यापन किए पंजीकृत डीलर के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।"
महत्वपूर्ण रूप से, बेंच ने 13 दिसंबर 2023 के हालिया सर्कुलर का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि धारा 74 की कार्यवाही केवल तभी शुरू की जा सकती है जब धोखाधड़ी, जानबूझकर गलत बयानबाजी या तथ्यों को छुपाकर कर से बचने की मंशा हो। केवल कर न भरने या सप्लायर के पिछले लेनदेन पर संदेह भर से यह कार्रवाई नहीं हो सकती।
सुप्रीम कोर्ट के कॉन्टिनेंटल फाउंडेशन जॉइंट वेंचर और इलाहाबाद हाईकोर्ट के खुर्जा स्क्रैप ट्रेडिंग कंपनी फैसले का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि ‘सप्रेशन’ और ‘विलफुल मिस-स्टेटमेंट’ जैसे शब्द कर से बचने की जानबूझकर मंशा को दर्शाते हैं, जो इस मामले में नहीं थी।
निर्णय
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि इस मामले में न तो धोखाधड़ी, न जानबूझकर गलत बयानबाजी और न ही तथ्यों को छुपाने का कोई सबूत है। इसलिए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपीलीय आयुक्त (अपील) का 20 दिसंबर 2022 का आदेश और वाणिज्य कर उप आयुक्त का 12 जनवरी 2022 का आदेश रद्द कर दिया।
इसके साथ ही, मि. सेफकॉन लाइफसाइंस प्राइवेट लिमिटेड की दाखिल याचिका स्वीकार कर ली गई।
केस का शीर्षक: मेसर्स सेफकॉन लाइफसाइंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम अपर आयुक्त ग्रेड-2 (अपील)-II, राज्य कर, आगरा एवं अन्य'
केस संख्या: रिट कर संख्या 389/2023